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मालवा के शाजापुर जिले की अप्रकाशित जन प्रतिमाएँ
शीलरस रास" देखने मे पाया है। इसके ग्रथकार मोर मानस्तम यहाँ सुरक्षित है जो परमार कालीन मूर्ति
ना काल ने स. १६६१ मे मक्सी तीर्थ में इमे शिल्प से मडिन है। केवल सुन्दर सी को ही जन प्रतिमायो किया। इसकी एक प्रति को 'गुजरात ना जैन कवि', पर अलग शोध-लेख अपेक्षित है । यहा पर धातु-प्रतिमाएं
२.प.८८३ मे प्रकाशित किया गया है। उज्जैन की १५१० और १४२५ विक्रम संवत की मिली है। सुमतिनाथ प्रति मे 'मगसी जी को स्तवन' अलग भाग है और इसमे की एक पद्मासन मे और महावीर की एक खड्गासन रूप मकमी माहात्म्य' भी दिया गया है और इस स्थान को की प्रतिमा भव्य है। वे भी १३वी शताब्दी के उत्तराद्ध प्रतिशय क्षेत्र कहा गया है । निश्चय ही २०० वर्ष की में निर्मित हुई थी। मुन्दरसी की प्रतिमाएँ विशाल है तथा परम्परा को इस हस्तलिखित ग्रन्थ में लिपिबद्ध किया गया काले पत्थर में निर्मित है। १३ फीट ऊँची पदमासन है। अत: १३-१४वी शताब्दी मे मक्सी एक जैन तीर्थ के में पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्वत ही अपनी उत्कृष्टता एवं रूप में विख्यात था । यहाँ लगभग ५८ जैन मतिया देखने भव्यता का प्रमाण प्रस्तुत करती है। इसी प्रकार सखेडी, में पाई (जिनमे से २७ पर प्रमिलेख है। जो १२वी से जामनेर और प्राटा में भी लगभग १०३ जैन अवशेषों १६वी शताब्दी के मध्य निर्मित हुई थी । जैन गच्छ, को देखा गया एव उनकी सूची बनाई गई। मदारक, सघ एव गुरु शिष्यावली और उनके नाम यहाँ से पचार में एक ऐमी गढी देखने में पाई जो जैन भग्नानिमित जन हस्तलिखित ग्रथो मे मिलता है । महावीर, वशेषो से भरी पड़ी है। लगमग ७८ जन अवशेष तो हमने पार्श्वनाथ, प्रादिनाथ, श्रेयासनाथ और सुमतिनाथ की सूचीबद्ध किये । अन्य मूर्तियां भी समीप के घरो मे जड सलक्षण प्रतिमाए है । वाहन, लाछन एवं यक्ष-यक्षिणी भी ली गई है, उन्हें नही लिख सके। यहा की एक ३ फुट x जन प्रतिमा-विज्ञान के आधार पर है। २४ तीर्थकरो के २ फुट जैन प्रतिमा को हम लोग उठा कर भी लाये एक पद-चिह्न-प्रस्तर-फलक पर परमा-कालीन लिपि में और अब उसे जन संग्रहालय, जर्यासहपुरा, उज्जैन में सभी तीर्थकरो के नाम है और अन्त में इस शिल्प की नामपट्ट, प्राप्ति स्थान एव प्राकार के माथ प्रदशित भी निमिति का समय विक्रम संवत १३५० दिया गया है। कर दिया है। शाजापुर और मारंगपुर में भी लगभग जन पद्मावती, धातुयंत्र एवं मानस्तंम यहा की अन्य जन २२ जन प्रतिमाएं देखी जो अभी तक अप्रकाशित थी। पुरातात्विक उपलब्धियों है । मदिर मे श्वेताम्बर एव इनमे मे पर चौदहवी-पन्द्रहवी शताब्दी के अभिलेख दिगम्बर दोनो ही समान रूप से प्राते है। यहाँ है। इसी प्रकार एक प्रतिमा (१२१० विक्रम संवत की) संवत १५४८ में श्री जीवराज पापड़ीवाल द्वारा निमिन शजालपुर के एक ग्राम में देखने को मिली। संगमरमर प्रतिमा अभिलेख-युक्त है।
उपयुक्त विवरण मे यह सपाट है, कि परमार युग में शाजापुर जिले की डाकोदिया मदी के सुन्दरमी ग्राम शाजापुर जिला जैन धर्म का एक केन्द्र था और मालवा से लगभग ५२ जन प्रतिमाएँ प्रकाश में पाई । यहा उन्हे ___ का प्रमुख जैन तीर्थ था। यहा को जैन मूर्तियों को धीरे-धीरे एक स्थान पर एकत्रित कर दिया गया है। वैसे पूग ग्राम प्रकाशित एव सग्रहीत किया जाना चाहिये । एक टीले के पास बसा है जिसमे मे प्रतिवर्ष तीर्थकर प्रतिमाएँ, जैन मंदिर के मग्न माग में बरसात के बाद दिखाई
४ धन्वन्तरि मार्ग, पड़ जाती हैं। यहा किसी समय विशाल जैन मन्दिर
गनी नं. ४, माधवनगर, अवश्य ही रहा होगा । पार्श्वनाथ, महावीर, जैन पद्मावती
उज्जैन (म प्र)