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___ वीर सेवा मन्दिर
स्थापित : १९२६ वीर सेवा मन्दिर समाज के ऐसे धर्मवत्सल १००० विद्यावानियों की आवश्यकता है जो तिर्फ एक वार अनुदान देकर जीरा
१, दरियागज, नई दिल्ली-२ भर शास्त्रवान के उत्कृष्ट पुण्य का संचय करते रहें। धीर सेवा मन्दिर उत्तर भारत का अग्रणी जैन
बीर सेवामन्दिर' की स्थापना प्रा मे ४० वर्ष पूर्व सस्कृति, सात्य, इतिहास, पुरातत्त्व ,एवं दर्शन शोध स्व. श्री जुगलकिशोर मुख्तार, स्व० भी छोटेलाल जैन
| संस्थान है जो १९२६ से प्रनवरत अपने पुनीत उद्देश्यों की तथा वर्तमान अध्यक्ष श्री शान्तिप्रसाद जैन प्रभृति जाग्रत
सम्पूर्ति मे सलग्न रहा है । इसके पावन उद्देश्य इस
प्रकार है :-- चेतनामों के सत्प्रयत्नों से हुई थी। तब से जैनदर्शन के
- जैन-जनेतर पुरातत्व सामग्री का संग्रह, संकलन प्रचार तथा ठोस साहित्य के प्रकाशन में वीर सेवा मन्दिर
और प्रकाशन । ने जो महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं वे सुविदित है और उनके
0 प्राचीन जैन-जनेतर ग्रन्थों का उद्धार । महत्त्व को न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी विद्वानों
0 लोक हितार्थ नव साहित्य का सृजन, प्रकटीकरण और ने मुक्तकण्ठ से माना है।
प्रचार। धीर सेवा मन्दिर' के अपने विशाल भवन में एक
0 'मने कान्त' पत्रादि द्वारा जनता के प्राचार-विचार सुनियोजित ग्रन्यागार है जिसका समय-समय पर रिसर्च
को ऊंचा उठाने का प्रयत्न । करने वाले छात्र उपयोग करते है। दिल्ली से बाहर के " जैन साहित्य, इतिहास और तत्त्वज्ञान विषयक अनुशोधकर्ता छात्रों के लिए यहां ठहरकर कार्य करने के लिए संघानादि कार्यों का प्रसाधन और उनके प्रोने जनार्थ छात्रावास की भी व्यवस्था है।
वृत्तियों का विधान तथा पुरस्कारादि का प्रायोजन । ब तक जो भी कार्य हुए हैं, आपके सहयोग से ही विविध उपयोगी संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, हिन्दी एवं हो पाए है । यदि 'वीर सेवा मन्दिर' की कमजोर प्राथिक | अंग्रेजी प्रकाशनों; जैन साहित्य, इतिहास और तत्त्वज्ञान स्थिति को प्रापका थोड़ा सम्बल मिल जाए तो कार्य अधिक विषयक गोध-अनुसंधान ; सुविशाल एवं निरन्तर प्रवर्धव्यवस्थित तथा गतिमान हो जाए। 'पाप २५१ रु० मात्र
मान ग्रन्थगार; जैन मंस्कृति, साहित्य, इतिहास एवं पुरादेकर प्राजीवन सदस्य बन जाएं' तो पापकी सहायता
तत्व के समर्थ अग्रदूत 'अनेकान्त' के निरन्तर प्रकाशन एवं जीवन भर के लिए 'वीर सेवा मन्दिर' को प्राप्त हो
अन्य अनेकानेक विविध साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिसकती है। सदस्यो को 'वीर सेवा मन्दिर' का त्रैमासिक
विधियों द्वारा वीर सेवा मन्दिर गत ४६ वर्ष से .निरन्तर पत्र "अनेकान्त" नि.शुल्क भेजा जाता है तथा अन्य सभी
सेवारत रहा है एवं उत्तरोत्तर विकासमान है। प्रकाशन दो तिहाई मूल्य पर दिए जाते है।
यह सस्था अपने विविध कि.पा-कलापो में हर प्रकार से हमे विश्वाम है कि धर्म प्रेमी महान् भाव इस दिशा
मापका महत्त्वपूर्ण सहयोग एव पूर्ण प्रोत्साहन पाने की मे संस्था वी सहायता स्वय तो करेंगे ही, अन्य विद्या
अधिकारिणी है। अतः आपमे सानुरोध निवेदन है कि :--- प्रेमियों को भी इस ओर प्रेरित करेगे।
१. वीर सेवा मन्दिर के सदस्य बन कर धर्म प्रभावनात्मक --- महेन्द्रसैन जैनी, महासचिव
कार्यक्रमो में सक्रिय योगदान करें।
२. वीर सेवा मन्दिर के प्रकाशनो को म्य अपने उपयोग 'अनेकान्त' के स्वामित्व सम्बन्धी विवरण
। के लिए तथा विविध मांगलिक अवसरों पर अपने प्रकाशन स्थान-बोरसेवामन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली
प्रियजनों को भेंट में देने के लिए खरीदें। मद्रक-प्रकाशन - वीर सेवा मन्दिर के निमित्त
३. त्रैमासिक शोव पत्रिका 'अनेकान्त' के ग्राहक बनकर प्रकाशन प्रधि... मासिक
श्री प्रोमप्रकाश जैन | | जैन संस्कृति, साहित्य इतिहास एव पुरातत्व के शोधा
माटिय नि: राष्ट्रिकता--भारतीय पता-२३, दरियागंज, दिल्ली-२ नुसन्धान मे योग दें। सम्पादक-श्री गोकुलप्रसाद जैन
४. विविध धार्मिक, सांस्कृतिक पर्यो एवं दानादि के प्रवराष्ट्रियता- भारतीय ३, रामनगर, नई दिल्ली-५५ सगे पर महत उद्देश्यों की पूति में वीर सेवा मन्दिर स्वामित्व-वीर सेवा मन्दिर, २१ दरियागज, नई दिल्ली-२ की आर्थिक सहायता करें।
-~-गोकुल प्रसाद जैन (सचिव) ___ मैं, मोमप्रकाश जैन, एतद्द्वारा घोपित करता हूँ कि मेरी पूर्ण जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपयुक्त अनेकान्त मे प्रकाशित विदाने के लिए सम्पादक विवरण सत्य है। -मोमप्रकाश, अन प्रकाशक मण्डल उत्तरदायी नहीं है।
-सम्पादक