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दिवारात्रि त्र्यंशबल - दिन का जन्म हो तो दिनमान का विभाग करे और रात का जन्म हो तो रात्रिमान का त्रिभाग करे । यदि दिन के प्रथम भाग में जन्म हो तो बुध का दूसरे भाग में सूर्य का और तीसरे भाग में शनि का एक अंश बल होता है । रात के प्रथम भाग में जन्म हो तो सूर्य का द्वितीय भाग में शुक्र का और तृतीय भाग में भौम एवं गुरु का सदा एक अंश बल होता है ।
इससे विपरीत स्थिति में शून्यबल समझना चाहिए। उदाहरण - दिनमान ३२ ६ है और इष्टकाल २३।२२ है, दिनमान ३२६ : ३ = १०४२; १०१४२ का एक भाग; १० ४२ से २१।२४ तक दूसरा भाग एवं २१।२४ से ३२१६ तक तीसरा भाग होगा । अभीष्ट इष्टकाल तृतीय भाग का है, अतः शनि का का सर्वदा एक अंश बल माना जाता है, अतः उसका भी चाहिए । बलचक्र नियम इस प्रकार होगा -
सू. चं.
०
०
२३४
०
०
०
दिवारात्रि त्रिभाग बलचक्र
भौ.
गु.
शु.
०
O
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बु.
०
O
१
०
०
०
श.
एक अंश बल होगा । गुरु एक अंश बल ग्रहण करना
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वर्षेशादि बल - इष्ट दिन का कलियुगाद्यहर्गण लाकर उसमें ३७३ घटाकर शेष में २५२० का भाग देने पर जो शेष आवे उसे दो जगह स्थापित करें। पहले स्थान में ३६० का और दूसरे स्थान में ३० का भाग दें। दोनों स्थान की लब्धियों को क्रमशः तीन और दो से गुणा करें, गुणनफल में एक जोड़ दें । इस योगफल में ७ का भाग देने पर प्रथम स्थान के शेष में वर्षपति और द्वितीय स्थान के शेष में मासपति
होता है ।
०
कलियुगाद्यहर्गणसाधनविधि - इष्ट शक वर्ष में
वर्ष होते हैं । कलिगत वर्षो को १२ से गुणा कर चैत्रादि
देना चाहिए ।
भाग देकर जो
प्रथम स्थान में ७० योगफल में ३३ का
भाग देकर लब्धि
इस योगफल को तीन स्थानों में रखना चाहिए, लब्ध आये उसे द्वितीय स्थान में जोड़ें और इस को तृतीय स्थान में जोड़ दें । पुनः इस योगफल को ३० से गुणा कर गत तिथि जोड़ दें । इस योगफल को दो स्थानों में स्थापित करें । प्रथम स्थान की संख्या को ११ से गुणा कर ७०३ का भाग देकर लब्धि को द्वितीय स्थान की संख्या में घटाने से कलियुगाद्यहर्गण होता है ।
ग्र.
अंश
कला
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३१७९ जोड़ देने से कलिगत
गतमास जोड़
उदाहरण - वि.सं. २००१ शक १८६६ के वैशाख मास कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि, सोमवार का जन्म है ।
से
भारतीय ज्योतिष
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