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मानवीय समुन्नति का प्रशस्त मार्ग विनय
पं० विमलकुमार जैन सोरया, एम. ए , शास्त्री विण मो मोक्खहारं विणयावो सजमो तवो जाणं, विनय के अन्र्तगत पाती है। अपने से श्रेष्ठ जनो के सामने णिगएजरातिज्गाह मायरियो सध्वसंघो य । यात ही आसन से उठना, हाय जोड़ कर अभिवादन करना, मायारजीदकप्प गुणदीवाण प्रत्तसोधिणिज्झझा, श्रेष्ट उच्च प्रासन देना, पूज्य जनो के चरणो में झुकना प्रज्जव मदद लाघव भत्ती पल्हाद करणं च ॥ और इष्ट देव को यथा य ग्ध पूजन अर्चन करना, किसी
भगवान कुन्दकुन्दाचार्य ने उक्त गाथाओ में विनय की के प्रति प्रतिकूल न कह उसके अनुकूल बोलना, देश व काल महत्ता दर्शाते हुए विशिष्ट गुणो का प्रतिपादन करते हुए योग्य द्रव्य देना लोकानत्ति विनय है। लिखा है कि-"विनय मोक्ष का द्वार है विनय से सयम' २-अर्थ निमित्तक विनय --धनलाभ की प्राकांक्षा से तप और ज्ञान होता है और विनय से प्राचार्य व सर्वसध व्यापारिक कार्यों में ग्राहको के प्रति अर्थ लाभ की दृष्टि की सेवा हो सकती है। माचार के, जीव प्रायश्चित के से प्रादर सूचक सम्मान पूर्ण शब्दों से बोलना, अपने अर्थ पौर कल्प प्रायश्चित के गुणों का प्रगट हाना प्रात्म शुद्धि, प्रयोजन सिद्धि के लिए स्वार्थवश अधिकारियों, व्यक्तियों कलह रहितता, पाव, मादव, निर्लोभता, गुरुसेवा सबको या सहयोगी उद्योगपतियों के प्रति हाथ जोड़ना, नम्रता सुखी करना यह सब विनय के गुण है।"
दिखाना अर्थ निमित्तक विनय है । विनय का तात्पर्य नम्र वृत्ति का रखना है । यह एक ३-कामतंत्र विनय-ज्ञन्द्रियवासनामों की पूर्ति के ऐसी मनोवैज्ञानिक ज्ञान गुण प्रवृत्ति है जो व्यक्ति के लिए अपने प्रेमीजन के प्रति नम्रता श्रादर प्रगट करना, व्यक्तित्व को और प्रात्मा को समुपलब्धि को प्राप्त कामपुरुषार्थ के निमित्त विनय करना कामतंत्र विनय है। कराती है। पूज्य पुरुषों के प्रति प्रादर गुणी एवं वृद्ध ४-भय विनय-धन हानि, मान हानि, अथवा शारीपुरुषों के प्रति नम्र वृत्ति, कषायों एव इन्द्रियों को सरल रिक क्षति के भय से अपने से विशेष शक्तिशाली व्यक्ति, करना विनय की परिधि के प्राकार है। विनय व्यक्ति के शत्रु या शासकीय अधिकारी के प्रति जो पाटर पूर्वक यश की उज्वल ग्राभा मर्वत्र प्रकाशवान रहती है । विनय भक्ति या विनय की जाय अथवा जिसमें किसी भी प्रकार वान सभी का प्रिय और प्रादर भाजन होता है। विनय के भय की प्रागमाहा उसके प्रति जो विनय की जाती है सम्पन्नता से ही तीर्थकर नाम कम वो वास्ता है क्योकि वह भय विनय है। विनय सम्पन्नता एकमी होकर १६ अवयवो से सहित है। ५-मोक्ष विन्य-ग्रात्म कल्याण के हित अथवा मोक्ष प्रतः उस एक ही विनय सम्पन्नता से मनुष्य तीर्थ र नाम मार्ग मे विनय का प्रधान स्थान है। ज्ञ'न लाभ, प्राचार को बाधते है।
शुद्धि और सच्ची पाराधना की सिद्धि विनय से होती है। माध्यात्मिक दृष्टि से मोक्ष के साधन भूत सम्यग्ज्ञाना- और अन्त में मोश सुख भी इसी मे मिलता है। प्रतः दिक मे तथा उनके साधको मे अपनी योग्य रीति से प्रादर मोक्ष मार्ग मे विनय भाव का मर्वोपरि स्थान है। व सम्मान करना, व पाय को निवत्ति करना, ज्ञान दर्शन मुमुक्षुजन सम्यग्दशन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र व तप चारित्र व तप की अतिचार प्रशुभ क्रियाग्रो को हटाना के दोष दूर करने के लिए जो कुळ प्रयत्न करते है उसे भौर रत्नत्रय मे विशुद्ध परिणाम लाना ही विनय है। विनय कहते है। इस प्रयत्न में शक्ति को न छिपा कर
सामान्यरुप से विनय का वर्गीकरण पांच प्रकार से शक्ति के प्रनमार उन्हे करते रहना विनयाचार है। यह किया गया है। जो निम्नलिखिन अनुसार भेदो, प्रभेदो के विनयाचा पाच प्रकार की है। इन्हे अगर मोक्ष गति के रूप मे उल्लखित है---
नायक कहा जाय तो मतिशयोक्ति न होगी। भेद निम्न१-लोकानवृत्ति विनय - लोक परम्परा के अनुरूप लिखित अमुसार है। जो क्रियाएँ सम्पादित की जाती है-वे लोकानुवृत्ति १-ज्ञान विनय-ज्ञान प्राप्ति में गुरु विनय प्रत्यंत