Book Title: Anekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 123
________________ माविपुराण में राजनीति १११ से किसी गाय का पैर टूट जाए तो ग्वाला उपचार भावि पर अनुरक्त रहते है और कभी भी उसका साथ नहीं से उस पर को जोड़ता है, गाय को बांधकर रखता है, छोड़ते।" बंधी हुई गाय को तृण देता है और उसके पैर को मजबूत ५. योग्य स्थान पर नियुक्ति-ग्वाला अपने पशुओं करने का प्रयत्न करता है तथा पशुओं पर अन्य उपद्रव के समूह को कांटों और पत्थरो से रहित तथा सर्दी-गर्मी आने पर भी वह उसका शीघ्र प्रतिकार करता है। इसी की बाधा से शून्य वन मे चराता हुमा प्रयत्नपूर्वक उनका प्रकार, राजा भी अपनी सेना में घायल योद्धा को उत्तम पोषण करता है। इसी प्रकार, राजा को भी अपने सेवकों वैद्य से औषधि दिलाकर उसकी विपत्ति का प्रतिकार करे को किसी उपद्रवहीन स्थान में रखकर उनकी रक्षा करनी और वह वीर जब स्वस्थ हो जाए तो उसकी प्राजीविका चाहिए। यदि वह ऐसा नही करेगा तो राज्य प्रादि का को व्यवस्था करे। ऐसा करने से मृत्यवर्ग सदा सन्तुष्ट परिवर्तन होने पर चोर, डाक तथा समीपवर्ती मन्य राजा रहता है । जैसे ग्वाला गांठ से गाय की हड्डी के विचलित उसके इन सेवको को पीड़ा देने लगेगे। हो जाने पर उस हड्डी को वही जमाता हुआ उसका योग्य ६. कण्टकशोधन-राजा को चाहिए कि वह चोर, प्रतिकार करता है, वैसे ही राजा को भी संग्राम में किसी प्रादि की प्राजीविका बलात् नष्ट कर दें; क्योकि काटों मुख्य भृत्य के मर जाने पर उसके पद पर उसके पुत्र के दूर करने से ही प्रजा का कल्याण संभव है।" अथवा भाई को नियुक्त करना चाहिए। ऐसा करने से ७. सेवकों की माजीविका-जैसे ग्बाला नवजात भृत्यगण राजा को कृतज्ञ मानकर अनुराग करने लगते है बछड़े को एक दिन तक माता के साथ रखता है, दूसरे और अवसर पडने पर निरन्तर युद्ध करते रहते हैं।" दिन दयायुक्त हो उसके पर मे धीरे-से रस्सी बांधकर ४. सेवकों की दरिद्रता का निवारण तथा सम्मान- खंटी से बांधता है, उसकी जरायु तथा नाभि के नाल को जैसे गायो के समूह को कोई कीड़ा काट लेता है तो बड़े यत्न से दूर करता है, कीड़े उत्पन्न होने की शका ग्वाला योग्य औषधि देकर उसका प्रतिकार करता है, वैसे होने पर उसका प्रतिकार करता है पोर दूध पिलाकर उसे ही राजा भी अपने सेवक को दरिद्र अथवा खेदखिन्न जान प्रतिदिन बढ़ाता है, उसी प्रकार राजा को भी चाहिए कि उसके चित्त को सन्तुष्ट करे। जिस सेवक को उचित वह प्राजीविका के हेतू अपनी सेवा में प्रागत सेवक का माजीविका प्राप्त नही होती है वह अपने स्वामी के इस उसके योग्य प्रादर-सम्मान से सन्तुष्ट करे और जिन्हें प्रकार के अपमान से विरक्त हो जाएगा, प्रतः राजा कभी स्वीकृत कर लिया है तथा जो अपने लिए क्लेश सहन अपने सेवक को विरक्त न करे। सेवक की दरिद्रता को करते है, ऐसे सेवको की प्रशस्त भाजीविका प्रादि का घाब मे कीड़े उत्पन्न होने के समान जानकर राजा को विचार कर उनके साथ योग-क्षम का प्रयत्न करे । शीघ्र उसका प्रतिकार करना चाहिए। सेवको को अपने योग्य परुषों की नियक्ति - शकुन प्रादि का स्वामी से उचित सम्मान प्राप्त कर जैसा सन्तोष होता है निश्चय करने में तत्पर ग्वाला जब पशुप्र' का खरादन वैसा सन्तोष बहुत धन देने पर भी नही होता है । जैसे लिए तैयार होता है तब वह (दूध आदि को) परीक्षा ग्वाला अपने पशुओं के झण्ड में किसी बड़े बैल को अधिक कर उपयक्त पशु खरीदता है, उसी प्रकार राजा का भार वहन करने में समर्थ जानकर उसके शरीर की पुष्टि परीक्षा किए हए उच्चकुलीन सेवकों को प्राप्त करना के लिए नाक मे तेल आदि डालता है वैसे ही राजा भी चाहिए और पाजीविका के मूल्य से खरीदे हुए उन सेवकों अपनी सेना में किसी योद्धा को अत्यन्त उत्तम जानकर को समयानसार योग्य कार्यों में लगा देना चाहिए, क्योकि उसे अच्छी प्राजीविका देकर मम्मानित करे। जो राजा वह कार्य रूपी फल सेवकों द्वारा ही सिद्ध किया जा सकता अपना पराक्रम प्रकट करने वाले वीर पुरुष को उसके है। जिस प्रकार पशुमो के खरीदने मे किमी को प्रतिभू योग्य सत्कारों मे सन्तुष्ट रग्वता है उसके भत्य सदा उस (माक्षी) बनाया जाता है, उसी प्रकार सेवको के संग्रह में १७. ४२.१४६-१५२६८. ४२.१५३.१६० ६६.१००. ४२.१६१-१६६ १०१. ४२.१६१-१६६

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