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भारतीय ज्योतिष के सिद्धान्त
यह पहले ही लिखा जा चुका है कि भारतीय ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन आत्मकल्याण के साथ लोक व्यवहार का सम्पन्न करना है । लोक व्यवहार के निर्वाह के लिए ज्योतिष के क्रियात्मक दो सिद्धान्त हैं - गणित और फलित । गणित ज्योतिष के शुद्ध गणित के अतिरिक्त करण, तन्त्र और सिद्धान्त ये तीन भेद एवं फलित के जातक, ताजिक, मुहूर्त, प्रश्न एवं शकुन ये पांच भेद दिये हैं । यों तो भारतीय ज्योतिष के सिद्धान्तों का वर्गीकरण और भी अनेक भेद-प्रभेदों में किया जा सकता है, परन्तु मूल विभागों का उक्त वर्गीकरण ही अधिक उपयुक्त है । प्रस्तुत ग्रन्थ को अधिक लोकोपयोगी बनाने की दृष्टि से इसमें गणित - ज्योतिष के सिद्धान्तों पर कुछ न लिखकर फलित ज्योतिष के प्रत्येक अंग पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया जायेगा । यद्यपि भारतीय ज्योतिष के रहस्य को हृदयंगम करने के लिए गणित - ज्योतिष का ज्ञान अनिवार्य है, पर साधारण जनता के लिए आवश्यक नहीं । क्योंकि प्रामाणिक ज्योतिर्विदों द्वारा निर्मित तिथिपत्रों - पंचांगों पर से कतिपय फलित से सम्बद्ध गणित के सिद्धान्तों द्वारा अपने शुभाशुभ का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । अतएव यहाँ पर प्रयोजनीभूत आवश्यक ज्योतिष तत्त्वों का निरूपण किया जा रहा है। हर एक व्यक्ति के लिए यह जरूरी नहीं कि वह ज्योतिषी हो, किन्तु मानव मात्र को अपने जीवन को व्यवस्थित करने के नियमों को जानना वाजिब ही नहीं, अनिवार्य है ।
द्वितीयाध्याय
फलित ज्योतिष के ज्ञान के लिए तिथि, नक्षत्र, योग, करण और वार के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए । अतएव जातक अंग पर लिखने के पूर्व उपर्युक्त पाँचों के संक्षिप्त परिचय के साथ आवश्यक परिभाषाएँ दी जाती हैं-
तिथि- -चन्द्रमा की एक कला को तिथि माना गया है । इसका चन्द्र और सूर्य के अन्तरांशों पर से मान निकाला जाता है । प्रतिदिन १२ अंशों का अन्तर सूर्य और चन्द्रमा के भ्रमण में होता है, यही अन्तरांश का मध्यम मान है । अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियां शुक्लपक्ष की और पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक की तिथियां कृष्णपक्ष की होती हैं । ज्योतिषशास्त्र में तिथियों की गणना शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होती है ।
द्वितीयाध्याय
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