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के ४७वें अंश पर गुलिक लग्न है । गुलिक लग्न का उपयोग
गुलिक लग्न से पूर्व साधित जन्म-लग्न राशि १ली, ३री, ५वीं, ७वीं, ९वीं और ११वीं हो तो मनुष्य का जन्म समझना चाहिए तथा गणितागत लग्न को शुद्ध मानना चाहिए। लग्न के शुद्धाशुद्ध अवगत करने के अन्य उपाय
(१) इष्टकाल में २ का भाग देने से जो लब्ध आवे, उसमें सूर्य जिस नक्षत्र में हो उस नक्षत्र की संख्या को मिला दे। इस योग में २७ का भाग देने से जो शेष रहे उसी संख्यक नक्षत्र की राशि में लग्न होता है।
उदाहरण-२३।२२ इष्टकाल है और सूर्य अश्विनी नक्षत्र में है।
२३।२२ २ = १११४१; यहाँ अश्विनी नक्षत्र से सूर्य नक्षत्र तक गणना की तो १ संख्या आयी, इसे फल में जोड़ा-१११४१ + ११० = १२१४१ : २७ = ० लब्ध, १२।४१ शेष रहा। अश्विनी से १२वीं संख्या तक गणना करने पर उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र आया । उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र की सिंह राशि है; यही लग्न राशि पहले भी आयो है, अतः यह लग्न शुद्ध है।
(२) इष्टकाल को ६ से गुणा कर गुणनफल में जन्मदिन के सूर्य के अंश जोड़ दें। इस योगफल में ३० का भाग देकर लब्धि ग्रहण कर लेनी चाहिए तथा १५ से अधिक शेष रहने पर लब्धि में एक और जोड़ देना चाहिए। यदि ३० से भाग न जाये तो लब्धि एक मान लेनी चाहिए । सूर्य राशि की अगली राशि से भागफल के अंकों को गिन लेने से जो राशि आवे वही लग्न की राशि होगी। यदि यह गणितागत लग्न से मिल जाये तो लग्न को शुद्ध समझना चाहिए ।
उदाहरण-इष्टकाल २३।२२x६ = १४०।१२ १४०।१२ इसमें
१०। ० सूर्य के अंश जोड़े १५०।१२ : ३० = ५ लब्धि, ०।१२ शेष ।
सूर्य मेष राशि पर है, उससे अगली राशि वृष है, अतः वृष से पाँच अंक आगे गिनने पर कन्या राशि आती है। प्रस्तुत उदाहरण का लग्न सिंह आया है, इसका निर्णय पहले दो-तीन नियमों से भी किया गया है, अतः यहाँ पर एक घटाकर लग्न निकालना चाहिए । ज्योतिष के गणित में कभी-कभी एक घटाकर या एक जोड़कर भी क्रिया की जाती है।
(३) यदि दिन में दिनमान के अर्द्ध भाग से पहले जन्म हो तो जन्मकालीन रविगत नक्षत्र से ७वें नक्षत्र की राशि; दिन के अवशेष भाग में जन्म हो तो रविगत नक्षत्र से १२वें नक्षत्र की राशि एवं रात्रि के पूर्वार्द्ध में जन्म होने से १७वें नक्षत्र की
मारतीय ज्योतिष
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