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पर कार्य करता है । यथा
५स. १५
यह योग भाद्रपद मास में उत्पन्न हुए व्यक्तियों में विशेष रूप से घटित होता है। यदि शनि और मंगल दशम, पंचम या लग्न में स्थित हों और पूर्ण चन्द्रमा गुरु की राशियों ( ९।१२ ) में स्थित हो तो जातक बहुत भाग्यशाली होता है। उसे विलास की सभी सामग्रियाँ प्राप्त होती हैं। बीस वर्ष की अवस्था के बाद वह अत्यधिक यश अर्जन करता है । यथा
श.
लग्नेश बलवान् होकर केन्द्र में स्थित हो, वह मित्र दृष्ट हो । मंगल मकर राशि अथवा दशम भाव में स्थित हो तो जातक यशस्वी होता है । २५ वर्ष की अवस्था के उपरान्त उसे सभी सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं । यथा
K१२
लग्न के अतिरिक्त केन्द्र ( ४।७।१० ) में पूर्ण बली चन्द्रमा हो तथा इसपर गुरु एवं शुक्र की दृष्टि हो तो जातक सरकारी उच्चपद प्राप्त करता है । यह योग प्रायः
.३१४
__मारतीय ज्योतिष
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