________________
मीन-द्विस्वभाव, स्त्री जाति, कफ प्रकृति, जलतत्त्व, रात्रिबली, विप्रवर्ण, उत्तर दिशा की स्वामिनी और पिंगल रंग है। इसका प्राकृतिक स्वभाव उत्तम, दयालु और दानशील है । यह सम्पूर्ण जलराशि है । इससे पैरों का विचार किया जाता है। राशि स्वरूप का प्रयोजन
उपर्युक्त बारह राशियों का जैसा स्वरूप बतलाया है, इन राशियों में उत्पन्न पुरुष और स्त्रियों का स्वभाव भी प्रायः वैसा ही होता है। जन्मकुण्डली में राशि और ग्रहों के स्वरूप के समन्वय पर से ही फलाफल का विचार किया जाता है। दो व्यक्तियों की या वर-कन्या की शत्रुता और मित्रता अथवा पारस्परिक स्वभाव मेल के लिए भी राशि स्वरूप उपयोगी है । शत्रुता और मित्रता की विधि
पृथ्वीतत्त्व और जलतत्त्ववाली राशियों के व्यक्तियों में तथा अग्नितत्त्व और वायुतत्त्ववाली राशियों के व्यक्तियों में परस्पर मित्रता रहती है। पृथ्वी और अग्नितत्त्व; जुल और अग्नितत्त्व एवं जल और वायुतत्त्ववाली राशियों के व्यक्तियों में परस्पर शत्रुता रहती है । राशियों के स्वामी
मेष और वृश्चिक का मंगल, वृष और तुला का शुक्र, कन्या और मिथुन का बुध, कर्क का चन्द्रमा, सिंह का सूर्य, मीन और धनु का बृहस्पति, मकर और कुम्भ का शनि, कन्या का राहु एवं मिथुन का केतु है।
- शून्यसंज्ञक राशियाँ-चैत्र में कुम्भ, वैशाख में मीन, ज्येष्ठ में वृष, आषाढ़ में मिथुन, श्रावण में मेष, भाद्रपद में कन्या, आश्विन में वृश्चिक, कार्तिक में तुला, मार्गशीर्ष में धनु, पौष में कर्क, माघ में मकर एवं फाल्गुन में सिंह शून्यसंज्ञक हैं। राशियों का अंग-विभाग
द्वादश राशियाँ काल-पुरुष का अंग मानी गयी हैं। मेष को सिर में, वृष को मुख में, मिथुन को स्तनमध्य में, कर्क को हृदय में, सिंह को उदर में, कन्या को कमर में, तुला को पेड़ में, वृश्चिक को लिंग में, धनु को जंघा में, मकर को दोनों घुटनों में, कुम्भ को दोनों जाँघों में एवं मीन को दोनों पैरों में माना है।
द्वितीयाध्याय
१२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org