Book Title: Anekant 1976 Book 29 Ank 01 to 04
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 41
________________ जैन संस्कृत नाटकों की कथावस्तु : एक विवेचन श्री बापूलाल प्रांजना, उदयपुर संस्कृत वाङ्मय की अन्य विधामो के समान नाट्य का समुच्छय प्रतीत होता है। विधा को भी जैन नाटककारो ने अपनी कृतियों से भरा- इसमे नाटककार एक विशिष्ट उद्देश्य लेकर चला है पूरा किया है। नाटयाचार्य रामचन्द्र, देवचन्द्र, रामभद्र. और वह है सामाजिक अंधविश्वासो व उनके प्रवर्तकों के गुनि, मेघप्रभाचार्य. बालचन्द्र मूरि, जयसिंह मूरि, नयचन्द्र, प्रति प्रश्रद्धा उत्पन्न करना । कापालिक लम्बोदर, घोरहस्तिगल्ल, ब्रह्म सूरि, नेमिनाथ, यश पाल और यश चन्द्र घोण और उसकी पत्नी लम्बस्तनी की घृणित चरितावली प्रादि जैन कवियों ने दो दर्जन से भी ऊपर नाटको की का विस्तार इसी दष्टि से किया गया है। वेश्या की भररचना की है। यहा जैन नाटककारो के नाटको के कथा- पूर निन्दा तोसरे अक में की गई है। नक की विशेषतामो पर सक्षिप्त प्रकाश डाला जा निर्भयभीम',-रामचन्द्र का यह व्यायोग-कोटि का रहा है। रूपक है। इसकी कथा महाभारत से ली गई है। एक कई जैन मुनियों ने जैन होते हुए भी महाभारत, पुरुष से भीम यह सूचना पाकर की ऊँचे पर्वत पर बक रामायण, नलकथा, सत्य हरिश्चन्द्र कथा या अन्य पौरा. राक्षम रहता है, जिसके लिए नगर के लोग एक-एक मनुणिक कथाओं को अपने नाटक की कथावस्तु बनाकर इस । ष्य भेजते है जिसे वह वध्यशिला पर मारकर खाता है। देश की सनातन सास्कृतिक मर्यादापो को अभिमिचित । भीम अन्य राक्षसों सहित वक का संहार करता है। भवकिया है। उन्हें अमर बनाया है। रामचन्द्र के नलविलास. भीत ब्राह्मण परिवार अपनी कृतज्ञता प्रकट करता है । सत्य हरिश्चन्द्र, निर्भयभीम व्यायोग, रघुविलास, धनमाला इस नाटक पर भास के मध्यमव्यायोग व नागानद और हस्तिमल्ल का मैथिलिकल्याण प्रादिरूपक इसी प्रकार का स्पष्ट प्रभाव है । इस नाटक में कवि ने विदेशी प्राक्रके हैं। मणकारियो से जर्जरित देश की रक्षा के लिए भीम के महाभारत, रामायण एवं पौराणिक कथानकों पर चरित्र में भारतीय वीरो को प्रेरणा दी है। भीम के प्राधारित नाटक: परोपकार प्रादि गुणों को समाज के सामने रखना भी कवि का उद्देश्य रहा है। नलविलास'- नाट्याचार्य रामचन्द्र (१२वी शनी सत्यहरिश्चन्द्र-छ: अको के इस नाटक में कवि ने का द्वितीय और तृतीय चरण) का यह नाटक ७ अकों का हरिश्चन्द्र के चरित के लौकिक आदर्श को प्रस्तुत किया है। इसमें नल-दमयन्ती के प्रेम व विवाह की कथा । है। हरिश्चन्द्र की कथा कई दृष्टियों से प्रभावोत्पादक व निबद्ध की गई है। महाभारतीय नलकथा में लेखक कथा में लेखक नाटकीय तत्त्वो से युक्त है। कथा के नायक में देवता व ने पर्याप्त परिवर्तन कर दिया है। अनावश्यक विवरणो ऋषियों का इस स्तर पर रुचि लेना संस्कृत साहित्य मे से नाटक का कलेवर बहुत बढ़ गया है। उपदेश देने की अन्यत्र कम ही पाया जाता है। मानव, देव, विद्याधर, कवि की प्रवृत्ति इतनी अधिक है कि भनेक स्थलो पर पिशाच व पशु-पक्षी कोटि के पात्र हैं। यह नाटक भर्तहरिशतक व पचतत्र की भाति लोकव्यवहार इसका कथानक पौराणिक युग से ही चरित्र-निर्माण १. गायकवाड़ मोरियण्टल सीरीज, बड़ौदा से प्रकाशित । ३. यशोविजय ग्रथमाला १६ मे बनारस से प्रकाशित । २. रामजी उपाध्याय विरचित मध्यकालीन संस्कृत ४. निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित । नाटक, पृ. १५७ .

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