Book Title: Anekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 102
________________ कविवर जगतराम : व्यक्तित्व और कृतित्व दास ने तो उन्हें 'भूप' और 'महाराज' जैसी विशेषण- प्ररणा से प्रागरे में की थी। यह हिन्दी साहित्य का एक सूचक सज्ञाओं से अभिहित किया है। अनूठा ग्रन्थ है। जगतराय ने सभी उपलब्ध छन्द-शास्त्रों स्वयं राजा होते हुए भी उनमें अहंकार किंचित् भी का अध्ययन करके इस ग्रन्थ की रचना की थी। इसकी नहीं था। वे काशीदास आदि अनेक कवियों के प्राश्रय- एक हस्तलिखित प्रति दिगम्बर जैन नया मन्दिर, धर्मपुरा, दाता थे। श्री अगरचन्द नाहटा के अनुसार, 'जगतराय दिल्ली के सरस्वती भण्डार मे सुरक्षित है। उसके शुरू एक प्रभावशाली, धर्म प्रेमी और कवि-पाश्रयदाता तथा के दो पद्यों में हिम्मतखान का गुणगान किया गया है।" दानवीर सिद्ध होते है ।' जगतराम के रचे हुए अनेक पद भी मिले हैं। इनकी ___ जगतराम का साहित्यिक जीवन वि० सं० १७२० से लघुमगल नाम की एक कृति भी मिलती है जिसमें १७४० तक रहा। जगतराम की रचनाओं के विषय में केवल १३ पद्य हैं और दि. जैन मन्दिर, बड़ौत के गुटका मतभेद है। पं० नाथ रामजी प्रेमी अपने 'दिगम्बर जैन स०५४ में पत्र सं०१६-१.२ पर अंकित हैं। ग्रन्थकर्ता और उनके ग्रन्थ' में जगतराय की तीन छन्दो- इनकी जैन-पदावली की सूचना काशी नागरी प्रचाबद्ध रचनामों का उल्लेख करते है: 'पागमविलास', रिणी पत्रिका के पन्द्रहवें वार्षिक विवरण मे संख्या १४ 'सम्यक्त्व कोमुदी' और 'पद्मनन्दिपंचविंशतिका' । की प्रविष्टि से प्राप्त होती है। यह रचना जैन मन्दिर, दिल्ली के नये मन्दिर और सेठ के कंचे के मन्दिर को किरावली (आगरा) से उपलब्ध हुई थी। इसमें श्री अनेकान्त के वर्ष ४, अंक ६, ७, ८ में प्रकाशित ग्रन्थ जगतराम के रचे हए २३३ पद है। उनके बारे में उक्त सूची के अनुसार, जगतराय 'छन्द रत्नावली' और 'ज्ञाना- पत्रिका की पालोचनात्मक टिप्पणी में लिखा है कि नानी पाल न नन्द श्रावकाचार, गद्य ग्रन्थ के भी रचयिता थे । 'इन्होने प्रष्ट छाप कवियों की शली पर पदो की रचनाएं दिल्ली की ग्रन्थ सूची के अनुसार, इनका 'मागम- की, जिनका एक सग्रह प्रथम खोज में प्रथम बार उपलब्ध विलास' एक काव्य संग्रह है जिसका संग्रह मैनपुरी में हमा हैं। इसमें तीर्थकरो की स्तुतियाँ सुन्दर पदों में वि० सं० १९८४ की माघ सुदी १४ को किया गया था। वर्णन की गई है"। जगतराम के पद छोटे किन्तु बड़े सरस यह कृति पुण्यहपं और उनके शिष्य अभयकुशल की है और भावप्रवण है, मानो कवि ने उनमे अपना हृदय उंडेल और उन्होने इसकी रचना फाल्गुन सुदी १०, वि० सं० दिया हो। १७२२ को प्रागरे मे जगतराय के लिए की थी।" कविवर का एक पद इस प्रकार हैजगतराम ने 'चन्दरत्नावली' की रचना वि० सं० 'प्रभु बिन कौन हमारी सहाई ॥ टेक ।। १७३० कार्तिक सुदी मे आगरे के नवाब हिम्मतखान की और सबै स्वारथ के साथी, तुम परमारथ भाई ॥१॥ ८. काशीदास, सम्यक्त्व-कौमुदी, प्रशस्ति और पुष्पिका, छदो ग्रन्थ जितक है, करि इक ठौरे प्रानि । अनेकान्त, वर्ष १०, किरण १० । समुझि सबको सार ले, रतनावली बखानि ॥४॥ ६. अग्रवाल है उमग्यानि, सिंघल गौत्र वसुधा विख्यात । छन्द रत्नावली, नया मन्दिर, धर्मपुरा, दिल्ली की प्रति, पुण्यहर्ष, पद्मनन्दिपविशतिका, प्रशस्ति और संग्रह, सख्या ६१। पृ० २३३ । १३. 'उज्जल जस अबर कर्यो दस दिस हिम्मतखान । १..श्री ज्ञानचंद जैनी, दिगम्बर जैन भाषा ग्रन्थ नामावली, मुकता तजि सुर सुन्दरिन, भूषन कियो कान । लाहौर, सन् १९०१ ई०, पृ० ४, नं०८। हिम्मतखां सों अरि कपत, भाजत लै लै जीय । ११. पद्मनन्दिपंचविंशतिका, प्रशस्ति, भारतीय साहित्य, प्ररि रि हमें हं संग लै, बोलत तिनकी तीन ॥ पृ० १८१। वही, पृ०१८३ । १२. जुगतराई सो यों कह्यो, हिम्मतखान बुलाई । १४. काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका का पन्द्रहवां वार्षिक पिंगल प्राकृत कठिन है, भाषा ताहि बनाई ॥३॥ विवरण, संख्या १४।

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