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१६०, वर्ष २९, कि० ४
भनेकान्त
(महावीर मानस महाकाव्य) को हिन्दी साहित्येतिहास के उनकी उपलब्धि और उपयोगिता का प्राकलन किया गया छायावाद-युगीन अप्रतिम कवि जयशंकर प्रसाद की अमर है। कथा-वस्तु की अपेक्षा प्रस्तुत महाकाव्य काव्यगत कृति 'कामायनी' के रूप में टांकने का प्रयास किया है। उत्कृष्टता की दृष्टि से अधिक सफल है । बहुलछन्दात्मक महाकाव्य का शीर्षक 'वीरायन' ही इस मोर संकेत करता इस काव्य में स्थान-स्थान पर स्वतन्त्र प्रगीतों का नियोजन है। प्रस्तुत कहाकाव्य वीर निर्वाण सम्वत् २५०० (सन् स्पृहणीय है । प्रकृति का स्वतन्त्र, मालम्बन तथा उद्दीपन १९७५) में भारतोदय प्रकाशन, वेस्ट एण्ड रोड, मेरठ से सभी रूपों मे मर्मस्पर्शी चित्रण कवि ने किया है । प्रकाशित किया गया है। महाकवि ने जिनेन्द्र भगवान भगवान महावीर के जीवन को सम-सामयिक सन्दर्भ में महावीर की वन्दना, अर्चना तथा उनकी प्रमरवाणी, प्राप्त देखने के परिणामस्वरूप वर्तमानकालीन भारत की बचनों के सुदूरगामी व दीर्घकालीन प्रभाव-प्रसार के उद्देश्य समस्याग्रो, प्रभावों कुरीतियों आदि के निरूपण व उनके से ही प्रस्तुत महाकाव्य की रचना की है। स्वयं महा. समुचित समाधान के उपायों का भी निर्देश इतस्ततः काव्यकार के शब्दों में-"श्रद्धा ने तपस्या का व्रत लिया, प्राप्य है । परन्तु स्थान-स्थान पर प्रभु महावीर की, प्रकृति संकल्प किया कि तपालोक वीर भगवान पर महाकाव्य की, दृश्यादृश्य शक्तियों, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शारदा रचूंगा । 'वीरायन' महाकाव्य से भगवान महावीर का आदि दिव्यादिव्य देवों की, काव्य-साफल्य, जनकल्याण अर्चन किया है और काव्य रचने का उद्देश्य है जन-जन तथा राष्ट्रोद्धार के लिए अभ्यर्थना, वन्दना, प्रार्थना कथामें भगवान महावीर की वाणी का सन्देश देना ।' 'मेरी प्रवाह के व्यवधान है। यह रचना स्वान्तःसुखाय होते हुए भी लोक हितकारी
'अवन्तिका के शब्द शिल्पी' महाकाव्यकार डा० छैल
बिहारी गुप्त विरचित 'तीर्थकर महावीर' महाकाव्य, महाकाव्य सम्बन्धी नवीन लक्षणों, नवीन मूल्यों पर हिन्वी जैन महाकाव्यो की नवीनतम उपलब्धि है। मुनि माधारित प्रस्तुत बृहदाकार ग्रन्थ मे १५ सर्ग है, जिनके श्री विद्यानन्द को समर्पित उपर्युक्त ग्रन्थ का प्रणयन १७ शीर्षक तनिहित वर्ण्य विषय के अनुरूप निम्नलिखित अक्टूबर, १९७४, गुरुवार को प्रातः ७ बजकर १० मिनट
पर प्रारम्भ हुमा तथा इसकी परिसमाप्ति हई १७ फरवरी,
१९७५, सोमवार को प्रातः ८ बजकर १० मिनट पर ।' पुष्प प्रदीप, पृथ्वी पीड़ा, बाल कुमुदनी, जन्म-ज्योति,
प्रस्तुत महाकाव्य इसी वर्ष, अर्थात् १९७६ ई. के मार्च बालोत्पन्न, जन्म-जन्म के द्वीप, प्यास और अंधेरा, सन्ताप,
महीने मे 'श्री वीर निर्वाण-ग्रन्थ प्रकाशन समिति, इन्दौर' विरक्ति, वनपथ दिव्य दर्शन, ज्ञान-वाणी, उद्धार, अनन्त
से प्रकाशित हुया है। 'सर्गबद्धो महाकाव्यम्' सूत्र के तथा युगान्तर । जैसा कि सर्ग के नामों से स्पष्ट है, तीर्थ
माघार पर कवि ने तीर्थकर भगवान महावीर के इतिवृत्त कर महावीर की प्रमुख कथा चौथे सर्ग से ही प्रारम्भ
को पाठ सर्गों में विभाजित किया है। महाकाव्यकार ने होती है। उससे पूर्व तो महाकवि के विविध शब्द पुष्पों से कथा-निर्वाह में ऐतिहासिक सत्यता, साम्प्रदायिक एवं देवादेव इष्टों की अभ्यर्थना, प्राकृतिक सौन्दर्य-सुषमा का। पारम्परिक जैन मान्यताप्रो की अक्षुण्णता का पूरा ध्यान विशद वर्णन तथा सतयुग से कलियुग तक के प्रावर्तन- रखा है। काव्य का कोई भी प्रसंग या कल्पना इतिहास परिवर्तन की विस्तृत विवेचना की है। प्रन्तिम सर्ग विसंगत नही है। इतर प्रकरणो को अनावश्यक विस्तार 'युगांतर' में निर्वाणोपरांत भगवान महावीर के अमर न देकर धीर, प्रशात, धीरोदात्त, सन्मति भगवान महावीर वचनों व सिद्धान्तों की जीवन एवं जगत को देन तथा के जीवनवृत्त को प्रसाद तथा माधुर्य सयुत काव्य शैली में
१. 'वीरायन' (महावीर मानस महाकाव्य) का "पूर्वालोक"- लेखक- श्री रघुवीर शरण 'मित्र', पृ० ६.१० २. 'तीर्थकर महावीर' (महाकाव्य)-डा. छलविहारी गूप्त-'उपक्रमणिका' के उपरांत में