________________
जन्म ईसवी सन् १५१७ माना जाता है । यह अपूर्व प्रतिभासम्पन्न ज्योतिषी थे, इन्होंने १३ वर्ष की उम्र में ग्रहलाघव-जैसे अपूर्व करण ग्रन्थ की रचना की थी। इनके द्वारा रचित अन्य ग्रन्थों में लघुतिथिचिन्तामणि, बृहत्तिथिचिन्तामणि, सिद्धान्तशिरोमणि टीका, लीलावती टीका, विवाहवृन्दावन टीका, मुहूर्ततत्त्वटीका, श्राद्धादिनिर्णय, छन्दार्णवटीका, सुधीरंजनीतर्जनीयन्त्र, कृष्णजन्माष्टमी निर्णय, होलिका निर्णय आदि बताये जाते हैं।
ग्रहलाघव में ज्या-चाप के बिना अंकों द्वारा ही सारा ग्रहगणित किया गया है। इसमें कल्पादि से अहर्गण के तीन खण्ड कर ध्रुवक्षेप द्वारा ग्रह सिद्ध किये गये हैं। वर्तमान में जितने करण ग्रन्थ उपलब्ध है, उनमें सबसे सरल और प्रामाणिक ग्रहलाघव ही माना जाता है । यद्यपि इसके ग्रहगणित में कुछ स्थूलता है, पर काम चलाने लायक यह अवश्य है।
ढुण्डिराज-यह पार्थपुरा के रहनेवाले नृसिंह दैवज्ञ के पुत्र और ज्ञानराज के शिष्य थे। इनका समय ईसवी सन् १५४१ है। इन्होंने जातकाभरण नामक फलित ज्योतिष का एक सुन्दर ग्रन्थ बनाया है। यह ग्रन्थ फलित ज्योतिष में अपने ढंग का निराला है, जन्मपत्री का फलादेश इसमें बहुत सुन्दर ढंग से बताया गया है। जातकाभरण की श्लोक-संख्या दो हजार है, केवल इस ग्रन्थ के सम्यक् अध्ययन से फलितज्योतिष का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
नीलकण्ठ-इनके पिता का नाम अनन्तदैवज्ञ और माता का नाम पद्मा था। इनका जन्म-समय ईसवी सन् १५५६ बताया जाता है। इन्होंने अरबी और फ़ारसी के ज्योतिष-ग्रन्थों के आधार पर ताजिकनीलकण्ठी नामक एक फलित-ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ बनाया है । विदेशी भाषा के साहित्य से केवल शरीर-भर ग्रहण किया है, आत्मा भारतीय ज्योतिष की है । नीलकण्ठी में तीन तन्त्र-संज्ञातन्त्र, वर्षतन्त्र और प्रश्नतन्त्र हैं। इसमें इक्कबाल, इन्दुवार, इत्थशाल, इशराफ, नक्त, यमया, मणऊ, कम्बूल, गैरकम्बूल, खल्लासर, रद्द, युफाली, दुत्थोत्थदवीर, तुम्बीर, कुत्थ और युरफा ये सोलह योग अरबी ज्योतिष से लिये गये प्रतीत होते हैं । इन योगों द्वारा वर्षकुण्डली में प्राणियों के शुभाशुभ का निर्णय किया जाता है ।
रामदेवज्ञ-यह अनन्तदैवज्ञ के पुत्र और नीलकण्ठ के भाई थे। इनका जन्मसमय ईसवी सन् १५६५ माना जाता है । इन्होंने शक संवत् १५२२ में मुहूर्तचिन्तामणि नामक एक महत्त्वपूर्ण मुहूर्त ग्रन्थ बनाया है। इस समय सर्वत्र इसी के आधार पर विवाह, द्विरागमन, यात्रा, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों के मुहूर्त निकाले जाते हैं। यह ग्रन्थ श्रीपति द्वारा रचित रत्नमाला का एक संस्कृत रूप है। इन्होंने अकबर की आज्ञा से शक सं. १५१२ में एक रामविनोद नामका करण ग्रन्थ भी बनाया है। रामदैवज्ञ ने टोडरमल को प्रसन्न करने के लिए टोडरानन्द नामक एक संहिता-विषयक ज्योतिष का ग्रन्थ बनाया है, लेकिन आज यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है ।
१०४
भारतीय ज्योतिष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org