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२४/२५
०१२१ २४।४६ वार प्रवृत्ति से इष्टकाल २४।४६ x २ = ४९१३२५ = ९ लब्धि, शेष ३।४७, ४९।३२ - ३।४७ =
४५।४५ + १ = ४६।४५ : ७ = ६ लब्धि, शेष ४।४५, यहाँ वाराधिपति चन्द्रमा से ४ तक गिनने पर बृहस्पति कालहोरेश हुआ।
__ बल साधन का नियम यह है कि वर्षपति, मासपति, दिनपति और कालहोरापति ये क्रमशः एक चरण वृद्धि से बलवान् होते हैं। जैसे, वर्षपति का बल १५ कला, मासपति का ३० कला, दिनपति का ४५ कला और कालहोरापति का एक अंश बल होता है।
। प्रस्तुत उदाहरण में वर्षपति रवि, मासपति मंगल, दिनपति चन्द्रमा और कालहोरापति बृहस्पति हुआ। इन सभी ग्रहों का बल चरण-वृद्धि क्रम से नीचे दिया जाता है।
वर्षेशादि बल चक्र । सू. । चन्द्र : भौ. बुध गुरु शुक्र | शनि | ग्रह
| अश
कला
} ० । विकला। जन्मपत्री में कालबल चक्र लिखने के लिए नतोन्नतबल, पक्षबल, दिवाराव्यंशबल और वर्षेशादिबल इन चारों का जोड़ करना चाहिए ।
अयनबल-इसका साधन करने के लिए सूक्ष्म क्रान्ति का साधन करना परमावश्यक है। गणित क्रिया की सुविधा के लिए नीचे १० अंकों में ध्रुवांक और ध्रुवान्तरांक सारणी दी जाती है।
सायन ग्रह के भुजांशों में १० का भाग देने से जो लब्धि हो, वह गतक्रान्ति खण्डांक होता है । अंशादि शेष को ध्रुवान्तरांक से गुणा कर १० का भाग देने से जो लब्धि हो उसे गत खण्ड में जोड़कर पुनः दस का भाग देने पर अंशादि क्रान्ति स्पष्ट होती है। इस क्रान्ति की दिशा सायन ग्रह के गोलानुसार अवगत करनी चाहिए ।
तीन राशि-९० अंशों की भुजा का ध्रुवांक चक्र अंश । १० । २० । ३० । ४० । ५० । ६० T७० । ८० । ९०
(१) । (२) । (३) | (४) । (५) । (६) | (७) । (८) (९)। ध्रुवांक ४० । ८० ११७ १५१ १८१ २०६ २२४ २३६ २४ ध्रुवान्त- ४० । ४० | ३७ ३४ | ३० - २५ | १८ १४ ४ रांक
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मारतीय ज्योतिष
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