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लग्न में मंगल और त्रिकोण-५।९ में शुक्र की दृष्टि से युक्त शनि हो तो लिंग या गुदा के समीप तिल का चिह्न होता है। पंचम या नवम भाव में शुक्र और बुध हों, अष्टम स्थान में गुरु और चतुर्थ या लग्न में शनि हो तो पेट पर चिह्न होता है । द्वितीय स्थान में शुक्र, अष्टम स्थान में सूर्य और तृतीय में मंगल हो तो जातक के कटि प्रदेश में चिह्न होता है। चतुर्थ स्थान में राहु-शुक्र दोनों में से एक ग्रह स्थित हो और लग्न में शनि या मंगल स्थित हों तो पैर के तलवे में चिह्न होता है। बारहवें भाव में बृहस्पति, नवम भाव में चन्द्रमा और तृतीय तथा एकादश में बुध हो तो गुदा स्थान में चिह्न होता है।
जातक के शरीर में तिल, मस्सा, चिह्न आदि का विचार लग्न राशि; लग्नस्थित द्रेष्काण राशि एवं शीर्षोदय राशि आदि के द्वारा भी किया जाता है ।
जन्म समय के वातावरण का परिज्ञान
जन्म के समय मेष, वृष लग्न हो तो घर के पूर्व भाग में शय्या, मिथुन हो तो घर के अग्निकोण में, कर्क, सिंह लग्न हो तो घर के दक्षिण भाग में, कन्या लग्न हो तो घर के नैऋत्यकोण में, तुला, वृश्चिक लग्न हो तो घर के पश्चिम भाग में, धनु राशि का लग्न हो तो घर के वायुकोण में, मकर, कुम्भ लग्न हो तो घर के उत्तर भाग में एवं मीन राशि का लग्न हो तो घर के ईशान भाग में प्रसूतिका की शय्या जाननी चाहिए।
___ जो ग्रह सबसे बलवान् हो अथवा १।४।७।१० में स्थित हो उस ग्रह की दिशा में सूतिका-गृह का द्वार ज्ञात करना चाहिए । रवि की पूर्व दिशा, चन्द्र की वायव्य, मंगल की दक्षिण, बुध की उत्तर, गुरु की ईशान, शुक्र की अ.ग्नेय, शनि की पश्चिम और राहु को नैऋत्य दिशा है ।
जन्मसमय लग्न में शीर्षोदय ३।५।६।७।८।११ राशियों का नवांश हो तो मस्तक की तरफ से जन्म; लग्न में उभयोदय राशि--मीन का नवांश हो तो प्रथम हाथ निकला होगा; और लग्न में पृष्ठोदय १।२।३।४।९।१० राशियों का नवांश हो तो पाँव की ओर से जन्म जानना चाहिए।
लग्न और चन्द्रमा के बीच में जितने ग्रह स्थित हों उतनी ही उपसूतिकाओं की संख्या जाननी चाहिए । मीन, मेष लग्न में जन्म हो तो दो; वृष, कुम्भ में जन्म हो तो चार, कर्क, सिंह में हो तो पाँच, शेष लग्नों-मिथुन, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु और मकर लग्न हों तो तीन उपसू तिकाएँ जाननी चाहिए । अरिष्ट विचार
उत्पत्ति के समय जातक के ग्रहारिष्ट, गण्डारिष्ट और पातकी अरिष्ट का विचार करना चाहिए। तृतीयाध्याय
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