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राशि और शेष रात्रि में जन्म होने से २४वें नक्षत्र की राशि लग्नराशि होती है।
उदाहरण---इष्टकाल २३।२२ घट्यात्मक है। दिनमान ३२१६ है, इसका आधा १६।३ हुआ; प्रस्तुत इष्टकाल दिन के पूर्वार्द्ध से आगे का है, अतः रवि-नक्षत्र से १२वें नक्षत्र की राशि लग्न की राशि होनी चाहिए। रवि नक्षत्र यहाँ अश्विनी है, अश्विनी से १२ नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी आता है, इस नक्षत्र की राशि सिंह है, यही लग्न की राशि हुई।
(४) चन्द्रमा से पंचम या नवम स्थान में लग्न-राशि का होना सम्भव है। चन्द्रमा के नवमांश के सप्तम स्थान से नवम और पंचम स्थान में लग्न राशि का होना सम्भव है । चन्द्रमा जिस स्थान में हो उस स्थान के स्वामी विषम स्थानों में लग्न का होना सम्भव है । लग्न में भी चन्द्रमा रह सकता है । नवग्रह स्पष्ट करने की विधि
जिस इष्टकाल की जन्मपत्री बनानी हो, उसके ग्रह स्पष्ट अवश्य कर लेने चाहिए। क्योंकि ग्रहों के स्पष्ट मान के ज्ञान बिना अन्य फलादेश ठीक नहीं घट सकता है। यहाँ ग्रह स्पष्टीकरण का तात्पर्य ग्रहों के राश्यादि मान से है। दूसरी बात यह है कि कुण्डली के द्वादश भावों में ग्रहों का स्थापन ग्रहमान-राश्यादि ग्रह ज्ञात हो जाने पर ही सम्यक् हो सकता है। अतएव प्रत्येक जन्मकुण्डली में जन्मांग चक्र के पूर्व ग्रहस्पष्ट चक्र लिखना अनिवार्य है। चन्द्रमा को छोड़ शेष आठ ग्रहों के स्पष्ट करने की विधि एक-सी है।
पंचांगों में ग्रहस्पष्ट की पंक्ति लिखी रहती है। लेकिन किसी में अष्टमी, अमावास्या और पूर्णिमा की पंक्ति रहती है और किसी में मिश्रमानकालिक या प्रातःकालिक । जिस पंचांग में दैनिक मिश्रमानकालिक या प्रातःकालिक ग्रहस्पष्ट की पंक्ति रहती है, उसके अनुसार मिश्रमान और इष्टकाल अथवा प्रातःकाल और इष्टकाल का १. प्रस्तारस्तु यदाग्रे स्यादिष्टं संशोधयेदृणम् । इष्टकालो यदाग्रे स्यात्प्रस्तारं शोधयेद्धनम् ।
पंचांग में आठ-आठ दिन के ग्रह स्पष्ट किये लिखे रहते हैं, इसे पंक्ति या प्रस्तार कहते हैं। प्रस्तार यदि इष्टकाल से आगे हो तो प्रस्तार के वार-घटी-पल में इष्ट समय के वार-घटी-पल घटा दें। जो शेष रहे वह वारादि ऋणचालन होता है और जो इष्टकाल आगे हो और प्रस्तार पीछे हो तो इष्टकालात्मक वार-घटी-पल में से प्रस्तार के वार-घटो-पल घटा देने से शेष अंक वारादि धनचालन होता है।
गतैष्यदिवसायेन गतिनिघ्नी खषट् हृता। लब्धमंशादिकं शोध्य योज्यं स्पष्टो भवेद् ग्रहः ॥
धनचालन या ऋणचालन से ग्रह की गति को गुणा करे, फिर गोमूत्रिका रीति से साठ का भाग दे तो अंश, कला, विकलात्मक लब्ध होगा। इसे पंचांगस्थ ग्रह में घटा देने या जोड़ देने से तात्कालिक स्पष्ट ग्रह मान होता है। यहाँ यह ध्यातव्य है कि वक्री ग्रह होने पर ऋणचालन को जोड़ना जौर धनचालन को घटाना चाहिए।
द्वितीयाध्याय
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