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१०८, वर्ष २६, कि०३
अनेकान्त होता था उसे द्रोणमुख और जहां मस्तक पर्यन्त ऊंचे-ऊंचे २. नई वस्तुमों के निर्माण एवं पुरानी वस्तुओं के धान्य में ढेर लगे रहते थे, वह सवाह कहलाता था। एक - रक्षण के उपाय करना। राजधानी में पाठ सौ, द्रोणमख में चार सौ तथा खर्पट मे दो ३. प्रजा-जनों से बेगार लेना। सौ गांव होते थे।" दस गांवों के बीच के बड़े गांव को संग्रह ४. अपराधियों को दण्ड देना । (मण्डी) कहते थे।" जिस राज्य के एक से अधिक व्यक्ति ५. जनता से कर वसूल करना । होते थे, वह द्वैराज्य कहलाता था। ऐसे राज्य में स्थिरता उतराधिकार और राज्याभिषेक-जब राजा किसी नहीं रहती थी। इसीलिए कहा गया है कि राज्य और कारण विरक्त हो जाता था तो अपने सुयोग्य पुत्र को कुलवती स्त्री का उपभोग एक ही पुरुष कर सकता है। राज्यभार सौंप देता था।" सामान्यतः बड़ा पुत्र राज्य का जो पुरुष इन दोनों का अन्य पुरुषों के साथ उपभोग करता अधिकारी होता था, किन्तु मनुष्यों के अनुराग और है, वह नर नही, पशु है ।८।
उत्साह को देखकर राजा कनिष्ठ पुत्र को भी राजपट्ट राजा की उत्पत्ति और उसका महत्त्व-भरतक्षेत्र में बाघ देता था।" यदि पुत्र बहुत छोटा हुआ तो राजा पहले भोगभूमि थी। उस समय दुष्ट पुरुषों का निग्रह उसे राजसिंहासन पर बैठाकर राज्य की सारी व्यवस्था तथा भले पुरुषों के पालन की आवश्यकता नहीं थी, सुयोग्य मन्त्रियों के हाथों में सौप देता था।५ पिता के क्योंकि लोग निरपराध होते थे । भोगभूमि के बाद साथ-साथ अन्य राजा", अन्तःपुर, पुरोहित तथा नगरकर्मभूमि का प्रारम्भ हुमा । कर्मभूमि में दण्ड देने वाले निवासी" भी अभिषेक करते थे। क्रमश: तीर्थ जल, कषायराजा का प्रभाव होने पर प्रजा मत्स्यन्याय का प्राश्रय जल तथा सुगधित जल से अभिषेक किया जाता था। लेने लगेगी, अर्थात् बलवान निबल को निगल जायेगा। ये नगरनिवासी कमलपत्र से बन हए द्रोणो और मिट्टी के लोग दण्ड के भय से कुमार्ग की ओर नहीं जायेंगे, इसी- घड़ों से भी अभिषेक करते थे।" अभिषेक के अनन्तर लिए दण्ड देने वाले राजा का होना उचित है और ऐसा राजा आशीर्वाद देकर पुत्र को राज्यभार सौप देता था। राजा ही पृथ्वी को जीत सकता है, ऐसा सोचकर भगवान और अपने मस्तक का मुकुट उतारकर उत्तराधिकारी को ऋषभदेव ने कुछ लोगों को दण्डधर राजा बनाया, क्योकि पहना देता था।" चक्रवर्ती के नज्याभिषेक म बत्तीस विभिन्न प्रजा के योग-क्षेम का विचार करना राजाओं का हजार मुकुटबद्ध राजाओं के सम्मिलित होने का उल्लेख ही कार्य होता है।"
है।" पट्टबन्ध की क्रिया मन्त्री ओर मुकुटबद्ध राजा करते राज्य के कार्य-प्रादिपुराण में राजसत्तात्मक शासन- थे।" पट्टबन्ध के समय युबराज राजमिहासन पर बैठता व्यवस्था का दर्शन होता है। राजतन्त्र में राजा प्रमख था। अनेक स्त्रिया उस पर चमर ढराती थीं" और अनेक होता है तथा वह सारे कार्यों का नियमन करता है । मतः प्रकार के प्राभूषणों से वह देदीप्यमान होता था।" आदिराजा के कार्यों को राज्य के कार्य कहा जा सकता है। पुराण के सोलहवें पर्व मे राज्याभिषेक की विधि का इस दृष्टि से राज्य के निम्नलिखित कार्य माने जा सकते साङ्गोपाङ्ग वर्णन है।
राजानों के भेव-पादिपुराण मे राजाप्रो के निम्न१. गाव प्रादि के बसाने पोर उपभोग करने वालों निम्नलिखित भेद बतलाए गये हैके लिए नियम बनाना।
१. चक्रवर्ती-इसके राजराज अधिराट् और सम्राट २५. वही २६.१६.१७५-१७६ ३५. ८.२५४
३६. १६.२२४ २७. ३४.४५ २८. ३४.५२
३७. ३७.३
३८. १६.२२७-२२८ २६. १६.२५१ ३०. १६.२५२-२५५ ३६. १६.१२५
४०. ११.४५ ३१. १६.१६८ ३२. ४.१४४-१५०
४१. १६.२३२ ४२. ७.३१८, ६.५६५ ३३. ४.१५१, १४० ३४. ५.२०७
४३.४४. ११.३६.४० ४५. ११.४४