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उदाहरण- आरा का अक्षांश २५/३० है, पलभा सारणी में २५ अक्षांश की पलभा ५।३५।४२ लिखी है । ४० कला की पलभा निकालने के लिए २५ अंश और २६ अंश के पलभा कोष्ठकों का अन्तर कर अनुपात द्वारा ३० कला की पलभा निकाल - कर २५ अक्षांश की पलभा में जोड़ देने से आरा की पलभा आ जायेगी ।
५/५१/७ - २६ अंश की पलभा में से
५।३५।४२ – २५ अंश की पलभा को घटाया
१५।२५ – एक अंश अर्थात् ६० कला की पलभा हुई, इसे ३० से गुणा कर
६० का भाग देने पर ३० कला की पलभा आ जायेगी ।
१५।२५ x ३० = ४५० ७५० : ६० = ७१४२ ५।३५।४२ – २५ अंश की पलभा में
७१४२–३० कला की पलभा जोड़ी ५।४३।२४ आरा की पलभा हुई
अब जिस समय का लग्न बनाना हो उस समय के स्पष्ट सूर्य में तात्कालिक स्पष्ट अयनांश जोड़ देने से तात्कालिक सायन सूर्य होता है । इस तात्कालिक सायन सूर्य के भुक्त या भोग्य अंशादि को स्वदेशीय उदयमान से गुणा करके ३० का भाग देने पर लब्ध पलादि भुक्त या भोग्यकाल होता है — भुक्तांश को स्वोदय से गुणा कर ३० का भाग देने पर भुक्तकाल और भोग्यांग को स्वोदय से गुणा कर ३० का भाग देने पर भोग्यकाल आता है । इस भुक्त या भोग्यकाल को इष्ट घटी - पलों में घटाने से जो शेष रहे उसमें भुक्त या भोग्य राशियों के उदयमानों को जहाँ तक घटा सकें, घटाना चाहिए । शेष को ३० से गुणा कर अशुद्धोदयमान ( जो राशि घटी नहीं है उसके उदयमान ) से भाग देने पर जो अंशादि लब्ध आयें, उनको क्रम से अशुद्ध राशि में घटाने और शुद्ध राशि में जोड़ने से सायन स्पष्ट लग्न होता है । इसमें से अयनांश घटाने पर स्पष्ट लग्न आता है |
सूर्य- स्पष्ट प्रायः पंचांगों में प्रतिदिन दिया रहता है । समय के इष्टकाल का नहीं होता है, लेकिन लग्न बनाने का चलाया जा सकता है । यहाँ सिर्फ़ विचार इतना ही करना है हो तो पहले दिन का सूर्य स्पष्ट और रात का जन्म हो तो उसी में लाना चाहिए । इस सूर्य स्पष्ट में अयनांश जोड़कर सायन सूर्य बना तब पूर्वोक्त नियमानुसार क्रिया करनी चाहिए ।
यद्यपि यह सूर्य स्पष्ट जन्मकाम साधारणतया इससे कि यदि दिन का जन्म दिन का सूर्य स्पष्ट काम लेना चाहिए,
उदाहरण - वि. सं. २००१ वैशाख शुक्ला द्वितीया सोमवार को आरा में २३ घटी २२ पल इष्टकाल पर किसी बालक का जन्म हुआ । इस इष्टकाल का लग्न निकालने के लिए इस दिन का सूर्य स्पष्ट ० १० २८/५७ लिया । इसमें अयनांश अर्थात् २३ अंश ४६ कला जोड़ा तो—
१. जो राशि घट न सके उसे अशुद्ध और जिस राशि तक के उदयमान इष्टकाल के पलों में घट जायें वह शुद्ध राशि कहलाती है ।
द्वितीयाध्याय
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