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जैन प्राचार्यों द्वारा संस्कृत में स्वतन्त्र ग्रन्थों का प्रणयन
वती चरित, माणिक्यनन्दी सूरि ने पार्श्वनाथचरित् एक करके इस काव्य के प्रत्येक पद्य मे समाविष्ट कर सर्वानन्द प्रथम ने चन्द्रप्रभचरित व पार्श्वनाथचरित, विनय लिया गया है। मेघदत के अन्तिम चरणों को लेकर चन्द्र ने मल्लिनाथचरित, पार्श्वनाथचरित व मुनिसुव्रत- समस्यापूर्ति की जाने के तो उदाहरण प्राप्त होते है किन्तु चरित, मलघारी हेमचन्द्र ने नेमिनाथ चरित, चन्द्र तिलक सारे मेघदूत को वेष्टित करने वाला यह एक प्रथम व (वि० १३१२) ने अभय कुमारचरित, भावदेव सूरि ने अद्वितीय काव्य है। पाश्र्वनाथ चरित, जिनप्रभसूरि (वि० १३५६) ने श्रेणिक- कथासाहित्य के अन्तर्गत सिद्धपि कुन उपमितिभवचरित जैसे उत्तम ग्रन्थो की रचना कर सस्कृत-माहित्य प्रपचकथा, धनपाल कत तिलकम जरी, हेमचन्द्र कत की श्रीवृद्धि की।
त्रिषष्टि शलाकापुरुप चरित, हरिषेण कृत वृहत्कथाकोष को इसके अतरिक्त, हरिचन्द्र का धर्म शर्माभ्युदय, वाग्भट विशिष्ट स्थान प्राप्त है। (१२वीं शती) का नेमि निर्वाण महाकाव्य तथा जन प्राचार्यों द्वारा लिखे गये मरकत नाटकों की प्रहंददास (१३वी शती) के मुनिसुव्रतमहाकाव्य का परम्परा मे १३वी शती के रामचन्द्र सूरि कृत निर्भय प्रणयन इस सन्दर्भ में उल्लेखनीय है।
भीमव्या योग, नलविलाम, कौमुदीमित्रानन्द, हस्तिमल्ल सन्देश काव्यों में विक्रम (ई०१३वी शती का अन्तिम कत विक्रान्तकौरव, सुभद्रा, मैथिलीकल्याण, अजनापवनचरण) का नेमिदत, मेरुतुंग (१४-१५वी शती ई०) का जय, गमभद्र कृत प्रबद्धरोहिणेय, यश पाल कुन मोहराजजैन-मेघदत, चरित्र सुन्दर गणि (१५वी शती) का । पराजय, जर्यासह सूरि कृत हम्मीरमर्दन, यशश्चन्द्र कृत शीलदूत, वादिचन्द्र मूरि (१७वी शती) का पवनदून, मुद्रितकुमुदचन्द्र, रत्नशेखरमरि कृत प्रबोधचन्द्रोदय, विनयविजय गणि (१८वी शती) का इन्द्रदूत, मेघविजय मेघप्रभाचार्य कृत धर्मारपुदय, नागदेव (१६वी शती) (१८वी शती) का मेघदूतसमस्यालेख, विमलकीति गणि कन मदनपराजय, वादिचन्द्र सूरि (१७वी शती) कत का चन्द्रदत उल्लेखनीय रचनाएं है। इन सन्देश काव्यो ज्ञान सूर्योदय कृतियों का नाम उल्लेखनीय है। में शान्तरस को अमृतधारा प्रवाहित होती है और पाठको
सस्कृत अलकार व छन्द.शास्त्रसम्बन्धी कृतियों में को शाश्वत प्रानन्द प्रदान करने की क्षमना निहित है। वाग्भट (१२वी शती) कत वाग्भटालंकार, हेमचन्द्र
जैन काव्य जगत् मे अनेकार्थक (सन्धान) काव्यो का (११वी शती) कृत काव्यानुशासन, परिसिंह (१३वी प्रवेश ई० ५.६ठी शती से हुआ । वसुदेव हिण्डो की चत्तारि शती) कृत काव्यकल्पलता, नरेन्द्र प्रभसूरि (वि० १२८२) अगाथा के १४ अर्थ तक किये गये है। ८वी शती मे महा- कृत अलंकारमहोदधि, हेमचन्द्र के शिष्यद्वय रामचन्द्र व कवि धनंजय का द्विसन्धान-महाकाव्य सर्वप्रथम सन्धान गुणचन्द्र कृत नाट्यदर्पण, अजितसेन (१४वीं शती) कन महाकाव्य है । ११वी शती के शान्तिराज कवि द्वारा पच- अलकार-चिन्तामणि, तथा अभिनव वाग्भट (१४वी शती) सन्धान महाकाव्य रचा गया, जो अभी अमुद्रित है। कृत काव्यानुशासन का स्थान सर्वोपरि है। प्रा० भावदेव
मेघविजय उपाध्याय (१८वीं शती) का सप्तसन्वान सूरि (वि० १५वी शती) का काव्यालकाग्मार नामक ग्रन्थ महाकाव्य तथा हरिवत्तमरि (१८वी शती) का राघवन- भी अत्यन्त सरल व सरस है। पघीय भी उत्कृष्ट ग्रन्थ हैं। कई अनेकार्थक स्तोत्र भी काव्यप्रकाश पर माणिक्यचन्द्र की संकेता नामक टीका रचे गये । कवि जगन्नाथ (वि० १६६६) कत चतुर्विशति. और काव्यालकार पर नेमि साधु कृत टीका तथा काव्यसन्धान काव्य भी उल्लेखनीय है।
कल्पलता पर श्री अमर मुनि की टीका भी विशिष्ट कृतियों पाश्र्वाभ्युदय नामक खण्ड काग भी सस्कृत साहित्य मे मानी जाती है। में अद्वितीय है। इसकी रचना जिनसेन स्वामी ने की थी। महाकवि धनंजय (ई० ८१३ से पूर्व) कृत नामइसकी विशेषता यह है कि महाकवि कालिदाम के माला, अनेकार्थनाममाला व अनकार्थ निघण्टु, हेमचन्द्र कृत मेघदत के जितने भी पद्य ह उन समी के चरणों को एक- अभिधानचिन्तामणि व अनेकार्थसंग्रह नामकोश व निघण्टु