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. अहिंसा का सूक्ष्म से सूक्ष्म अर्थ यदि कोई बता सके तो वे वीतराग ही बता सकते हैं। जिन्हें निरंतर ऐसा भाव है कि इस जगत् में किसी भी जीव को किंचित् मात्र भी दुःख नहीं देना है, और वैसा ही वर्तन में है, वही वीतराग हैं ! कोई जीव किसी जीव को मार ही नहीं सकता, वैसे ही कोई जीव किसी जीव को बचा नहीं सकता। चंदूभाई ने किसी जीव को मारने का भाव किया हुआ था और जब किसी जीव के मरने का टाइमिंग आ जाए, तब वह चंदूभाई के निमित्त से मरता है। मरणकाल से पहले कोई जीव मर ही नहीं सकता। यह तो मारने के जो भाव करता है, उससे भाव मरण होता है। भगवान ने 'स्थूल हिंसा मत करना' ऐसा नहीं कहा है, 'भाव हिंसा मत करना' ऐसा कहा है, अतः ऑटोमेटिक सभी प्रकार की अहिंसा आ जाती है। किसी जीव को बचाने के लिए दया नहीं रखनी है, लेकिन जीव को मारने का जो भाव हुआ, उस भाव मरण के लिए दया रखनी है! - योग दो प्रकार के हैं : एक ज्ञानयोग यानी कि आत्मयोग और दूसरा अज्ञान योग यानी कि अनात्म योग। अनात्म योग में मनोयोग, देहयोग और वाणीयोग समाविष्ट होते हैं। योग किसका होता है? जिसे जान लिया हो उसका या जो अनजाना हो उसका? जब तक आत्मा जाना नहीं हो, तब तक आत्मयोग किस तरह से होगा? वह तो देह को जाना, इसलिए देहयोग ही कहलाता है, और निर्विकल्प समाधि देहयोग से कभी भी प्राप्त नहीं हो सकती। विकल्पी कभी भी निर्विकल्पी नहीं बन सकता, वह तो जब आत्मज्ञानी सर्वज्ञपुरुष निर्विकल्प दशा में पहुँचा दें, तभी निर्विकल्प बनता है। प्रकट दीया ही अन्य दीयों को प्रज्वलित कर सकता है। - एकाग्रता क्या है? किसलिए करनी पड़ती है? जिसे व्यग्रता का रोग हो वही एकाग्रता करता है, इसमें आत्मा पर क्या उपकार? इन मज़दूरों को कहाँ एकाग्रता करने की ज़रूरत है? और 'ज्ञानीपुरुष' भी एकाग्रता नहीं करते। जो व्यग्रता के रोग पर एकाग्रता की दवाई चुपड़ते हैं, उससे आत्मा को क्या फायदा? ध्यान करें तो किसका करेंगे? ध्येय को जाने बिना किसका ध्यान
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