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अपभ्रंश भाषा का विकास
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भी मुक्त न रहे और उन्होंने तत्कालीन भाषा-सम्बन्धी परिवर्तनों को दृष्टि में रखते हुए प्राचीन छान्दस या वैदिक भाषा को आधार मानकर उदीच्य देश में प्रचलित जनसाधारण की बोलचाल की भाषा का आश्रय लिया । यह बोलचाल की भाषा अभी तक प्राचीन वैदिक भाषा या छान्दस के समान ही थी । इस लौकिक या जनसाधारण की बोलचाल की भाषा को पाणिनि जैसे वैयाकरण ने संस्कृत रूप दिया । यह तत्कालीन शिक्षित ब्राह्मण समाज की संस्कृत भाषा बन गई । यह भाषा भी तत्कालीन बोलियों, प्रान्तीय भाषाओं के शब्दों और वाग्धाराओं ( मुहावरों) आदि के प्रभाव से वंचित न रह सकी । इस भाषा को उत्तर भारत के सब ब्राह्मणों ने अपनाया । पश्चिम के ब्राह्मणों ने भी इसका स्वागत किया । यह भाषा छान्दस और ब्राह्मण ग्रंथों की ब्राह्मी भाषा के अनन्तर विकास में आई । यह उदीच्य प्रदेशीय साधारण बोलचाल की भाषा के ऊपर प्रश्रित थी ।
संस्कृत, शिक्षित और शिष्ट समुदाय की भाषा थी और वैदिक संस्कृति की पृष्ठभूमि पर खड़ी थी अतएव इसका प्रभाव चिरकाल तक बना रहा । जनसाधारण में यह आदर की दृष्टि से देखी जाती थी । धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रंथों के अतिरिक्त अर्थ - शास्त्र, नीति-शास्त्र, धर्म-शास्त्र, व्याकरण, आयुर्वेद, काम - शास्त्र संबन्धी ग्रंथों का भी संस्कृत
में प्रणयन इस भाषा के विस्तृत प्रचार एवं गौरव का प्रमाण है |
संस्कृत को बौद्धों और जैनों ने पहले तो उदासीनता की दृष्टि से देखा किन्तु पीछे से वे भी इसके प्रभाव से न बच सके । बौद्धों की 'गाथा' भाषा संस्कृत से अत्यधिक प्रभावित हुई । संस्कृत साहित्य में अनेक बौद्धों और जैनों का सहयोग भी इसी दशा की ओर संकेत करता है ।
यहां तक कि संस्कृत धीरे-धीरे भारत से बाहर मध्य एशिया, लंका, बृहत्तर भारत तक भी फैल गई । चीन में प्रविष्ट होकर उसने जापान को भी प्रभावित किया ।
ई० पू० छठी शताब्दी से लेकर ईसा की १० वीं शताब्दी तक प्रचलित भाषाओं . को ग्रियर्सन ने द्वितीय श्रेणी की प्राकृत ( Secondary Prakrits ) कहा है । डा० सुनीतिकुमार चैटर्जी ने इस काल की भाषा को Middle Indo Aryan Speech कहा है । इस काल को मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल कहा जा सकता है । इस काल की भाषा को उन्होंने तीन अवस्थाओं में विभक्त किया है ।
१. मध्यकालीन भारतीय आर्य-भाषा की प्रारंभिक अवस्था (Old or Early M. I. A. ) यह काल ४०० ई० पू० से लेकर १०० ई० तक प्राकृतों की प्रारम्भिक अवस्था का था ।
२. मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा की मध्यकालीन अवस्था ( Transi - tional or Second M. I. A. ) यह काल १०० ई० से लेकर ५०० ई० तक साहित्यिक प्राकृतों का काल था ।
१. प्रियर्सन - लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया, १६२७ ई०, पृ० १२१ ।