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१०, वर्ष २६, कि०२
अनेकान्त जनदेवालय में पार्श्वनाथ प्रतिमा के नीचे का अभि- कंवला, घुसई (घोमवती नाम यहां की एक तीर्थंकर लेख :
प्रतिमा के नीचे अकित है) जीरण, झार्डा प्रादि ग्रामों संवत १७४५ वासरे सोम वैशाख मासे ३ में तीर्थकर प्रतिमायें मिली जिसमे से कुछ पर मूर्तिलेख जाजा संघ ससजी सा सादली ।
है, विवरण इस प्रकार है :--खिलचीपुर मे पार्श्वनाथ यहां की एक मादिनाथ की प्रतिमा पर अकित लेख
- की प्रतिमा पर निर्माणकाल १४०५ अकित है । खानपुर पौर पादान्वये ख्यातः श्रीपालोः नामतः सुधिः (दशपूरों में एक जो प्राचीन समय मे मिलकर दशपुर
रत्नत्रयो
की संज्ञा से जाने जाते थे यही बाद में दशपुर) दसौर गुणोपेतस्तत्पुत्री लक्ष्यणौमतः गुणीकृतिः सुधिमान्यः
बन गया और १३ वी शती में मुस्लिम आक्रान्तो द्वारा कृष्ण राजोऽस्ति तत्सुत जिन कारित तेन बिम्बभुवि
मंद प्राभा वा ना यह दसौर नगर मद+दसौर हो गया) मनोहृतम् ।। संवत फाल्गुन सुदि ११६०॥ में पद्मावती की १६१० वि. की अभिलेख युक्त प्रतिमा
रिंगणोद की पहचान डा. वाकणकर ने इगुणिपद्रक संवत के अतिरिक्त मतिलेख का वाचन कठिन है क्योंकि से की है जो नखमन के देवास ताम्रपत्र मे पाता है। धिस च का है। यह स्थान रतलाम कोटा रेल्वे लाइन पर स्थित है। यहा मंदसौर से ७६ कि. मी. उत्तर में झार्डी ग्राम है की एक तीर्थकर प्रतिमा पर प्राप्त लेख का वाचन इस जहां २ जनमन्दिर हैं। १५ वी शताब्दी मे मांडवगढ के प्रकार है :
मन्त्री सप्रामसिह ने यहां जनमन्दिर का निर्माण कर ऊँ।। १७२३ वर्षे ज्येष्ठ वदि प्रतिप
तीर्थकर प्रतिमायें प्रतिष्ठित की। यहा एक मूर्ति के साख श्री सुत प्रणति नित्यं ।।
निम्नभाग पर अभिलेख मिलता है :-- रिंगनोद का ही एक अन्य प्रतिमालेख जो संभवतः १ संवत १५७६ वर्षे शुक्र १०४१ मासे.श्री स्वतत्र अभिलेख भी रहा हो वर्तमान में मध्यप्रदेश पुरा- सग्राम महा "रा. वियइ राज्ये राजश्री सिहलजी तत्व विभाग मे सुरक्षित है उसका वाचन इस प्रकार है - कन्नाजी साहितऊ महिन्दायान शोन मह देवालयों ...मिधेर्यभूत्वा सघंर्यादस्माद् ..
लेख जल्लाजयो 'चाचदेव की प्राषाढ़ वदी ११ पधान कार्या। यानोह दत्तानि पुरा नरेन्द्र दाना- रविवार कान्त मही पर देवाण · पूज को भेंट
निधर्माः पूजे कुम्भावलानवय शाभन भवन्तु ।। पुनराददोत । बहुभिर्वसुधा मुक्ता राजभिः सगरा- घसई जिला मदसौर के जनमदिर मे एक ६ पक्तियों
दिभि यः ..
का नागरी लिपि व संस्कृत भाषा में प्रस्तर अभिलेख है दत्ता वायोहरेत वसुधरा । प्राणास्त्रणाग्र जलविदु जिसमे रामचद्र आदि जैनाचार्यों का नाम है। वि.१३१३
समान राणा
का यह लेख है। यहा की दो अन्य प्रतिमानो पर १३३४ धर्मयस्थ राजप,लस्य सुनना प्रासाधर सुननय
बिल्हणेन व १३३७ विक्रम संवत के अस्पष्ट अभिलेख है। लिखिता हरसेण सुत साजणेन लिखित ।।
इस प्रकार सन् १९७५ को जनवरी से जून १६७६ सन् १९७५ क अन माह में मध्यप्रदेश राज्य पुरा. तक की अवधि में किये गए सर्वेक्षण में उपरोक्त अभिलेखतत्व के तत्वावधान व विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के युक्त तीर्थंकर प्रतिमायें मिली । भावश्यकता है कि इस सहयोग से प्राचीन दयपुर व वर्तमान मदसौर का ओर ध्यान देकर उन जैनावशेषों को एकत्र किया जाकर उत्खनन कार्य किया गया, उस उत्खनन के साय ही मैंने सुरक्षा प्रदान करे । सखेडी, करेड़ी, पचोर, सुदरसी, व डा. वाकणकर ने मदमौर जिले के जनावशेषों को जामनेर, शुजालपूर में लगमग ३१० जैन तीर्थकर प्रतितालिका बनाई व जैनहस्तलिखित ग्रन्थ भंडारो को देखा। मायें ऐसी मिली है जो पूर्णतया प्रसुरक्षित है। 00 समीपवर्ती अचल का जैन अपशेपों की दृष्टि से भी प्रव- ४ धन्वन्तरि मार्ग, गली नं. ४, माधव नगर, उज्जैन लोकन किया। खिलचीपुर, कयामपुर, मोड़ी, संघारा,
(मध्य प्रदेश)