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कर्म उत्पन्न हो गया और जो मोहनीय की वजह से ऐसा कहता है, 'मैं प्रधानमंत्री हूँ', वह अहंकार है । यहाँ पर लोगों में पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) का अमल है । इसलिए जैसा है वैसा कहने की बजाय उल्टा कहते हैं।
आत्मा और दूसरे संयोगों के दबाव से भ्रांति उत्पन्न हो गई। भ्रांति से बिलीफ ही बदली है, ज्ञान नहीं । यानी कि अज्ञान था तो नहीं लेकिन बाद में संयोगों के दबाव से उत्पन्न हो गया । अंधेरे में भी शराब पीने के बाद में सेठ को कुछ नया ही होता है न!
मूल आत्मा को कभी भी अज्ञान हुआ ही नहीं । विशेष परिणाम से ही रोंग बिलीफ हो गई है, न कि रोंग बिलीफ से विशेष परिणाम उत्पन्न हुआ है और रोंग बिलीफ से पूरा संसार खड़ा हो गया है। इसके बावजूद भी इसमें मूल आत्मा खुद तो अज्ञान से, रोंग बिलीफ से, सभी से तीनों ही काल में मुक्त ही है ।
बर्फ से भरे ग्लास में कुछ ही देर में ग्लास के बाहर पानी जैसा दिखने लगता है, उसके बाद पानी की बूँदें बनती हैं, फिर पानी की धार बहती है। उसके बाद पानी नीचे भी बहने लगता है । इसमें बर्फ वैसे का वैसा ही है, वह कुछ भी नहीं करता है लेकिन संयोगों की वजह से यह सब होता है। इसमें कौन ज़िम्मेदार है ?
(६) विशेष भाव - विशेष ज्ञान
अज्ञान
संसार का ज्ञान, वह ज्ञान ही है, अज्ञान नहीं है लेकिन अगर मोक्ष में जाना हो तो वह अज्ञान है । आत्मा के वास्तविक ज्ञान को समझना पड़ेगा। लोग विशेष ज्ञान को अज्ञान कहते हैं ।
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विभाव अर्थात् मूल ज्ञान - दर्शन स्वाभाविक तो हैं ही लेकिन यह विशेष भाव, विशेष ज्ञान उत्पन्न हो गया है। जिसे नहीं जानना है, उसे जानने गए, वह है विशेष ज्ञान ।
अज्ञान भी एक प्रकार का ज्ञान ही है । वास्तव में उसे अज्ञान नहीं
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