Book Title: Anekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 158
________________ १४०, बर्ष २९, कि.४ अनेकान्त है कि इस प्रतिमा का निर्माण चामुण्डराज ने कराया था। विश्व की सर्वोच्च ५७ फुट ऊंची प्रतिमा के विभिन्न चामुण्डराज गगनरेश राजमल्ल (रायमल्ल) चतुर्थ अंगों के विन्यास से इसकी विशालता का स्वतः अनुमान (९७४-६८४ ई०) के मंत्री और सेनापति थे। चामण्डराज लगाया जा सकता हैने कन्नड भाषा में 'चामुण्डरायपुराण' की रचना की थी जिसमें उन्होंने २४ तीर्थकरों का चरित्र वर्णित किया । चरण से कर्ण के मधोभाग तक ... ५० इस प्रतिमा के निर्माता शिल्पी अरिष्टनेमि हैं। उन्होंने कर्ण के अधोभाग से मस्तक तक... मति के निर्माण में अंगों का विन्यास ऐसे नपे-तुले ढंग से चरण की लम्बाई किया है कि उसमे किसी प्रकार का दोष निकालना चरण के अग्रभाग की चौड़ाई ... संभव नहीं है; जैसे कर्ण का अधोभाग, विशाल स्कंध एवं चरण का अंगूठा माजानुबाहु । प्रतिमा के स्कंध सीधे हैं, उनसे दो विशाल वक्ष की चौड़ाई पांव की उंगली की लम्बाई ... २ भजाएं अपने स्वाभाविक ढंग से प्रलंबित हैं। हस्त की मध्य की उँगली की लम्बाई अंगलियो सीधी एवं प्रगूठा ऊर्ध्व को उठा हुमा अंगुलियों एड़ो की ऊंचाई ... २ से विलग है। कर्ण का पारिल... इस विशालकाय प्रतिमा का निर्माण श्रवणबेलगोल कटि ... के इन्द्रगिरि के कठोर हल्के भूरे प्रस्तर से हुआ है। इस प्रकार प्रतिमा-निर्माण के क्षेत्र में शिल्पी ने अपूर्व उत्तराभिमुख सीधी खड़ी इस दिगम्बर प्रतिमा के जानु सफलता पाई है। इतने भारी व कठिन पत्थर पर चतुर के ऊपर का भाग बिना किसी सहारे के अवस्थित है। शिल्पी ने अपनी जो निपूणता दिखाई है उससे भारतीय प्रतिमा का निर्माणकाल लगभग ६८० ई. के निकट है। शिल्पियों का चातुर्य प्रदर्शित होता है। 000 (पृ. १३७ का शेषांश) चितन है। अलकावली सुचिक्कण व वर्तुलाकार है और मे खड्गासन में अंकित है। विद्याघर व दुंदुभिक प्रथम प्रोष्ठ-भाग मे प्रस्तर के कटाव की बरीकी देखते ही प्रतिमा की भाति ही है। ऊपर व पार्श्वभाग मे २३ बनती है। ऊपर माला लिए विद्याधर है व हर्ष व्यक्त तीर्थडुर अकित है, पर सभी दिगम्बर प्रतीक या वाहनों करते किन्नर व दुंदुभिक है । मृदग, झाझ व तुरही लिए पर आसीन है। मूर्तिशिल्प की दृष्टि से यह प्रतिमा भी वादक-वृद सजीव जान पड़ते है। ऊपर कोनो मे दो प्रभूतपूर्व है। यह विक्रम संवत् १०५० में निर्मित हुई थी तीर्थङ्कर पद्मासन मे, छोटे प्राकार मे उत्कीर्ण है। चंवर. जैसा कि उसकी पाद-पीठ पर अकित अभिलेख से पुष्ट घारी चवर डुला रहे है। वाहन शेर है व नीचे के दोनों होता है। इस प्रतिमा का प्राकार ६८४४३४ २२ से. कोनों में क्रमशः मातंग यक्ष भोर सिद्धायिका यक्षिणी मी. है। प्रतिमा थोड़ी-सी भग्न है । मूर्ति क्रमांक ३ है। अंकित है। मूर्तिशिल्प के आधार पर यह प्रतिमा दसवी से इसमें भी मातंग यक्ष व सिद्धायिका यक्षिणी स्पष्ट है। ग्याहरवी शताब्दी के मध्ग की है जबकि परमार शासक उपरोक्त दोनों महावीर प्रतिमाए' श्रेष्ठ मूर्तिकला यहां के राजा थे । प्राकार ७५४४५४२२ से० मी०। र ७५X ४५X २२ स० मा०। का ज्ञापन करती है और प्राचीन मालवा के जैनधर्म के लाल पत्थर मे निर्मित यह महावीर प्रतिमा मालवा की गौरवशाली पक्ष को प्रकट करती है। जैन तीर्थ डर मूर्तिकला का प्रतिनिधित्व करती है। विक्रम विश्वविद्यालय, दूसरी प्रतिमा मे भगवान महावीर कायोत्सर्ग मुद्रा उज्जैन (मध्य प्रदेश) 000

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