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४८, वर्ष २६, कि० १
अनेकास
वर्मा के समय धारा नगरी में थे। इनके वैद्यक ज्ञान का इस प्रकार आयुर्वेद साहित्य के अनेक जैनमनीषी प्राचार्य प्रभाव इनके "सागारधर्मामृत" ग्रन्थ में मिलता है। अत. ये हुए है। वर्तमान काल मे भी कई जैन माधु तथा श्रावक विद्वान वैद्य थे । इनके लिए मूरि, नयविश्ववक्षु, कलिकालि- चिकित्सा शास्त्र के अच्छे जानकार है किन्तु उन्होंने कोई दास, प्रज्ञापुज प्रादि विशेषणो का प्रयोग किया गया है। प्रत ग्रन्थ नही लिखे है । मैंने कई जैन साधुनों को शल्य चिकित्सा इनके वैद्य होने में सदेह नहीं है। पडितजी ने समाज को पूर्ण का कार्य मफलता पूर्वक निष्पन्न करते हुए देखा है। प्रहिमक जीवन बिताते हुए मोक्षगार्ग का उपदेश दिया है।
जैन प्राचार्यों ने प्रायुर्वेद साहित्य का लेखन तथा शरीर, मन, और प्रात्मा का कल्याणकारी उपदेश इनके
व्यवहार समाज हित के लिए किया है। भारतवर्ष में जैन सागरधर्मामृत में है। उनके अनुमार यदि धावा याचरण
धर्म की अपनी दष्टि है और उममे जीवन को सम्यक् प्रकार करे तो रुग्ण होने का अवसर नहीं पा सकता है।
से जीते हुए मोक्षमार्ग की ओर प्रवृत्त करना दृष्टव्य है। (१३) भिषक शिरोमणि हर्षकोति सूरि .. इनका
इसलिए आहार-विहार आदि के लिए उन्होंने अहिंसात्मक ठीक काल ज्ञात नहीं हो सका है। ये नागपुरीप तपा
समाज निर्माण विचार का वर्णन किया है। चिकित्सा मे गच्छीय चन्द्रकीति के शिष्य थे और मानकोति इनके गुरु
मद्य, मास और मधु के पयोग का धार्मिक दृष्टि से समाथे। इन्होने योगचिन्तामणि और व्याधिनिग्रह ग्रन्थ लिसे वेश नही किया है। वदिक परम्परा के प्राचार्यों ने जो है। दोनो उपलब्ध है पीर प्रकाशित है। दोना चिकित्मा प्रायवेद माहित्य लिखा है उससे तो जैन परम्परा के द्वारा के लिए उपयोगी है। इनके साहित्य में चग्य, गुश्रुत एव निखित ग्रागर्वेद माहित्यमे उक्त दोनो पगपरायो की अच्छी वाग्भट्ट का सार है । कुछ नवीन योगो का मिश्रण है जो बातो के साथ माथ निजी विशेषतायें है। वे हिसात्मक इनके स्वय के चिकित्मा ज्ञान की गहिमा है। ग्रन्प जैन विचार के है जिनका सबध शरीर, मन और प्रात्मा से है। प्राचार्यो की रक्षा हेतु लिखा गया है।
इसका फल समाज में अच्छा हुप्रा है। श्राज जैन प्राचार्यो (१४) डा० प्राणजीवन माणिकचन्द्र मेहता- इनका ने जो प्रायुर्वेद माहित्य लिखा है उसके सैद्धान्तिक एव जन्म १८८६ में हमा। ये एम. डी निग्रीधारी जैन है। व्यवहार पक्ष का पूग परीक्षण होना शेष है। जैन समाज इन्होने चरकसंहिता के अग्रजी अनुवाद में योगदान दिया तथा शामन को इस भारतीय ज्ञान के विकास हेतु आवहै। ये जामनगर की प्रायद सस्था में सचालक रहे है। श्यक प्रयत्न करना चाहिए।
शिव और जिन की पूजा विधि में एकरूपता
जैन और शैव की पूजा सामग्री में एकरूपता है। जल, सुगध, अक्षत, दीपधूप, नैवेध और फल यहो अष्ट द्रव्य दोनों की पूजा-विधियों की साधन सामग्री होती है
पत्र: पुष्पः फलपि जलैर्वा विमलः सदा। करवीरः पूज्यमानः शकरो वरदो भवेत् ॥
----स्कन्दपुराण १, ५, ८६ । अग्नि पुराण ७४, ६३ प्रादि