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१३६, वर्ष २६, कि०४
अनेकान्त मूर्ति के शीर्ष भाग में तीन लघु तीर्थकरमू तियाँ और पाश्वा प्रवशिष्ट भुजामों में पद्म, पद्म प्रौर पुस्तक है। चतुर्भुज मे चार सेविकाएँ प्रामूर्तित हैं। सरस्वती की दो मूर्तियाँ सरस्वती की १३वीं शती ई० को एक स्थानक मूर्ति ब्रिटिश संग्रहालय में भी संकलित है। राजस्थान से प्राप्त हैदराबाद संग्रहालय में है। हंसवाहना देवी के करों मे ११वी-१२वी शती ई. की पहली मूर्ति मे चतुर्भुज सरस्वती पुस्तक, अक्षमाला, वीणा और अंकुश (या वज्र) है। त्रिभंग मे खडी है। देवी की दो प्रवशिष्ट वाम भुजानों परिकर मे उपासक और तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्राकृतियां में अक्षमाला और पुस्तक प्रदर्शित है । शीर्ष भाग में पांच उत्कीर्ण है। राजस्थान के भरतपुर जिले के बयाना नामक लघु तीर्थकर मूर्तियाँ एव पीठिका पर सेवक और उपासक स्थान से प्राप्त चतुर्भुज मूर्ति में देवी का वाहन मयूर है। आमूर्तित है। दूसरी मूर्ति संवत् १०६१ (१०३४ ई०) देवी के करों में पद्म, पुस्तक, वरद और कमण्डलु है । मे तिथ्यकित है । लेख में स्पष्ट त. वाग्देवी का नाम खुदा सरस्वती की बहभुजी मूर्तियों के उदाहरण मुख्यतः है। बड़ोदा-सग्रहालय की ११वीं-१२वी शती ई० को गुजरात (तारंगा) और राजस्थान (विमलवसही एवं हसवाना चतुर्भुज सरस्वती मूर्ति मे देवी के हाथों मे वीणा लणवसही) के जैन स्थलों में है । षड्भुज सरस्वती की वरद-अक्षमाला, पुस्तक एव जलपात्र प्रदर्शित है। पार्व- दो मूर्तियां लणवसही में है। दोनो उदाहरणों में सरस्वती वर्ती चामरधारिणी सेविकानों से सेव्यमान सरस्वती हंस पर आसीन है। एक मूर्ति में देवी की पाँच भुजाएँ विभिन्न प्रलकरणों से सज्जित है।
खण्डित हैं और प्रवशिष्ट एक भुजा में पद्म है। दूसरी राणकपुर की चतुर्भुज मूर्ति में देवी को ललित मुद्रा मूर्ति में दो ऊपरी भुजामो में पद्म प्रदर्शित है, जब कि में पासीन दिखाया गया है। देवी की भुजामों मे प्रक्ष- मध्य की भुजाएं ज्ञानमुद्रा में है। निचली भुजानों में माला, वीणा, अभयमुद्रा और कमण्डलु है। एक अन्य प्रभयाक्ष और कमण्डलु चित्रित है। अष्टभुज सरस्वती उदाहरण मे चतुर्भुज सरस्वती हस पर प्रारूढ़ हैं और की हंसवाहना मूर्ति तारंगा के अजितनाथ मन्दिर में है। उनकी एक भुजा मे अभयमुद्रा के स्थान पर पुस्तक है। त्रिभग में खड़ी देवी के ६ प्रवशिष्ट करों में पुस्तक, अक्षचतुर्भुज सरस्वती की एक सुन्दर प्रतिमा राजपूताना माला, वरदमुद्रा, पद्म, पाश एव पुस्तक प्रदर्शित है । संग्रहालय, अजमेर में है। बासवाडा जिले के अर्थणा सरस्वती की एक षोडशभुज मूर्ति विमलवसही के वितान नामक स्थान से प्राप्त मूर्ति मे देवी वीणा, पुस्तक, प्रक्ष- पर उत्कीर्ण है। नृत्यरत पुरुष प्राकृतियो से आवेष्टित माला और पद्म धारण किए है। समान विवरणों वाली देवी भद्रासन पर पासीन है। देवी के प्रवशिष्ट हाथों में मूर्तियां कभारिया के नेमिनाथ एवं पाटण के पचासर पद्म, शंख, वरद, पद्म, पुस्तक और कमण्डलु प्रदर्शित मन्दिरों (गुजरात) और विमलवसही में है । विमलवसही हैं। हंसवाहना देवी के शीर्ष भाग में तीर्थकर-मूर्ति उत्कीर्ण की एक चतुर्भुज मूर्ति मे हसवाहना सरस्वती की तीन है।
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(पु० १३३ का शेषांश) में सन्देह नही होना चाहिए- विस्तारों और घटनापों परम न होने पौर स्वगुरु दिगम्बराचार्य मेषचन्द्र के के वर्णन में कथंचित् पौराणिकता या अतिशयोक्ति हो भाशीर्वाद, प्रेरणा एवं सहायता से राज्य स्थापन करने सकती है, किन्तु वारगल के काकातीय राज्य के संस्थापक वाला तथ्य अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं विश्वसनीय है। माधवराज के, जिसका अपरनाम सम्भवतया बेतराज था," २४. भा० वि० भवन वाले इतिहास में वंश के सर्वप्रथम ज्ञात नरेश का नाम 'बेत' दिया है और उसका समय १०२५
ई० के लगभग अनुमान किया है। प्रतएव या तो माधवराज का ही अपरनाम बेत होगा, अथवा वह बेत का पूर्वज होगा. और इस प्रकार प्राचार्य मेषचन्द्र, माधवराज, काकातीय पोर उक्त राज्य की स्थापना सन १२५ ई. के मासपास होनी चाहिए।