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अपभ्रंश भाषा का विकास
उदीच्या (अर्थात् आधुनिक पेशावर प्रदेश और उत्तरीय पंजाब की भाषा) में अधिक परिवर्तन नहीं हुआ । प्राचीन रूढ़ि और आर्यभाषा की परंपरा इस देश में चिरकाल तक प्रचलित रही। ब्राह्मण ग्रंथों में इस प्रदेश की भाषा की उत्कृष्टता और शुद्धता की ओर निर्देश किया गया है।
तस्मादुदीच्यां प्रज्ञाततरा वागुद्यते। उदञ्च उ एव यन्ति वाचं शिक्षितुम्, यो वा तत मागच्छति तस्य वा शुश्रूषन्त इति।
शांखायन-कौषीतकी ७. ६. प्राच्या के बोलने वाले वैदिक मर्यादा का, ब्राह्मणों की सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था का पालन न करते थे। उन्हें व्रात्य ( सावित्रीभ्रष्ट ) कहा जाता था। इन लोगों की और इनकी भाषा की निन्दा की गई है। ब्राह्मणों में निर्देश है कि ये लोग कठिन शब्द के न होते हुए भी उसे कठिन समझते थे। अदीक्षित होते हुए भी दीक्षितों की वाणी का प्रयोग करते थे। २ ।
अदुरुक्त वाक्यं दुरुक्तमाहु ः। अदीक्षिता दीक्षित वाचं वदन्ति ।
ताण्ड्य-पंचविंश ब्राह्मण १७. ४. इस देश में संभवतः प्राकृत भाषा के वे लक्षण प्रकट हो गये थे जिनके अनुसार संयुक्त व्यंजनों का समीकरण हो जाता है। समस्त शब्दों या संयुक्त व्यंजनों के उच्चारण में भी शिथिलता प्रस्फुटित हो रही थी। प्राच्य देशवासी उदीच्यों के संयुक्त व्यंजनों के उच्चारण या अन्य ध्वनि-सम्बन्धी विशेषताओं से अपने आप को परिचित न कर सके। मध्यदेशीया, उदीच्या और प्राच्या के मध्य का मार्ग था। उदीच्यों के चरम रूढ़िपालन और प्राच्यों के शिथिल उच्चारण के बीच का मार्ग मध्यदेशीया ने अनुसरण किया।
उदीच्या और प्राच्या में व्यंजन समीकरण के अतिरिक्त र और ल के प्रयोग में भी भिन्नता थी । उदीच्या में र के प्रयोग की प्रचुरता थी ( जैसे राजा), प्राच्या में र के स्थान पर ल (राजा=लाजा) और मध्यदेशीया में र एवं ल दोनों का प्रयोग था। इस भेद के अतिरिक्त उदीच्या और प्राच्या में एक भिन्नता और विकसित हो गई थी। र और ऋ के बाद दन्त्य व्यंजन के स्थान पर मूर्धन्य व्यंजन के प्रयोग की प्रवृत्ति प्राच्या में परिलक्षित होने लग गई थी। वैदिक भाषा के कृत, अर्थ, अर्ध प्रादि शब्द प्राच्या में कट, अट्ठ, अड्ढ रूप में प्रयुक्त होने लग गये थे, मध्यदेशीया में कत या कित, अत्थ, अद्ध रूप में और उदीच्या में उसी शुद्ध रूप में। उत्तर भारत में यात्रा के मार्ग ऐसे न थे जिनसे पश्चिम से पूर्व और पूर्व से पश्चिम आने-जाने में बाधा
१. इंगे मार्यन एंड हिन्दी, पृ० ५६ तथा वहीं से उद्धृत । २. वही पृ० ५६ । ३. वही पृ० ५७ ।