________________
खजुराहो के पार्श्वनाथ जैन मन्दिर का शिल्प वैभव
[] श्री मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी, प्राजमगढ़
मध्यप्रदेश के सतना जिले के छतरपुर नामक स्थान मान्यता है कि इस अवसर्पिणी युग मे अवतरित होने वाले पर स्थित खजुराहो मध्ययुगीन भारतीय स्थापत्य एव सभी २४ तीर्थकरों की माताओं ने उनके जन्म के पूर्व मूर्तिकला का एक विशिष्ट केन्द्र रहा है। अपने वास्तु शुभ स्वप्नों का दर्शन किया था। श्वेताम्बर परम्परा में एवं शिल्पगत वैशिष्ट्य और साथ ही कामक्रिया से शुभ स्वप्नों की संख्या १४ बताई गई है, जबकि दिगम्बर सम्बन्धित चित्रणो के कारण खजुराहो के मन्दिर आज परम्परा १६ स्वप्नो के दर्शन का उल्लेख करती है । भी विश्व प्रसिद्ध है। मध्ययुग मे खजुराहो चन्देल शासको जैन समूह के मन्दिरों मे पाश्वनाथ मन्दिर प्राचीनतम की राजधानी रही है। चन्देल शासकों के काल म हिन्दू है। पार्श्वनाथ मन्दिर अपनी स्थापत्यगत योजना एवं मर्त मन्दिरो के साथ ही खजुराहा में जैन मन्दिरों का भी अलकरणो की दृष्टि से खजुराहो के जैन मन्दिरों मे निर्माण किया गया था । खजुराहो म सम्प्रति तीन प्राचीन सर्वोत्कृष्ट एव विशालतम है। खजुराहो की कई विश्व
और ३२ नवीन जैन मन्दिर अवस्थित है। वर्तमान में प्रसित मरा मतियां (दर्पण देवती, काजल लगाती, खजुराहो ग्राम के समान अवस्थित जैन भन्दिरो का समूह प्रेमी बो पत्र लिखती प्रौर पर मे चुभे काटे को बाहर खजुराहो का पूर्वी देव-मन्दिर-समूह कहलाता है। जैन निकालती) भी इसी मन्दिर पर उत्कीर्ण है। शिल्प, मन्दिरों में सम्प्रति पार्श्वनाथ और आदिनाथ मन्दिर ही वास्तु एवं अभिलेरा के आधार पर पाश्वनाथ मन्दिर का पूर्णतः सुराक्षित है। तीमर। मन्दिर घण्टई मन्दिर है, निर्माणकाल चन्देल शासक घग के शासन काल के प्रारजिमका केवल अर्धमण्डप एव महामण्डप ही अवशिष्ट है। म्भिक दिनो (९५०-६७० ई० ) मे स्वीकार किया गया उपर्युक्त प्राचीन मन्दिरों के अतिरिक्त खजगहो मे १५ है। मन्दिर मे सवत् १०११ (९५४ ई० ) का एक अन्य जैन मन्दिर भी रहे है। इसकी पुष्टि उपर्युक्त न मन्दिर भी रहेगा उसकी जिम अभिलेख भी उत्कीर्ण है।
अ सुरक्षित मन्दिरो के पाच उत्तरागो के अतिरिक्त १५ अन्य पूर्वमुखी पार्श्वनाथ मन्दिर प्रदक्षिणापथ से युक्त गर्भउत्तरांगो की प्राप्ति से होती है। जैन परम्परा मे मान्यता गृह, अन्तराल, महामण्डप और अर्घमण्डप से युक्त है। है कि ६५० ई० से १०५० ई. के मध्य खजुराहो म ८४
म मन्दिर के पश्चिमी भाग में एक अतिरिक्त देवकूलिका भी
मा जैन मन्दिरों का निर्माण किया गया था (विविध तीर्थ सयुक्त है, जिसमें ऋषभनाथ (प्रथम तीर्थकर) की ग्याकल्प)। खजुराहो की जैन मूर्तियो का ममूचा समूह
रहवी शती ई० को प्रतिमा प्रतिष्ठित है। ज्ञातव्य है कि दसवी से बारहवी शती ई० (६५०-११५० ई० ) के
___वर्तमान पार्श्वनाथ मन्दिर मूलतः प्रथम तीर्थकर ऋषभमध्य तिथ्यकित किया गया है।
नाथ को मर्पित था। पर १८६० मे गर्भगृह में स्थापित ___ खजुराहो को समस्त जैन शिल्प सामग्री एव स्था
काले पत्थर की पार्श्वनाथ (२३वें तीर्थंकर) की मूर्ति के
कारण ही उसे पार्श्वनाथ मन्दिर के नाम से जाना जाने पत्यगत अवशेष दिगम्बर सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। इसका
लगा। मडप के ललाटबिंब पर ऋषभनाथ की यक्षी चक्रेशप्राधार जैन तीर्थकरो ( या जिनो ) की निर्वस्त्र मूर्तियो
वरो आमूर्तित है । साथ ही, गर्भगृह की मूल प्रतिमा के और प्रवेशद्वार पर १६ मालिक स्वप्नो के चित्रण है।
सिंहासन पर ऋषभ का वृषभ लाछन और छोरो पर ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर परम्परा को मूर्तियो म तीर्थकरो।
ऋषभ स ही सम्बन्धिन यक्ष-यक्षी युगल, गौमुख-चक्रेश्वरी का सर्वदा वस्त्र-युक्त दिखाया गया है। जैन परम्परा में निरूपित है।