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गोचर विधि कहते हैं। लेकिन गोचर का फल स्थूल होता है। ज्योतिर्विदों ने गोचर विधि को सूक्ष्मता प्रदान करने के लिए अष्टक वर्ग विधि को निकाला है।
_जिस प्रकार प्रत्येक ग्रह जन्मसमय की स्थित राशि पर, अपना शुभाशुभ प्रभाव डालता है, उसी प्रकार जन्मलग्न का भी अपना शुभाशुभ फल होता है। तात्पर्य यह है कि सात ग्रह स्थित, राशियां और जन्म लग्न इन आठों स्थानों में सातों ग्रह और लग्न का प्रभाव इष्टानिष्ट रूप में पड़ता है। सूर्य कुण्डली, सूर्याष्टक वर्ग, चन्द्र कुण्डलीचन्द्राष्टक वर्ग, मंगल कुण्डली-मंगलाष्टक वर्ग, बुध कुण्डली-बुधाष्टक वर्ग, गुरु कुण्डली--गुरु अष्टक वर्ग आदि सात ग्रह और लग्न इन आठों के अष्टक वर्ग बना लेना चाहिए। प्रत्येक ग्रह जन्म समय की कुण्डली में अपने-अपने स्थान से जिन-जिन स्थानों में बल प्रदान करता है, उन स्थानों में, इस शुभ फलदायित्व को रेखा या बिन्दु कहते हैं । किसी-किसी आचार्य ने शुभफल का चिह्न रेखा माना है तो किसी ने बिन्दु । सारांश यह है कि शुभ फल को यदि रेखा द्वारा व्यक्त किया जायेगा तो अशुभ फल को शून्य द्वारा और शुभ फल को शून्य द्वारा व्यक्त किया जायेगा तो अशुभ फल को रेखा द्वारा । नीचे सामान्य अष्टक वर्ग चक्र दिये जाते हैं। जिस अष्टक वर्ग में जो ग्रह जिन-जिन स्थानों में बल प्रदान करते हैं, उन स्थानों की संख्या दी गयी है। जैसे सूर्याष्टक वर्ग में चन्द्रमा जिस स्थान पर बैठा होगा, उससे तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है। शेष में अशुभ फल देता है। इसी प्रकार अन्य स्थानों को समझना चाहिए।
रवि रेखा ४८
2006 . .
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द्वितीयाध्याय
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