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जन प्राचार्यों द्वारा संस्कृत में स्वतन्त्र प्रन्यों का प्रणयन
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जैन प्राचार्यों की उल्लेखनीय संस्कृत रचनाएँ शान्सिसरि (११वीं शती) कृत (सिद्धसेन के न्यायावतार
की प्रथम कारिका पर) सटीक पद्यबन्धवार्तिक ; संस्कृत रचनामों की सुदीर्घ परम्परा
जिनेश्वर सरि (१०५२ ई० लगभग) कृत (सिद्धसेन के जैन दर्शन, जैन न्याय व सामान्य दर्शन विषय में
न्यायावतार की पहली कारिका पर) पद्यबस्य प्रभालक्षण, प्राचार्य उमास्वाति (वि. २री शती) कृत तत्त्वार्थसूत्र,
प्रद्युम्न सूरि के शिष्य अभयदेवसूरि (१०६३ ई. लगभग) प्राचार्य समन्तभद्र (वि० २-३री शती) कृत प्राप्तमीमासा,
कृत (सन्मतितर्क पर) बृहत्काय टीका; मुनि चन्द्रमूरि युकत्यनुशासन और स्वयम्भूस्तोत्र; मल्लवादी (ई० ३५०.
के शिष्य बाविवेवसरि (१२वी शती) कृत प्रमाणनयतत्त्वा४३०) कृत (द्वादशार) नयचक्र ; पूज्यपाद देवनन्दी
लोकालंकार और इसी ग्रन्थ पर स्याद्वादरत्नाकर नामक (वि० ५.६ शती)कृत सर्वार्थसिद्धि (तत्त्वार्थमूत्र पर टीका),
विस्तृत व्याख्या ; प्राचार्य हेमचन्द्र (ई. १०८६-११७२) सिद्धसेन (वि० ६.६ शती) कृत सन्मतितर्क, न्यायावतार
कृत प्रमाणमीमासा, अन्ययोगव्यवच्छेदिका, वीरचन्द्रसरि और कुछ बत्तीसियों, प्राचार्य हरिभवसूरि (७०५
के शिष्य देवभद्रसूरि (११४० ई० लगभग) कृत (सिद्ध७७५ ई.) कृत पड्दर्शनसमुच्चय तथा शास्त्रवार्तासमुच्चय
सेन के न्यायावतार पर) टिप्पण, वाविराजसरि (वि. तथा सिद्धसेन कृत न्यायावतार पर वृत्ति ; प्रकलक
१२वी शती का उत्तरार्द्ध) कृत प्रमाणनिर्णय, (प्रकलक (७२०-७८० ई.) द्वारा रचित न्यायविनिश्चय लपी
के न्यायविनिश्चय पर) विवरण, रत्नप्रभसरि (११८१ यस्त्रय, सिद्धिविनिश्चय, प्रमाण मग्रह, (तत्त्वार्थमूत्र पर)
ई० लगभग) कृत स्याद्वादरत्नाकरावतारिका; वायड. तत्त्वार्थ गजवार्तिक, (समन्तभद्र को प्राप्तमोमासा पर)
गच्छीय जीवदेवसूरि के शिष्य जिनदत्तसूरि (वि० १२६५) अष्टशती ; प्राचार्य विद्यानन्द (ई० ७७५-८४०) कृत कृत विवेकविलास ; प्राचार्य मल्लिषेण (१२८२ ई. प्रमाणपरीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा, प्राप्तपरीक्षा (सर्वार्थ
लगभग) कृत (हेमचन्द्र को प्रन्ययोगव्यवच्छेदिका, पर) सिद्धि के प्रथम श्लोक के भाष्य के रूप मे), (तत्त्वार्थ
स्याद्वादमञ्जरी, मेरुतुग (१३६२ ई० लगभग) कृत सूत्र पर) तत्वार्थश्लोकवातिक, समन्तभद्र के युक्त्यनु- पडदर्शननिर्णय (अप्रकाशित); जयसिंह सूरि (१५ वीं शासन पर टीका, प्राप्तपरीक्षा पर स्वोपज्ञ टीका, सिद्धसेन शती) कृत न्यायसारदीपिका, प्राचार्य गुणरत्न । ई० गणि (८वी शती) कृत तत्वार्थमूत्र पर टीका, सिद्धषि १३४३-१४१८) कृत (षड्दर्शनसमुच्चय पर) टीका; गणि (ई. ६०५ लगभग) कृत (सिद्धसेन के न्यायावतार सोमतिलकसरि (वि. १३५५.१४२४) कृत (षडदर्शन पर) टीका, माणिक्यनन्दी (१०.११ शती ई०) वृत ममच्चय पर) विवृति ; शुभविजय (१७वी शती) परीक्षामुख, प्रभाचन्द्र (६८०-१८६५ई.) कृत (माणिक्य- कृ1 स्याद्वादमाला ; विनयविजय (१६५२ ई.) कृत नन्दी के परीक्षामुख पर) प्रमयकमल मार्तण्ड, (अकलक नयकणिका; यशोविजय (१८वी शती) कृत जैन तक के लघीयस्त्रय पर) न्यायकुमचन्द्र , अनन्तवीर्य' भाषा, अनेकान्तव्यवस्था, नयप्रदीप, ज्ञान विन्दु, न्याय खण्ड(वि० ११वी शती) कृत (माणिक्यनन्दी के परीक्षामन खाद्य, न्यायालोक प्रादि मौलिक व व्याख्यात्मक ग्रन्थ पर) प्रमेयरत्नमाला, (अकलक के सिद्धिविनिश्चय पर) सस्कृत साहित्य की उल्लेखनीय रचनाएँ है। विशाल टीका, अकलक के ही प्रमाणसंग्रह पर भाष्य, जैन धर्म प्राचार व नैतिक उपदेशपर्ण साहित्य की १. पं० जुगलकिशोर जी मस्तार के मन मे वि० ६ठी में उनका मत ६ या ७वी के सम्बन्ध में दल हमा
शती के मध्य ३ सिद्धसेन हुए है। प्रथम सिद्धसेन (वि० ६-७ शती) ने सन्मतितकं, दूगरे (वि० २. प्रो. उदयचन्द्र जन के मत में २ अनन्तवीर्य हुए। ७-८ शती) ने न्यायावतार और अन्तिम गिद्ध मेन ने प्रथम ने मिद्धिविनिश्चय लिखा, दूसरे (लघु अनन्तकुछ बत्तीसियों लिखी। प० सुखलाल के मन में वीर्य) ने प्रमेय रत्न माला की रचना की। सिद्धसेन दिवाकर का समय वि० ५वी शती है। बाद
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