Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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(xxxII)
आगम-साहित्य (१) वर्गीकरण
आगम जैन साहित्य का सर्वाधिक प्राचीन रूप है। विभिन्न समय में किए गए आगमों के वर्गीकरण विभिन्न रूपों में मिलते हैं। अंगसुत्ताणि की भूमिका में इस विषय में बताया गया है-“समवायांग में आगम के दो रूप प्राप्त होते हैं-'द्वादशांग गणिपिटक'२ और 'चतुर्दश पूर्व' ।"
"नन्दी सूत्र में दो वर्गीकरण प्राप्त होते हैंपहला वर्गीकरण(१) गमिक दृष्टिवाद। (२) अगमिक–कालिकश्रुत-आचारांग आदि। दूसरा वर्गीकरण
(१) अंग-प्रविष्ट। (२) अंग-बाह्य।"६ ___ “आगम-साहित्य में साधु-साध्वियों के अध्ययन-विषयक जितने उल्लेख प्राप्त होते हैं, वे सब अंगों और पूर्वो से संबंधित हैं।"
कालक्रम के अनुसार समवायांग में उपलब्ध वर्गीकरण सबसे प्राचीन है। इसके पश्चात् नन्दी का वर्गीकरण आता है। यह वर्गीकरण आगम-संकलन-कालीन है तथा विस्तृत है।११ १. अंगसुत्ताणि, भाग १, भूमिका, पृ. ३०। बाह्य का विभाग नहीं है। सर्वप्रथम यह २. समवाओ, पइण्णगसमवाओ, सू. ८८। विभाग नंदी में मिलता है। अंग-बाह्य की ३. वही, समवाय १४, सू. २।
रचना अर्वाचीन स्थविरों ने की है। नंदी ४. अंगसुत्ताणि, भाग १, भूमिका, पृ. ३० । की रचना से पूर्व अनेक अंग-बाह्य ग्रन्थ नन्दी , सू. ४३।
रचे जा चुके थे और वे चतुर्दश-पूर्वी या ठाणं, भूमिका, पृ. १५।
दस-पूर्वी स्थविरों द्वारा रचे गये थे। अंगसुत्ताणि, भाग १, भूमिका, पृ. ३०। इसलिए उन्हें आगम की कोटि में रखा उत्तरज्झयणाणि, भूमिका, पृ. १२।। गया। उसके फलस्वरूप आगम के दो यहां यह ध्यान देने योग्य है कि विभाग किए गए-अंग-प्रविष्ट और अंग'दसवेआलियं' की भूमिका (पृ. XI) में बाह्य। यह विभाग अनुयोगद्वार (वीरबताया गया है-'कालक्रम के अनुसार निर्वाण छठी शताब्दी) तक नहीं हुआ आगमों का पहला वर्गीकरण समवायांग था। यह सबसे पहले नंदी (वीर-निर्माण में मिलता है। वहां केवल द्वादशांगी का दसवीं शताब्दी) में हुआ है।" यह बात निरूपण है। दूसरा वर्गीकरण अनुयोगद्वार किस आधार पर लिखी गई है, यह ज्ञात में मिलता है। वहां केवल द्वादशांगी का नहीं हो रहा है, क्योंकि अनुयोगद्वार, सूत्र नामोल्लेख मात्र है। तीसरा वर्गीकरण ३,४ में तो स्पष्टतः अंग-प्रविष्ट और नंदी का है, वह विस्तृत है।" अंग-बाह्य सूत्र का उल्लेख है। अंगुसत्ताणि, भाग १ की भूमिका पृ. ३१ १०. उत्तरज्झयणाणि, भूमिका, पृ. १२। में बताया गया है-“समवायांग और ११. दसवेआलियं, भूमिका, पृ. XI अनुयोगद्वार में अंग-प्रविष्ट और अंग
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