Book Title: Anekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 82
________________ गोम्मटेश्वर बाहुबली भव्य मूर्ति का निर्माण कराया था, परन्तु वह कुक्कुट सो पक्रवर्ती ने पबलावि सिद्धान्त ग्रन्थों का सार लेकर रचा से व्याप्त हो जाने के कारण दुर्गम हो गई थी। इस कारण था। उसका दर्शन पूजन करना जनता को दुर्लभ हो गया था। गोम्मट जिनसेन तात्पर्य नेमिनाथ भगवान् की एक जब यह समाचार चामुण्डराय को ज्ञात हुपा तो उसने भी हस्त प्रमाण इन्द्र नीलमणि की उस मूर्ति से है, जिसे चाम. बाहुबली की विशाल मूर्ति का निर्माण कराया। जो ण्डराय ने बनवा कर अपनी वसति मे चन्द्रगिरि पर्वत पर दक्षिण भारत का निवासी था, और जिसका घरू नाम विराजमान किया था, किन्तु वह अब वहां पर नहीं है। गोम्मट था, और राजमल्ल द्वारा प्रदत्त 'राय' उनकी मोर दक्षिण कुक्कुट जिनसे अभिप्राय बाहुबली की उस उपाधि थी। इस कारण चामुण्डराय गोम्मटराय कहे जाते विशाल मूर्ति से है जो विन्ध्यगिरि पर चामुण्डराय द्वारा थे। जैसा कि गोम्मटसार जीवकाण्ड के-'सो राम्रो प्रतिष्ठित की गई है, और जो उत्तर प्रदेश पोदनपुर में गोम्मटो जयउ' वाक्य से स्पष्ट है। चामुण्डराय ब्रह्म- भरत चक्रवर्ती द्वारा निर्मित बाहुबली की उस शरीराकृति क्षत्रिय वंश के भूषण थे, वीर प्रतापी और धर्मनिष्ठ थे। मूर्ति से भिन्न है, तथा कुक्कुट सर्पो से व्याप्त हो गई थी। वह गंगवंशी राजा राजमल्ल के प्रधान मत्री और सेनापति उससे भिन्नता द्योतन करने के लिए ही दक्षिण कुक्कुट थे। वह पराक्रमी, शत्रुजयी, दृढ़ निश्चयी, साहसी और विशेषण लगाया गया है। वीर योद्धा था। उसने अनेक युद्धों मे विजय श्री प्राप्त की चामुण्डराय द्वारा निर्मित यह दिव्य मूर्ति ५७ फुट थी। इसी से समर धुरंधर, वीर मार्तण्ड, रणरंग सिंह, ऊंची है। प्रशान्त कलात्मक और चित्ताकर्षक है। इतनी भज विक्रम और वैरी कुल कालदण्ड आदि अनेक उपा विशाल और सुन्दर कृति मूर्ति अन्यत्र नहीं मिलती। धियो से समलंकृत था। प्राचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्र श्रवणबेलगोल में प्रतिष्ठापित जगद्विख्यात यह मूर्ति अद्विवर्ती ने गोम्मटसार मे चामुण्डराय को 'गुणरत्नभूषण' तीय है। जो धप, वर्षा, सर्दी, गर्मी पौर मांधी मादि की और सम्यक्त्व रत्न निलय बतलाया है और गोम्मटराय वाघानों को सहते हर भी अविचल स्थित है। मतिशिल्पी नाम से भी उल्लेखित किया है। इससे चामुण्डराय के की कल्पना का साकार रूप है। मूर्ति के नख-शिख वैसे व्यक्तित्व की महत्ता का सहज ही प्राभास हो जाता है। प्रकित हैं जैसे उनका प्राज ही निर्माण हुमा हो । मूर्ति जहां वह राजनीतिज्ञ था वहां वह विद्वान धर्मनिष्ठ प्रोर को देखकर दर्शक की प्रांखें प्रसन्नता से भर जाती है। ग्रन्थ रचयिता भी था। बाहुबली की यह मूर्ति ध्यान अवस्था की है। बाहुबली के गोम्मटसार कर्मकाण्ड की १६८वी गाथा मे प्राचार्य केवल ज्ञानी होने से पूर्व वह जिस रूप में स्थित थे, माधवी नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने उनकी तीन उपलब्धियों का लतामो ने उनके बाहुपों को लपेट लिया था और सों ने उल्लेख किया है : वामियां बना ली थी। कलाकार ने उसी रूप को भकित किया है। दर्शक की पाखें उस मूर्ति को देखकर तृप्त नहीं गोम्मट संगह सुत्तं गोम्मट सिहरुवरि गोम्मट मिणो य । होती। उसकी भावना उसे बार-बार देखने की होती है। गोम्मटराय विणिम्मिय दक्खिण कुक्कुट जिणो जयउ॥ मूति के दर्शन से जो प्रात्मलाभ और शान्ति मिलती है उक्त गाथा मे गोम्मट संग्रह सूत्र, गोम्मट जिन और वह शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं की जा सकती। मैं तो उस दविखण कुक्कुट जिन, इन तीन कार्यों में उल्लेख किया मूर्ति के दर्शन से अपना जीवन सफल हुमा मानता हूं। गया है। पौर चाहता हूं कि प्रन्तिम समय में इस मूर्ति का दशन गोम्मट संगह सुत-गोम्मट संग्रह सूत्र गोम्मटसार मिले। मूर्ति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह निरानाम का ग्रन्थ है, जिसका दूसरा नाम पंचसंग्रह भी है, वरण होते हुए भी उस पर पक्षी बीट नही करते । हजारों और जिसे चामुण्डराय के अनुरोध से नेमिचन्द्र सिद्धान्त विदेशी जन इस मूर्ति का दर्शन करना अपना सौभाग्य १५. अनेकान्त वर्ष ४ कि. ३-४ पृ. २२६, २६३ ।

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