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वीर-सेवा-मन्दिर के उपयोगी प्रकाशन
पुरातन जैनवाक्य-सूची प्राकृत के प्राचीन ४६ मून-प्रन्थों की पदानुक्रमणी, जिसके साथ ४६ टीकादि ग्रन्थों में उद्घृत दूसरे पथ की भी लगी हुई है। मिलाकर २५२५३ क्यों की सूची संपादक मुख्तार श्री जुगलकिशोर जी की पूर्ण महत्व को ७ पृष्ठ की प्रस्तावना मे अलकृत, डा० कालीदास नाग, एम. ए., डी. लिट् के प्राक्कथन ( Foreword ) और डा० ए. एन. उपाध्ये, एम. ए. डी. लिट्. की भूमिका ( Introduction) से भूपित है। शोध-खोज के विद्वानों के लिए अतीव उपयोगी, बड़ा साइज, मजिल्द । प्राप्तपरीक्षा श्री विद्यानन्दाचार्य की स्वोपज्ञ सटीक पूर्व कृति प्राप्तों को परीक्षा द्वारा ईश्वर-विषयक
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सुन्दर विवेचन को लिए हुए, न्यायाचार्य पं दरबारीलालजी के हिन्दी अनुवाद से युक्त, सजिल्द । स्वयम्भू स्तोत्र समन्तभद्र भारती का अपूर्व ग्रन्य, मुस्तार श्री जुगलकिशोरजी के हिन्दी अनुवाद तथा महत्व की गवेषणापूर्ण प्रस्तावना मे सुशोभित
विविद्या: स्वामी समन्तभद्र की अनोखी कृति, पापो के जीतने की कला, सटीक, मानुवाद और श्री जुगलकिशोर मुख्तार की महत्त्व की प्रस्तावनादि से अलकृत सुन्दर जिल्द-सहित । म्रध्यात्मकमलमार्तण्ड पचाध्यायकार कवि राजमल की सुन्दर साध्यात्मिक रचना, हिन्दी अनुवाद-महित : पुक्त्यनुशासन : तत्त्वज्ञान से परिपूर्ण, समन्तभद्र की असाधारण कृति, जिसका अभी तक हिन्दी अनुवाद नही
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हुआ था। मुख्तारी के हिन्दी अनुवाद और प्रस्तावनादि में प्रकृत सजि समीचीन धर्मशास्त्र : स्वामी समन्तभद्र का गृहस्थाचार विषयक ग्रत्युत्तम प्राचीन ग्रन्थ, मुख्तार तार श्री जुगल किशोर जी के विवेचनात्मक हिन्दी भाष्य और गवेषणात्मक प्रस्तावना से युक्त, सजिल्द । अनग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह, भाग १ : मस्कृत प्रो प्राकृत के १७१
R. N. 10591/62
प्रकाशित ग्रन्थों की प्रशस्तियों का मंगलाचरण सहित पूर्व सग्रह, उपयोगी ११ परिशिष्टो और पं० परमानन्द शास्त्रों की इतिहास विषयक साहित्य परिचयात्मक प्रस्तावना में अलकृत, सजिल्द |
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समातिन्त्र और इष्टोपदेश: अध्यात्मकृति परमानन्द शास्त्री की हिन्दी टीका सहित श्रवणबेलगोल धौर दक्षिण के अन्य जैन तीर्थ ।
ग्रन्थकारो के ऐतिहासिक ग्रंथ-परिचय और परिशिष्टो सहित) म्याय दोमिका पर अभिनव धर्मभूषण की कृति का प्रो०ड०
साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश पृष्ठ संख्या ७४० कायपासून मूल ग्रन्थ की रचना ग्राम से दो हजार वर्ष पूर्व श्री
मध्यात्म रहस्य पं श्राशावर की सुन्दर कृति, मुख्तार जी के हिन्दी अनुवाद सहित । गन्य प्रशस्ति संग्रह भाग २: अपभ्रंश के १२२ अप्रकाशित ग्रन्थों की प्रशस्तियों का महत्वपूर्ण सग्रह पवन
परमानन्द शास्त्री । सजिल्द | पानी द्वारा स० प्र०
लाजी
की, जिस पर श्री
यतिवृषभाचार्य ने पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व छह हजार श्लोक प्रमाण चूर्णिसूत्र लिखे। सम्पादक पं हीरालालजी सिद्धान्त शास्त्री, उपयोगी परिशिष्टो और हिन्दी अनुवाद के साथ बड़े साइज के १००० से भी अधिक पृष्ठो में पुष्ट कागज और कपड़े की पक्की जिल्द
Reality प्रा० पूज्यपाद की सर्वार्थसिद्धि का भग्रेजी में अनुवाद बडे माकार के ३०० पृ. पक्की जिल्द निरस्नावली श्री मिलापचन्द्र तथा श्री रतनलाल कटारिया
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१५००
ध्यानातक (ध्यानस्तव सहित ) सपादक पं० [वासचन्द्र सिद्धान्त-शास्त्री
धावक धर्म संहिता भी दरयावसिंह सोधिया
जन लक्षणावली (तीन भागों में ) : (तृतीय भाग मुद्रणाधीन) प्रथम भाग २५००; द्वितीय भाग Jain Bibliography (Universal Encyclopaedia of Jain References)
प्रकाशक - वीर सेवा मन्दिर के लिए रूपवाणी प्रिंटिंग हाउस, दरियागज, दिल्ली से मुद्रित ।
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(Under print)