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षड्ग्रह योग-फल
रवि-चन्द्र-मंगल-बुध-गुरु-शुक्र एक साथ हों तो तीर्थयात्रा करनेवाला, सात्त्विक, दानी, स्त्री-पुत्रयुक्त, धनी, अरण्य-पर्वत आदि में निवास करनेवाला एवं सत्कीर्तिवान्; रवि-चन्द्र-बुध-गुरु-शुक्र-शनि एक साथ हों तो शिररोगी, परदेशी, उन्माद प्रकृतिवाला, देवभूमि में निवास करनेवाला एवं शिथिल चारित्रधारक; रवि-मंगल-बुध-गुरु-शुक्र-शनि एक साथ हों तो बुद्धिमान्, भ्रमणशील, परसेवी, बन्धुद्वेषी एवं रोगी; रवि-चन्द्र-मंगलबुध-गुरु-शनि एक साथ हों तो कुष्ठरोगी, भाइयों से निन्दित, दुखी, पुत्ररहित एवं परसेवी; रवि-चन्द्र-मंगल-गुरु-शुक्र-शनि एक साथ हों तो मन्त्री, नेता, मान्य, नीचकर्मरत, क्षय तथा पीनस के रोग से दुखी एवं स्वल्पधनी; रवि-चन्द्र-मंगल-गुरु-शुक्रशनि एक साथ हों तो शान्त, उदार, धनी-मानी एवं शासक और चन्द्र-मंगल-बुध. गुरु-शुक्र-शनि एक साथ हों तो धनिक, धर्मात्मा, ऐश्वर्यवान् एवं चरित्रवान् होता है । किसी भी ग्रह के साथ मंगल-बुध का योग वक्ता, वैद्य, कारीगर और शास्त्रज्ञ होने की सूचना देता है।
दीर्घ ,
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बुध
जलग्रह
द्वादश भाव विचार
__ लग्न-विचार-पहले ही कहा गया है कि प्रथम भाव से शरीर की आकृति, रूप आदि का विचार किया जाता है। इस भाव में जिस प्रकार की राशि और ग्रह होंगे जातक का शरीर भी वैसा ही होगा। शरीर की स्थिति के सम्बन्ध में विचार करने के लिए ग्रह और राशियों के तत्त्व नीचे लिखे जाते हैं । सूर्य शुष्कग्रह अग्नितत्त्व
सम ( कद ) चन्द्र जलग्रह
जलतत्त्व भौम शुष्कग्रह अग्नितत्त्व
हस्व पृथ्वीतत्त्व
सम गुरु जलग्रह
आकाश या तेजतत्त्व मध्यम या ह्रस्व যুক্ত जलग्रह
जलतत्त्व शनि शुष्कग्रह
वायुतत्त्व राशि संज्ञाएं मेष अग्नि
पादजल (8) ह्रस्व (२४ अंश) वृष पृथ्वी
अर्द्धजल (३) ह्रस्व (२४ अंश) मिथुन वायु
निर्जल (०) सम (२८ अंश) कर्क जल
पूर्णजल (१) सम ( ३२ अंश) सिह अग्नि
निर्जल (0) दीर्घ ( ३६ अंश) कन्या पृथ्वी निर्जल (०) दीर्घ (४० अंश)
भारतीय ज्योतिष
दीर्घ
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