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पूरा व्यवहार संयोगों से भरा हुआ है । मोक्ष में जाने का समय आए तब उसे सभी साधन मिल जाते हैं । जैसे कि शास्त्र, ज्ञानी पुरुष...
"कोटि वर्षनुं स्वप्न पण, जागृत थतां समाय, एम विभाव अनादिना, ज्ञान थतां दूर थाय ।"
(" कोटि वर्षों का स्वप्न भी जागृत होते ही खत्म हो जाता है । उसी प्रकार अनादि का विभाव ज्ञान होते ही दूर हो जाता है । " )
- श्रीमद् राजचंद्र
(५) अन्वय गुण व्यतिरेक
गुण
निरंतर मूल आत्मा के साथ रहने वाले गुण खुद की मालिकी के हैं, वे अन्वय गुण हैं, जैसे कि ज्ञान, दर्शन, सुख, शक्ति, ऐश्वर्य । विभाव दशा में उत्पन्न होने वाले गुण, वे व्यतिरेक गुण अर्थात् क्रोध-मान- मायालोभ हैं।
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मोक्ष के लिए सद्गुणों की कोई कीमत नहीं है क्योंकि वे व्यतिरेक गुण हैं, पौद्गलिक गुण हैं, विनाशी गुण हैं I
'व्यवस्थित' शक्ति तो व्यतिरेक गुण उत्पन्न होने के बाद में उत्पन्न हुई है, पहले नहीं।
नगीनदास सेठ रात को ज़रा जाम पर जाम लगा दें तो ? ' मैं प्रधानमंत्री हूँ' ऐसा बोलने लगेंगे न ? उस समय शराब का अमल (असर) बोलता है, भ्रांति है। इसमें आत्मा नहीं बिगड़ा है, इसमें सेठ का ज्ञान बिगड़ा है। और जड़ व चेतन की भ्रांति से दर्शन बिगड़ता है, जो उल्टा ही दिखाता है ।
माया अर्थात् स्वरूप की अज्ञानता । 'मैं कौन हूँ' की अज्ञानता ही माया है।
अहंकार और मोहनीय में क्या फर्क है ?
सेठ ने शराब पी तो शराब का अमल (असर) अर्थात् मोहनीय
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