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आराधनासमुच्चयम् १२२
अनुग्रह, मैत्रीभाव, माध्यस्थ भाव और शल्य रहित वृत्ति अनुकम्पा है। जहाँ सब प्राणियों में समता या माध्यस्थ भाव है और दूसरे प्राणियों के प्रति दया का भाव है, वहीं वास्तव में शल्य के त्याग होने से स्वानुकम्पा है; क्योंकि सर्व प्राणियों के प्रति उपकार बुद्धि तथा मैत्री भाव ही अनुकम्पा है और वह भाव आत्महितकारी आत्मरक्षक है, अतः स्व अनुकम्पा है।
धर्मानुकम्पा, मिश्रानुकम्पा, सर्वानुकम्पा के भेद से अनुकम्पा तीन प्रकार की है।
पंच महाव्रत, पंच समिति, तीन गुप्ति रूप १३ प्रकार के चारित्र का पालन करने वाले महाव्रती, सर्व प्रकार के सावध योग से निवृत्त दिगम्बर साधुओं को देखकर चित्त का हर्षित होना, उन पर आने वाली आपत्तियों को दा. काना कानुजम्पा है।
अन्तःकरण में जब अनुकम्पा के भाव उत्पन्न होते हैं तब गृहस्थ मुनिराज के योग्य अन्नजल, निवासस्थान, निर्दोष प्रासुक औषधादि प्रदान करता है। अपनी शक्ति को न छिपाकर मुनिराज के उपसर्ग को दूर करता है। "हे प्रभो ! आज्ञा दीजिए" ऐसी प्रार्थना कर सेवा करता है। यदि कोई मुनि मार्गभ्रष्ट होकर दिग्मूढ़ हो गये हों तो उनको मार्ग दिखाता है। दिगम्बर मुनिराजों का समागम होने पर "आज मैं धन्य हो गया। आज मेरा जन्म सफल हो गया" ऐसा समझकर मन में आनन्दित होता है, धर्मसभा में उनके गुणों का कीर्तन करता है। मन में मुनिराजों को धर्मपिता वा धर्मगुरु समझता है, सदा मन में उनके गुणों का चिंतन करता है, ऐसे महात्माओं का पुन:संयोग कब होगा' ऐसा विचार करता है, उनके सहवास में हमेशा रहने की भावना करता है, दूसरे के द्वारा उनके गुणों का वर्णन सुनकर सन्तुष्ट होता है। यह धर्मानुकम्पा सम्यग्दर्शन की द्योतक है।
जो देशसंयमी सम्यग्दृष्टि है उनके दुःख को दूर करना मिश्रानुकम्पा है, क्योंकि यह मानव एकदेश ब्रतों का धारक है, अतः व्रतरूप धर्म के प्रति अनुकम्पा है। कुछ अंश में अव्रतरूप अधर्म भी उस प्राणी के हृदय में स्थित है। अत: अधर्म अनुकम्पा है इसलिए देशव्रती के प्रति जो अनुकम्पा है, अनुराग है, वह मिश्रानुकम्पा है।
जो प्राणी जिनधर्म से पराङ्मुख है वा जिनधर्म का पालन करने वाला है, परन्तु भूख-प्यास से आकुल-व्याकुल है, दरिद्र है, अंगविहीन है, ऐसे सर्वप्राणियों पर अनुकम्पा करना सर्वप्राणियों की रक्षा करने का भाव रखना सर्वानुकम्पा है।
सर्वश्रेष्ठ अनुकम्पा है, जीवों को दुःख के नाशक धर्म का उपदेश देना। मन में निरंतर विचार करना कि यह संसारी प्राणी संसार के दुःखों से कैसे छूट जाये, इसके संसार-परिभ्रमण का नाश कैसे हो, आदि भाव अनुकम्पा कहलाती है।
इस अनुकम्पा का दूसरा नाम दया एवं करुणा भी है। सर्व संसारी प्राणियों को दुःख से पीड़ित