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गिरनार को ऐतिहासिकता
0 श्री कुन्दनलाल जैन, दिल्ली गिरनार जी जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है । यहा महाराज जयसिंह सिद्धराज के जो सं० ११९० में से २३वें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया राज्यासीन हुए थे 'दण्डनायक खंगार साजन ने यहा था। कुछ और ऋषि मनियों ने यहां घोर तपस्या कर के नेमि प्रभु के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था तथा सम्राट मुक्ति प्राप्त की, अतः यह सिद्धक्षेत्र भी कहलाता है। कुमारपाल के, जिसने सं० १२०६ मे अजयमेरु पर आक्रमण गिरनार जी भारत के पश्चिम मे काठियावाड़ प्रान्त में किया था और सं० १२२६ मे जो स्वर्गवासी हए थे दण्डस्थित है जो पहले सोरठ प्रदेश कहलाता था । इतिहास नायक की माता ने स० १२४२ में इस क्षेत्र की सीढ़ियों में गिरनार रैवतक पर्वत, उर्जयन्त गिरि, रेवन्तगिरि का निर्माण कराया था और वास्तुपाल ने प्रादि प्रभ प्रादि नामों से विख्यात है।
ऋषभ देव का मंदिर भी बनवाया था। यो तो प्राकृतिक सम्पदा के रूप में गिरनार को कहते है कि इन्ही दिनों काश्मीर से अजित और प्राचीनता हजारो-लाखों वर्ष पुरानी है, पर नेमि प्रभु के रत्न नामक दो सधाधिपति नेमि प्रभु को बंदनाहेतु गिरनार निर्वाण के कारण इसकी ऐतिहासिकता लगभग तीस पधारे थे। उन्होंने जब मूर्ति का अभिषेक किया तो वह हजार वर्ष प्राचीन तो सुनिश्चित ही है।
तुरन्त ही गल गई। इससे दोनों व्यक्ति प्रान्तरिक वेदना नेमि प्रभु अब केवल पौराणिक कथा नायक ही नहीं एवं प्रात्मग्लानि से पीड़ित हो उठे और उन्होंने प्रायरह गए हैं अपितु प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों और शोधों श्चितस्वरूप अन्त जल का परित्याग कर आमरण अनशन के प्राधार पर वे भी भ. महावीर और बुद्ध की भांति व्रत धारण कर लिया। उनकी इस घनघोर तपस्या के एक सुनिश्चित एवं प्रामाणिक इतिहास पुरुष सिद्ध हो जब २१ दिन बीत गए तो अम्बिका देवी ने उन्हे दर्शन गए है । अत: नेमि प्रभु के साथ गिरनार क्षेत्र की ऐति- दिए और उनसे नेमि प्रभु की मणिमय प्रतिमा ग्रहण करने हासिकता एवं प्रामाणिकता सुस्पष्ट और सुनिश्चित है। का अनुरोध किया। दोनो सघाधिपतियो ने प्रसन्नता ___ हाल ही में नागेन्द्र गच्छीय विजयसेन सूरि (सम्वत् पूर्वक देवी प्रदत्त प्रतिमा स्वीकार की और उसे यथा१२८७) कृत रेवन्तगिरि रास नामक रचना देखने को स्थान प्रतिष्ठित कर स्वदेश लौट गए । मिली। इस रचना से गिरनार जी पर सीढ़ियों उपर्युक्त घटना से प्राश्चर्य होता है कि प्रब से हजार का निर्माण, मंदिरों की रचना तथा उनके वर्ष पूर्व जबकि यातायात के साधनों का सर्वथा अभाव था, जीर्णोद्धार सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों का लोग काश्मीर जैसे दूर-दराज प्रदेश से भी गिरनारजी की उद्घाटन होता है।
यात्रा करने पाया करते थे। इतना अधिक आकर्षण था गिर. चालुक्य राज महाराज जयसिंह सिद्धराज तथा उनके नार जी के प्रति । गिरनार (रैवतक) के प्राकृतिक सौन्दर्य उत्तराधिकारी सम्राट् कुमारपाल के समय में गिरनारजी का वर्णन संस्कृत के विख्यात कवि माघ ने अपने 'शिशुपाल के विकास में बड़े-बड़े का यहुए थे। पोरवाड़-बंशी प्रासा- वध' नामक काव्य में भी बड़ी रोचकतापूर्वक किया है। राज के पुत्र वास्तुपाल तेजपाल ने यहां पर्वत की तलहटी।
इस तरह गिरनार प्राकृतिक दृष्टि से जितना महत्वपूर्ण है में तेजलपुर नगर बसाया था। ये वही वास्तुपाल तेजपाल उतना ही धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक पूजनीय एवं प्रादरप्रतीत होते है जिन्होने दैलवारा (पाबू) का प्रादिनाथ णीय है और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में यह अत्यधिक जिनमंदिर बनवाया था जो अपनी कलात्मक विभूति के अभिनन्दन एवं गौरव का केन्द्र है। लिए जगत्प्रसिद्ध है।