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( ३।४९।३२ )४५% ९।३३।५० फल आया, इसे दिनमान में से घटाया३२१६ दिनमान में से
९।३३।५० को घटाया २०३२।१०
३-सूर्यास्त से १२ बजे रात्रि के भीतर का जन्म हो तो जन्मसमय और सूर्यास्तकाल का अन्तर कर शेष को ढाई (२३) गुना कर दिनमान में जोड़ देने से इष्टकाल होता है । उदाहरण-वि. सं. २००१ वैशाख शुक्ला द्वितीया सोमवार को रात के १० बजकर ४५ मिनट पर आरा नगर में किसी बच्चे का जन्म हुआ है। पूर्ववत् यहाँ पर भी देशान्तर और वेलान्तर संस्कार किये-(१०४५)+ ( ०1८।४० ) + ( ०।२।०) = १०१५५।४० जन्मसमय-१०५५।४० जन्मसमय में से
६।२५।१२ सूर्यास्तकाल को घटाया
४।३०।२८ इसे ढाई गुना किया-(४।३।२८) ४५ ११।१६।१० फल आया; इसे दिनमान में जोड़ा-३२। ६।१० दिनमान
११।१६।१० फल इष्टकाल घट्यादि हुआ । ४३।२२।१० ४-यदि रात के १२ बजे के पश्चात् और सूर्योदय के पहले का जन्म हो तो सूर्योदयकाल और जन्मसमय का अन्तर कर शेष को ढाई (२३) गुना कर ६० घटी में से घटाने पर इष्टकाल होता है। उदाहरण—वि. सं. २००१ वैशाख शुक्ला द्वितीया सोमवार को रात के ४ बजकर १२ मिनट पर जन्म हुआ है। अतएव (४।१५।०)+ (०८।४० देशान्तर )+ ( ०१२।० वेलान्तर ) = ४।२५।४० संस्कृत जन्मसमय हुआ। ५।३४।४८ सूर्योदय में से ४।२५।४० जन्मसमय को घटाया १। ९८ ( १।९।८)x३=२१५२।५० फल;
६०। ०। ० में से घटाया
२।५२०५०
५७। ७.१० इष्टकाल हुआ। ५-सूर्योदय से लेकर जन्मसमय तक जितने घण्टा, मिनट और सेकेण्ड हों; उन्हें ढाई गुना कर देने से घट्यादि इष्टकाल होता है। उदाहरण—वैशाख शुक्ला द्वितीया सोमवार को दिन के ४ बजकर १५ मिनट पर आरा में जन्म हुआ है। अतएव( ४।१५।० ) + ( ०1८।४० देशान्तर )+ ( ०।२१० वेलान्तर )= ४।२५।४० जन्मसमय । सूर्योदय ५।३४।४८ पर होता है, इसलिए गणना करने पर सूर्योदय से लेकर द्वितीयाध्याय
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