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४।४३X६०
= २४० + ४३ = २८३,
२८३ × ६० = १६९८० ÷ ६६७ = २५।२७, अतएव लग्नमान ४२३ ॥२५॥ २७" हुआ ।
इसी प्रकार अन्य उदाहरणों का गणित किया जा सकता है । यद्यपि यह गणित प्रक्रिया सरल है, लेकिन स्वदेशीय उदयमान द्वारा साधित गणित क्रिया की अपेक्षा स्थूल है ।
प्राणपदसाधन और उसके द्वारा लग्नशुद्धि
यद्यपि कुछ विशेषज्ञों का मत है कि प्राणपद द्वारा इष्टकाल की शुद्धि नहीं करनी चाहिए; क्योंकि पराशर आदि प्राचीन ज्योतिर्विदों ने प्राणपद को एक अप्रकाशक ग्रह के रूप में मानकर उसका द्वादश भावों में फल बतलाया है । इसके द्वारा इष्टकाल की शुद्धि करने की जो प्रक्रिया प्रचलित है, वह आर्ष नहीं है । इस सम्बन्ध में मेरा यह मत है कि यह प्रणाली आर्ष हो या नहीं, किन्तु इष्टकाल का शोधन इसके द्वारा उपयुक्त है । ज्योतिषशास्त्र की प्रत्यक्ष - गणित क्रिया ही इसमें प्रमाण है ।
१५ पल समय को प्राण कहते हैं, इस प्रकार एक घटी में चार प्राण होते हैं । क्रिया करने के लिए इष्टकाल की घटियों को चार से गुणा करना चाहिए और पलों में १५ का भाग देकर लब्धि को चतुर्गुणित घटी संख्या में जोड़ देना चाहिए। इस योगफल में १२ का भाग देने पर जो शेष बच्चे वही प्राणपद की राशि होगी, शेष फलों
१
को २ से गुणा करने पर अंश होंगे ।
प्राणपद साधन का दूसरा नियम यह है कि इष्टकाल को पलात्मक बनाकर १५ का भाग देने पर लब्ध राशि और शेष में २ का गुणा करने पर अंश होंगे । पर यहाँ इतनी विशेषता और समझनी चाहिए कि राशिसंख्या यदि १२ से अधिक हो तो उसमें १२ का भाग देकर लब्ध को छोड़ शेष को राशिसंख्या माननी चाहिए । इस प्राणपद साधन की मध्यम विधि है । स्पष्ट करने के लिए यदि सूर्य चरेराशि में हो तो उसके राशि, अंश में प्राणपद के राशि, अंश को जोड़ देने से और सूर्य स्थिर या द्विस्वभाव राशि में हो तो उसमें पंचम या चरराशि हो उस राशि और सूर्य के अंशों में गणितागत मध्यम को जोड़ देने से स्पष्ट प्राणपद होता है |
१. घटी चतुर्गुणा कार्या तिथ्याप्तैश्च पलैर्युता । दिनकरेणापहृतं शेषं प्राणपदं स्मृतम् । शेषात्पलान्ताद् द्विगुणीविधाय राश्यंशसूर्यर्क्षनियोजिताय । तत्रापि तद्राशिचराम् क्रमेण लग्नांशप्राणांशपदैक्यता स्यात् ॥
२. चर – मेष, कर्क, तुला, मकर । स्थिर - वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्म और द्विस्वभाव - मिथुन, कन्या, धनु, मीन ।
द्वितीयाध्याय
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स्पष्ट प्राणपद होता है नवम राशियों में जो प्राणपद के राशि अंशों
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