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स्त्री, कविता आदि का कारक है । दिन में जन्म होने से शुक्र से माता का विचार किया जाता है । सांसारिक सुख का विचार इसी ग्रह से होता है ।
शनि - पश्चिम दिशा का स्वामी, नपुंसक, वात- श्लेष्मिक प्रकृति, कृष्णवर्ण और वायुतत्व है । यह सप्तम स्थान में बली और वक्री ग्रह या चन्द्रमा के साथ रहने से चेष्टाबली होता है । इससे अँगरेजी विद्या का विचार किया जाता है। रात में जन्म होने पर शनि मातृ और पितृ कारक होता है । इससे आयु, शारीरिक बल, उदारता, विपत्ति, योगाभ्यास, प्रभुता, ऐश्वर्य, मोक्ष, ख्याति, नौकरी एवं मूर्च्छादि रोगों का विचार किया जाता है ।
राहु - दक्षिण दिशा का स्वामी, राहु रहता है, यह उस स्थान की उन्नति को केतु — कृष्णवर्ण और क्रूर ग्रह है । क्षुधाजनित कष्ट आदि का विचार किया जाता है ।
विशेष - यद्यपि बृहस्पति और शुक्र दोनों शुभ ग्रह हैं; पर शुक्र से सांसारिक और व्यावहारिक सुखों का तथा बृहस्पति से पारलौकिक एवं आध्यात्मिक सुखों का विचार किया जाता है । शुक्र के प्रभाव से मनुष्य स्वार्थी और बृहस्पति के प्रभाव से
परमार्थी होता है ।
करे ।
शनि और मंगल ये दोनों भी पाप ग्रह हैं, पर दोनों में अन्तर यही है कि शनि यद्यपि क्रूर ग्रह है, लेकिन उसका अन्तिम परिणाम सुखद होता है; यह दुर्भाग्य और मन्त्रणा के फेर में डालकर मनुष्य को शुद्ध बना देता है । परन्तु मंगल उत्तेजना देनेवाला, उमंग और तृष्णा से परिपूर्ण कर देने के कारण सर्वदा दुखदायक होता है । ग्रहों में सूर्य और चन्द्रमा राजा, बुध युवराज, मंगल सेनापति, शुक्र-गुरु मन्त्री एवं शनि भृत्य है । सबल ग्रह जातक को अपने समान बनाता है ।
सूर्यादि ग्रहों के द्वारा विचारणीय विषय
( १ ) सूर्य से - पिता, आत्मा, प्रताप, आरोग्यता, आसक्ति और लक्ष्मी का विचार करे ।
( २ ) चन्द्रमा से - - मन, बुद्धि, राजा की प्रसन्नता, माता और धन का विचार
करे |
कृष्णवर्ण और क्रूर ग्रह है । जिस स्थान पर रोकता है ।
करे |
इससे चर्मरोग, मातामह, हाथ-पाँव और
( ३ ) मंगल से - पराक्रम, रोग, गुण, भाई, भूमि, शत्रु और जाति का विचार
( ४ ) बुध से - विद्या, बन्धु, विवेक, मामा, मित्र और वचन का विचार
तृतीयाध्याय
( ५ ) बृहस्पति से - बुद्धि, शरीर-पुष्टि, पुत्र और ज्ञान का विचार करे ।
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