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भगवान महावीर की सर्वज्ञता
D डा. देवेन्द्रकुमार शास्त्रो, नोमक्ष
ऐतिहासिक महापुरुष वर्द्धमान का जन्म विदेह के जीत कर वे केवलज्ञानी बने थे। निर्दोष चारित्र का कुण्डपुर में ई पू. ५६६ मे हुप्रा था। उनके जीवन का भली पालन करने वाले वे पटल पुरुष प्रात्मस्वरूप में स्थिर थे। भांति अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि दार्शनिक सर्वोत्कृष्ट प्रध्यात्मविद्या के पारगामी, समस्त परिग्रहों के जगत मे भगवान महावीर की मान्यता का प्रमुख कारण त्यागी, निर्भय मृत्युजय एव अजर-अमर थे।' जिनके सर्वज्ञता की उपलब्धि थी। केवल ऐतिहासिक पुरुष होने केवलज्ञानी रूपी उज्जवत दर्पण मे लोक-प्रलोक प्रतिके कारण तथा धर्मप्रचारक, प्रसारक व नेता होने से ही बिम्बित होते है तथा जो विकसित कमल के समान कोई शत-सहस्राब्दियों तक पूज्य नहीं हो सकता। विभिन्न समुज्जवल है वे महावीर भगवान जयवन्त हों।' प्राचार्य मतो की स्थापना करने वाले भी अनेक प्राचार्य तथा हेमचन्द्र सूरि श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र की स्तुति करते हुए विद्वान हए । किन्तु उन मे से कितने नाम अाज हम कहते है-मनन्तज्ञान के धारक, दोषो से रहित, अबाध्य जानते है ? भारतीय संस्कृति में त्याग और तपस्या के सिद्धांत से युक्त, देवों से भी पूज्य, वीतराग, सर्वज्ञ एवं परम प्रादर्श परमात्मा का ही प्रतिदिन नाम-स्मरण किया हितोपदेशियो मे मुख्य और स्वयम्मू श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र जाता है। भगवान महावीर ऐसे ही परमात्मा हुए, जो की स्तुति हेतु में प्रयत्न करूगा। सभी प्रकार के दोषो तथा बन्धनों से रहित एव परम गुणों
सर्वज्ञ का अर्थ से सहित थे। परमात्मा के ही अन्य नाम है-- ज्ञानी, जो सब को जानता है, वह सर्वज्ञ है। 'सर्वज्ञ' शब्द शिव, परमेष्ठी, सर्वज्ञ, विष्णु, ब्रह्मा, बुद्ध, कर्मयुक्त का प्रयोग प्रायः दो अर्थों में किया जाना है। पदार्थ के मूल प्रात्मा। किन्तु विभिन्न दर्शनो मे इन शब्दो की निरुक्ति तत्त्व को जानना, समान चेतना सम्पन्न प्राणियो मे वही एव व्याख्या अलग-अलग रूपो में की गई है। इसलिए जीव तत्त्व है जो हम में है, इसलिये अपने पाप का जान प्राय. एक दर्शन का ज्ञाता दूसरे दर्शन को समझते समय लेने का अर्थ उन सभी जीवों को जान लेना है। इस अर्थ अपनी मान्यताप्रो एव पूर्वग्रह के अनुसार अपनी-अपनी के अनुसार सभी पदार्थों को जानना देखना प्रभीष्ट नही कसौटियो पर दूसरो को कसने का प्रयत्न करते है जिससे है, किन्तु तत्त्व को जानना, देख लेना ही सब को जानना उनके साथ न्याय नहीं हो पाता।
देख लेना है। कहा भी जाता है कि 'यत् पिण्डे तत् प्रश्न यह है कि महावीर सर्वज थे या नहीं। जन ब्रह्माण्डे' में व्याप्त है। वैसे इस सारे संसार का विशद मागम ग्रन्थों में पूर्ण ज्ञान से विशिष्ट भगवान महावीर का ज्ञान प्राप्त करना सम्भव नही है. इसलिये पिण्ड में व्याप्त स्तवन किया गया है । भगवान महावीर सब पदार्थों के तत्त्व का ज्ञान प्राप्त कर लेने से सारे ब्रह्माण्ड का ज्ञान ज्ञाता. द्रष्टा थे। काम क्रोधादि के अन्तरंग शत्रुओं को हो जाता है। जैनागम के वचन हैं१. "ववगयप्रसेस दोसो सयलगुणप्पा हवे अत्तो।" ४. सो जयइ जस्स केवलणाणुज्जलदपणम्मि लोयालोय ।
मसार, १, ५ पुढ पडिबिम्ब दोसइ विपसियसयवतगमग उरो वीरो ।। २. णाणी सिव पर मेट्ठी सव्वण्हूं विण्ड चउमुहो बुद्धो।
-जयघवला अप्पो वि य परमप्पो कम्मविमुक्को य होइ फुड ॥ ५. अनन्तविज्ञानमतीत दोषबाध्यसिद्धान्तममयं पूज्यम् ।
--भावपाहुड, १५१ श्रीवर्द्धमान जिनमाप्तमुरूप स्वरम्भुव स्तोतुमह यतिष्ये । ३. सूत्रकृतांग, १, १, १ ।
-स्याद्वादमजरी, १