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वीर सेवा मन्दिर
स्थापित : १६२६ वीर सेवा मन्दिर समाज के ऐसे धर्मवत्सल १००० विद्यादानियों की मावश्यकता है जो सिर्फ एक बार अनुदान देकर जीवन
२१, दरियागंज, नई दिल्ली-२ भर शास्त्रदान के उत्कृष्ट पुण्य का संचय करते रहें। वीर सेवा मन्दिर उत्तर भारत का अग्रणी जैन
'वीर सेवामन्दिर' की स्थापना प्राज से ४७ वर्ष पूर्व | संस्कृति, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व एवं दर्शन शोध स्व. श्री जगलकिशोर मुस्तार, स्व. श्री छोटेलाल जैन | संस्थान है जो १९२६ से अनवरत अपने पुनीत उद्देश्यों की तथा वर्तमान अध्यक्ष श्री शान्ति प्रमाद जैन प्रभूति जाग्रन
सम्पति में सलग्न रहा है । इपके पावन उद्देश्य इस बनायो के सत्प्रयत्नों से हुई थी। तब से जैनदर्शन के
- जैन-जनेतर पुरातत्व सामग्री का सग्रह, संकलन प्रचार तथा ठोस साहित्य के प्रकाशन मे वीर सेवा मन्दिर
और प्रकाशन । ने जो महत्त्वपूर्ण कार्य किक है वे सुविदित है और उनके
प्राचीन जन-जनेतर ग्रन्थो का उद्धार । महत्त्व को न सिर्फ भारत मे बल्कि विदेशो मे भी विद्वानों
0 लोक हितार्थ नव साहित्य का सृजन, प्रकटीकरण और ने मुक्तकण्ठ से माना है।
प्रचार । वीर सेवा मन्दिर' के अपने विशाल भवन में एक
'अनेकान्त' पत्रादि द्वारा जनता के प्राचार-विचार सनियोजित ग्रन्यागार है जिसका समय-समय पर रिमचं
को ऊँचा उठाने का प्रयत्न। करने वाले छात्र उपयोग करते है। दिल्ली से बाहर के जैन साहित्य, इतिहास और तत्त्वज्ञान विषयक अनगोधार्ता छात्रों के लिए यहां ठहरकर कार्य करने के लिए। संधानादि कार्यों का प्रसाधन और उनके प्रोत्तेजनार्थ छात्रावास की भी व्यवस्था है।
वत्तियों का विधान तथा पुरस्कारादि का प्रायोजन । अब तक जो भी कार्य हर है, पापके सहयोग से ही विविध उपयोगी सस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, हिन्दी एवं हो पाए है। यदि 'वीर संवा मन्दिर' को कमजोर प्राविक अंग्रेजी प्रकाशनो; जैन साहित्य, इतिहास और तत्त्वज्ञान स्थिति को प्रापका थोड़ा सम्बल मिल जाए तो कार्य अधिक | विषयक शोध-अनुमंधान ; सुविशाल एवं निरन्तर प्रवर्धव्यवस्थित तथा गतिमान हो जाए। 'पाप २५१ २० मात्र मान ग्रन्थगार, जैन संस्कृति, साहित्य, इतिहास एव पुरादेकर आजीवन सदस्य बन जाएँ' तो यापकी सहायता
तत्व के समर्थ अग्रदूत 'अनेकान्त' के निरन्तर प्रकाशन एवं जीवन भर के लिए 'वीर सेवा मन्दिर' को प्राप्त हो।
अन्य अनेकानेक विविध साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिसकती है। सदस्यों को 'वीर सेवा मन्दिर' का मासिक विधियो द्वारा वीर सेवा मन्दिर गत ४६ वर्ष से निरन्तर पत्र "अनेकान्त" नि शुल्क भेजा जाता है तथा अन्य सभी
सेवारत रहा है एवं उत्तरोत्तर विकासमान है। प्रकाशन दो-निहाई मूल्य पर दिए जाते है।
यह सस्था अपने विविध क्रिया-कलापों में हर प्रकार से हमें विश्वास है कि धर्म प्रेमी महान भाव इस दिशा
प्रापका महत्त्वपूर्ण सहयोग एवं पूर्ण प्रोत्साहन पाने की में संस्था की सहायता स्वय तो करेंगे ही, अन्य विद्या
अधिकारिणी है। अतः प्रापसे सानुरोध निवेदन है कि :प्रेमियों को भी इग और प्रेरित करेंगे।
१. वीर सेवा मन्दिर के सदस्य बनकर धर्म प्रभावनात्मक -महेन्द्रसैन जैनी, महासचिव
| कार्यक्रमो में सक्रिय योगदान करें।
२. वीर सेवा मन्दिर के प्रकाशनो को स्वयं अपने उपयोग 'अनेकान्त' के स्वामित्व सम्बन्धी विवरण
के लिए तथा विविध मांगलिक अवसरों पर अपने प्रकाशन स्थान-बोरसेवामन्दिर, २१ दरियागज, नई दिल्ली
प्रियजनों को भेट में देने के लिए खरीदें। मद्रक-प्रकाशन-वीर सेवा मन्दिर के निमित्त
३. त्रैमासिक शोव पत्रिका 'अनेकान्त' के ग्राहक बनकर प्रकाशन अवधि-मासिक श्री प्रोमप्रकाश जैन
जैन सस्कृति, साहित्य इतिहास एव पुरातत्व के शोधाराष्ट्रिकता--भारतीय पता-२३, दरियागज, दिल्ली-२ नुसन्धान मे योग दें। सम्पादक-श्री गोकुलप्रसाद जैन
| ४. विविध धार्मिक, सास्कृतिक पर्वो एवं दानादि के प्रवराष्ट्रिकता- भारतीय ३, रामनगर, नई दिल्ली-५५ सरों पर महत् उद्देश्यो की पूर्ति में वीर सेवा मन्दिर स्वामित्व-वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागज, नई दिल्ली-२ की आर्थिक सहायता करें। ___मैं, प्रोमप्रकाश जैन, एतद्द्वारा घोषित करता हूं कि
-गोकुल प्रसाद जैन (सचिव) मेरी पूर्ण जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपयुक्त अनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिए सम्पादक विवरण सत्य है। --प्रोमप्रकाश, जैन प्रकाशक मण्डल उत्तरदायी नहीं है।
-सम्पादक