________________
अष्टोत्तरी दशा विचार
दक्षिण भारत में अष्टोत्तरी दशा का विशेष प्रचार है। स्वरशास्त्र में बताया गया है कि जिसका जन्म शुक्लपक्ष में हो उसका अष्टोत्तरी दशा द्वारा और जिसका जन्म कृष्णपक्ष में हो उसका विशोत्तरी दशा द्वारा शुभाशुभ फल जानना चाहिए । दशा द्वारा हमें किसी भी व्यक्ति के समय का परिज्ञान होता है।
___अष्टोत्तरी ( १०८ वर्ष की ) दशा में सूर्यदशा ६ वर्ष, चन्द्रदशा १५ वर्ष, भौमदशा ८ वर्ष, बुधदशा १७ वर्ष, शनिदशा १० वर्ष, गुरुदशा १९ वर्ष, राहुदशा १२ वर्ष और शुक्रदशा २१ वर्ष की होती है।
जन्मनक्षत्र द्वारा दशा ज्ञात करने की यह विधि है कि अभिजित् सहित आर्द्रादि नक्षत्रों को पापग्रहों में चार-चार और शुभ ग्रहों में तीन-तीन स्थापित करने से ग्रहदशा मालूम पड़ जाती है । सरलता से अवगत करने के लिए नीचे चक्र दिया जाता है ।
#
। सू.
आर्दा. पुन. पुष्य आश्ले.
जन्मनक्षत्र से अष्टोत्तरी दशा ज्ञात करने का चक्र चं. मं.। बु. । श. | गु. । रा. | शु.। . ।
! ह. | अनु. पू. षा. ! ध. | उ.भा.कृत्ति. जन्म- ! पू. फा. | चि. ।
| उ.षा. | श. | रे. | रो. / उ. फा. | स्वा. ज्ये. अभि. .
पू.भा. भ. म. नक्षत्र
वि.
मू.
अष्टोत्तरी दशा स्पष्ट करने की विधि
भयात के पलों को दशा के वर्षों से गुणा कर भभोग के पलों का भाग देने से विंशोतरी के समान भुक्त वर्षादि मान आता है। इसे ग्रहवर्षों में से घटाने पर भोग्य वर्षादि मान निकलता है। उदाहरण-भयात १६॥३९
भभोग ५८।४४
६०
--
-
-
९६० + ३९ %
३४८०+४४ = पलात्मक भयात = ९९९ पलात्मक भभोग = ३५२४ इस उदाहरण में जन्मनक्षत्र कृत्तिका होने के कारण शुक्र की दशा में जन्म हुआ है, अतः शुक्र के दशा वर्षों से भयात के पलों को गुणा किया।
९९९ भयात | ३५२४ भभोग
२१ ग्रहवर्ष २०९७९ : ३५२४
.२२०
मारतीय ज्योतिष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org