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से दृष्ट हों तथा चन्द्रमा पूर्ण बली हो तो जातक उच्च पदाधिकारी होता है। उक्त ग्रह योग के होने से राजदूत का पद भी प्राप्त होता है।
वर्गोत्तम नवांशगत उच्च राशि स्थित पूर्ण चन्द्रमा को जो-जो शुभग्रह देखते हैं, उसकी महादशा या अन्तर्दशा में मन्त्रीपद प्राप्त होता है। यदि जन्मलग्नेश और जन्मराशीश बली होकर केन्द्र में स्थित हों और जलचर राशिगत चन्द्रमा त्रिकोण में हो तो जातक राज्यपाल का पद प्राप्त करता है। जन्मसमय में सब ग्रह अपनी राशि में; मित्र के नवांश या मित्र की राशि में तथा अपने नवांश में स्थित हों तो जातक आयोगाध्यक्ष होता है। उक्त योग भी राजयोग है, इसके रहने से सम्मान, वैभव एवं धन प्राप्त होता है।
जन्मकुण्डली में समस्त ग्रह अपने-अपने परमोच्च में हों और बुध अपने उच्च के नवांश में हो तो जातक चुनाव में विजयी होता है तथा उसे राजनीति में यश एवं उच्चपद प्राप्त होता है। उक्त ग्रह के रहने से राष्ट्रपति का पद भी प्राप्त होता है। चतुर्थ भाव में सप्तर्षि गत नक्षत्र, लग्न में गुरु, सप्तम में शुक्र, दशम में अगस्त्य नक्षत्र हों तो भी राष्ट्रपति का पद प्राप्त होता है।
पूर्ण चन्द्रमा अपने नवांश अथवा अपनी राशि या स्वोच्च राशि में हो तथा बृहस्पति केन्द्र में शुक्र से दृष्ट हो और लग्न में स्थित होकर अपने नवांश को देखता हो तो राष्ट्रपति का पद प्राप्त होता है। पूर्ण चन्द्रमा पर सब ग्रहों को दृष्टि हो तो जातक दीर्घजीवी होता है और अधिक समय तक शासनाधिकार का उपभोग करता है ।
उच्चाभिलाषी-मीन के अन्तिम अंशस्थ सूर्य यदि त्रिकोण में हो, चन्द्रमा कर्क में हो तथा बृहस्पति भी यदि कर्क में हो तो जातक राज्यपाल या मन्त्री होता है । यदि छह ग्रह निर्मल किरणयुक्त सबल होकर लग्न में स्थित हों तो मण्डलाधिकारी होने का योग होता है।
यदि समस्त शुभग्रह बलवान्, परिपूर्ण किरण होकर लग्न में स्थित हों और पापग्रह अस्त होकर उनके साथ न हों तो जातक प्रतिष्ठित पद प्राप्त करता है। इस योग के होने से सम्मान अत्यधिक प्राप्त होता है ।
समस्त शुभग्रह पणफर स्थान में हों और पापग्रह द्विस्वभाव राशि में हों तो
-सा. रा., पद्य ४३-४४
१. स्वगृहे मित्रभागेषु स्वाशे वा मित्रराशिषु ।
कुर्वन्ति च नरं सूतौ सार्वभौमं नराधिपम् ॥ परमोच्चगताः सर्वे स्वोच्चांशे यदि सोमजः ।
त्रैलोक्याधिपति कुर्यदेवदानववन्दितम् ॥ २. उच्चाभिलाषी सविता त्रिकोणे स्वः शशी जन्मनि यस्य जन्तोः।
स शास्ति पृथ्वी बहुरत्नपूर्णा बृहस्पति कर्कटके यदि स्यात् ॥ ३. शुभपणफरगा शुभप्रदा उभयगृहे यदि पापसंचयाः ।
स्वभुजहतरिपुर्महीपतिः सुरगुरुतुल्यमतिः प्रकीर्तितः॥
-वही, श्लो. ४८
-वही, श्लो. ५१ भारतीय ज्योतिष
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