Book Title: Anekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 119
________________ आदिपुराण में राजनीति डा. रमेशचन्द जैन प्रादिपुराण प्राचार्य जिनसेन का एक ऐसा सुविस्तृत (सीमारक्षको) के लिए बना दिये जाते थे। राज्य के महाकाव्य है जिसका भारतीय वाङ्मय की दृष्टि से बीच कोट, प्राकार, परिखा, गोपुर और प्रहालक से सुशोअत्यधिक महत्त्व है । लोक जीवन के लगभग सभी विषयो भित राजधानी होती थी। राजधानीरूप किले को घेर का समावेश उसमें कथा-माध्यम से हुया है। उसमे समाज- कर गांव आदि की रचना होती थी।" आदिपुराण में नीति व धर्मनीति के साथ-साथ राजनीति का और प्रामादि की जो परिभाषाएं हैं, उनके अनुसार जिनमें बाड़ प्रकारान्तर से युद्धनीति का भी सागोपांग वर्णन मिलता से घिरे हुए घर हों, जिनमे अधिकतर शूद्र और किसान रहते हों तथा जो बगीचे और तालाबों से युक्त हो उसे राजनीति और उसका महत्त्व-आदिपुराण में राज- ग्राम कहते है। जिसमे सौ घर हों उसे निकृष्ट अथवा नीति के लिए राज्याख्यान' और राजविद्या' शब्दों का छोटा गाव कहते है तथा जिसमें पाच सौ घर हों और प्रयोग हमा है। उस देश का यह भाग अमुक राजा के जिस के किसान धन-सम्पन्न हो उसे बड़ा गांव कहते हैं । अधीन है अथवा यह अमुक राजा का नगर है, इत्यादि के सामान्यतः गांव पास-पास बसे होते थे। ये इतने निकट वर्णन को जनशास्त्रों में राज्याख्यान कहा गया है।' राज- होते थे कि एक गांव का मुर्गा दूसरे गाव आसानी से जा विद्या के परिज्ञान से इहलोक-सम्बन्धी पदार्थों में बुद्धि सके । इसी कारण गावों का विशेषण कक्कूटसम्पात्यान दृढ़ हो जाती है। राजषि राजविद्यानो द्वारा अपने शत्रु मिलता है।" छोटे गाव की सीमा एक कोस की और के प्रावागमन को जान लता है। राजविद्या प्रान्वीक्षिकी, बड़े गांव की सीमा दो कोस की होती थी। नदी, पहाड़, त्रयो, वार्ता और दण्डनीति के भेद से चार प्रकार की गुफा, श्मशान, क्षीरवक्ष, कटीलवृक्ष, वन और पुल से गांव होती है। मन्यविद्या के द्वारा त्रिवर्ग (धर्म, अर्थ मोर की सीमा का विभाग किया जाता था।" जो परिखा, काम) की सिद्धि होती है। यह लक्ष्मी का पाकर्षण करने गोपुर, प्रहाल, कोट और प्राकार मे सुशोभित होता हो, में समर्थ है और इससे बड़े-बड़े फल प्राप्त होते है। जिसमे अनेक भवन हों, जो बाग और तालाबों से युक्त राज्य-प्रादिपुराण में राज्य के लिए जनपद', विषय हो, जिसमे पानी का प्रवाह पूर्वोत्तर दिशा के बीच वाली देश" तथा राज्य शब्दो का प्रयोग हया है। जो राज्य ईशान दिशा मे हो और जो प्रधान पुरुषो के रहने योग्य प्राकार-प्रकार मे अन्य राज्यों से बड़े होते थे वे महादेश'२ हो उसे नगर कहते थे ।२ जो नगर नदी और पर्वत से कहलाते थे। सिंचाई की अपेक्षा से राज्य के तीन भेद घिरा होता था उसे खेट और जो पर्वत तथा दो सौ गावों किये जाते थे"....१. प्रदेवमातृक, २. देवमातक और से घिरा होता था उसे खर्पट कहते थे ।" जो पाच सौ ३. साधारण । नदी, नहरो प्रादि से सीचे जाने वाले राज्य गावों से घिरा होता था उसे मडम्ब कहते थे तथा जो भदेवमातृक, वर्षा के जल में नीचे जाने वाल राज्य साधा- समुद्र के किनारे हो और और जहा पर लोग नावों के रण कहलाते थे। राज्यो की सीमाओं पर अन्तपालो द्वारा उतरते हो उसे पत्तन कहते थे।" जो नदी के किनारे यहाँ अकित सब सन्दर्भ आदिपुराण से है। १. ४.७ २. ४२.३४,४११३६ ११. ३४.५२ १२. १६.१५१ ४.४२.३४ १३. १६.१२७ १४. १६.१६० ५.११.८१ ६.४१.१३६ १५-१८. १६.१६२-१६५ १६. २६.१२४ ७. ११.३३ ८. १६.१६२ २०.१६.१६६ २१.१६.१६७ १०. १६.१५२ २२.२४. १६.१६६-१७३

Loading...

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181