Book Title: Anekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 124
________________ ११२, २६, कि०३ किसी बलवान पुरुप को प्रतिभ बनाना चाहिए । सम्पदा के द्वारा उसे सन्तुष्ट करता है, उसी प्रकार यदि ९. कृषि कार्यों में योग-जैसे ग्वाला प्रहरमात्र रात्रि कोई बलवान राजा अपने राज्य के सम्मुख पाए तो वृद्ध शेष रहने पर उठकर जहां बहत घास और पानी होता लोगों के साथ विचार कर उसे कुछ देकर उसके साथ संधि है, ऐसे किसी योग्य स्थान में गायों को प्रयत्नपूर्वक चराता कर लेनी चाहिए। चंकि युद्ध बहुत से लोगो के विनाश है तथा सबेरे ही वापिस लाकर बछड़े के पीने से बचे हुए का कारण है, उससे बहत हानि होती है और उसका दूध को मक्खन प्रादि प्राप्त करने की इच्छा से दुह लेता भविष्य भी बरा होता है, अतः कुछ देकर बलवान शत्रु के है, उसी प्रकार राजा को भी प्रालस्यरहित होकर अपने साथ संधि करना उपयुक्त है। प्रधीन ग्रामों में बीज देने आदि उपायों द्वारा किसानों से १२. सामंजस्य-धर्म का पालन-राजा अपने चित्त का खेती करानी चाहिए। वह अपने समस्त देश में किसानों । समाधान कर जो दुष्ट पुरुषों का निग्रह और शिष्ट पुरुषों द्वारा भली भांति खेती कराकर धान्य का संग्रह करने के का पालन करता है वही उसका सामञ्जस्य गुण कहलाता लिए उनसे न्यायपूर्ण उचित प्रश ले । ऐसा होने से उसके है। जो राजा निग्रह करने योग्य शत्रु अथवा पुत्र का भंडार प्रादि में बहत-सी सम्पदा इकट्ठी हो जाएगी। उससे निग्रह करता है, जो किसी का पक्षपात नहीं करता, जो उसका बल बढ़ेगा तथा सन्तुष्ट करने वाले उन धान्यों से दष्ट और मित्र सभी को निरपराध बनाने की इच्छा उनका देश भी पुष्ट अथवा समद्धिशाली होगा। करता है और इस प्रकार माध्यस्थ भाव रखकर जो सब १०. प्रक्षरम्लेच्छों को वश में करना-अपने प्राश्रित पर समान दष्टि रखता है वह समंजस कहलाता है। प्रजा स्थानो पर प्रजा को दुख देने वाले जो अक्षरम्लेच्छ है, को विषम दष्टि से न देखना तथा सब पर समान दृष्टि उन्हें कुलशुद्धि प्रदान करने प्रादि उपायों से अपने अधीन रखना सामजस्य धर्म है। इस समजतत्व गुण से ही करना चाहिए। अपने राजा से सत्कार पाकर वे फिर राजा को न्यायपूर्वक प्राजीविका चलाने वाले शिष्ट पुरुषों उपद्रव नहीं करेगे। यदि राजानों से उन्हें सम्मान प्राप्त का पालन और अपराध करने वाले दुष्ट पुरुषों का निग्रह नही होगा तो वे प्रतिदिन कुछ न कुछ उपद्रव करते करना चाहिए। जो पुरुष हिंसादि दोषो मे तत्पर रहकर रहेगे।" जो अक्षरम्लेच्छ अपने ही देश मे सचार करते पाप करते हैं, वे दुष्ट हैं और जो क्षमा, सन्तोप आदि के हो, उनसे राजा को कृषको की तरह कर अवश्य लेना द्वारा धर्म धारण करने में तत्पर है, वे शिष्ट है ।" चाहिए।५ जो अज्ञान के बल पर अक्षरों द्वारा उत्पन्न १३. दुराचार का निषेध-दुराचार का निषेध करने अहकार को धारण करते है, पापसूत्रो से आजीविका से धर्म, अर्थ और काम तीनों की वृद्धि होती है, क्योकि चलाते है वे अक्षरम्लेच्छ है। हिंसा करना, मास खाने में कारण के विद्यमान होने पर कार्य की हानि नही देखी रुचि रखना, बलपूर्वक दूसरे का धन अपहरण करना और जाती। धूर्तता ही म्लेच्छो का प्राचार है।" १४. लोकापवाद का भय-राजा को लोकापवाद से ११. प्रजारक्षण- राजा को तृण के समान तुच्छ डरते हुए कार्य करना चाहिए, क्योकि लोक यश ही स्थिर पुरुष का भी रक्षण करना चाहिए (४४.४५)। जिस रहने वाला है, सम्पत्ति तो विनाशशील है । प्रकार ग्वाला आलस्य रहित होकर अपने गोधन की व्याघ्र, इस प्रकार हम देखते है कि प्रादिपुराण में विस्तारचोर प्रादि के आतंक से रक्षा करता है, उसी प्रकार राजा पूर्वक राज्यधर्म या राजा के कर्तव्यो का वर्णन किया गया को भी अपनी प्रजा का रक्षण करना चाहिए। जिस है। नवीं शताब्दी के इस आदिपुराण में वर्णित राज्यधर्म प्रकार ग्वाला उन पशुओं के देखने की इच्छा से राजा के के मादर्श वर्तमानकालीन लोकतत्र के लिए भी बड़े उपमाने पर भेंट लेकर उसके समीप जाता है और धन योगी हैं। १०२. ४२.१७०-१७३ १०३. ४२.१७४-१७८ १०७. १६३-१६६ १०८. ४२.१६६-२०३ १०४.१०.. ४२.१७६-१८१ १०६. ४२.१८३.१८४ १०६.४४.६६ ११०. ३४.२६

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