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तीर्थंकर महावीर
श्री प्रेमचन्द जैन, एम० ए०, दर्शनाचार्य, जयपुर
प्राज से ढाई हजार वर्ष पूर्व के भारतीय इतिहास महावीर का जन्म हुआ। उनकी माता का नाम त्रिशला पर दष्टिपात करते है तो हृदय मन्न रह जाता है। यह (प्रियकारिणी), पिता का नाम सिद्धार्थ', बड़े भाई का विश्वास ही नही हो पाता कि क्या भारतीय संस्कृति नाम नन्दीवर्द्धन*, बहन का नाम सुदर्शना" तथा नाना का इतनी विकृत, इतनी गन्दली, इतनी तिरस्कृत बन सकती नाम चेटक' था। है ? सत्ता, महत्ता, प्रभुता व अन्धविश्वाम के नाम पर
तेज:पंज भगवान के गर्भ मे पाते ही गिद्धार्थ राजा इतने अत्यधिक अत्याचार, अनाचार और भ्रष्टाचार पनप
तथा अन्य कुटम्बीजनों की, धन धान्य की विशेष समृद्धि सकते है ? संक्षेप म कहा जा सकता है कि उस युग मे हुई. उनका यश, तेज, पराक्रम और वैभव बढ़ा, माता मानव मानव न रहकर दानव बन चुका था; धर्म के नाम की प्रतिभा चमक उठी, वह सहज ही अनेक गढ प्रश्नो का पर, मस्कृति के नाम पर, गभ्यता के नाम पर वह मूक उत्तर देने लगी और प्रजाजन भी उत्तरोनर गय-शान्ति पशुप्रो के प्राणो के साथ खिलवाट कर रहा था। जाति- का अधिक अनभव करने लगे। टमसे जन्म काल म अापका बाद, पथवाद और गुण्डमवाद का म्वर इतना तेजस्वी सार्थक नाम 'बर्द्धमान' रखा गया, ऐमा प्रसिद्ध पाश्चात्य बन चका था कि मानवता री आवाज सुनाई नहीं दे रही विचारक डाक्टर हर्मन जेकोबी और डाक्टर ए० एफ० थी। स्त्री-जाति की दशा भी दयनीय थी। वह गृहलक्ष्मी प्रार० हार्नल आदि का मन्तव्य है। के पद से हटकर गहवामी बन गई थी। मानवीय पादर्शी
ज्ञातृकल में उत्पन्न होने में दूसरा नाम 'नायपुर' के लिए वस्तुतः वह एक प्रलय की बड़ी थी।
( ज्ञातपुत्र या ज्ञातपुत्त ) रखा गया। प्राचाराग', ऐसी विकट घड़ी में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की मध्य सूत्रकृतांग', भगवती", उत्तराध्ययन", दशवकालिका२ रात्रि मे विदेह (बिहार) देशस्थ कुण्डपुर' मे भगवान आदि में एस्तुन नाम का स्पष्ट उल्लेख प्रनेक स्थलों पर १. श्वेताम्बर सम्प्रदाय के कुछ ग्रन्थो में 'क्षत्रियकण्ड' ६ पानागा। ऐसा नामोलनेग्य भी मिलता है जो मम्भवत कुण्डपुर ७. देगो, गुणभद्राचार्य कृत महापुराण का ७४वा पर्व । का एक मोहल्ला जान पड़ता है; अन्यथा, उसी
८. पाच गंग द्वि० श्रु० अ० १५, सू० १००३ । सम्प्रदाय के दूसरे ग्रन्थों मे कुण्डग्रामादि रूप से कुण्ड
(म) प्रा० चा० श्रु० १, अ०८ उ०८, ४४८ । पर का साफ उल्लेख पाया जाता है। यथा-- "हत्युत्तराहि जामो कुडग्गामे महावीरो।"
६. (क) मूत्र 3० १, गा० २२ ।
प्रा०नि० भा० (ख) मूत्र थु. १, अ० ६, ना० २ । यह कुण्डपुर ही आजकल कुण्डलपुर कहा जाता
(ग) मूत्र थ० १, प्र० गाथा २४ । है, जो कि वास्तव मे वैशाली का उपनगर था ।
(घ) सूत्र श्रु०२, प्र०६, गाथा १६ । २. देखिये जैन हरिवश पुराण, सर्ग २।१८ ।
१०. भगवती श०१५, ७६ । ३. , , , सर्ग २।१४ ।
११. उत्तरा० अ०६, गाथा १७ । ४. कल्प सूत्र १०५, पृ० ३६।।
१२. दश० अ० ५, उ०२, गाथा ४६ । ५. प्राचाराांग दि० श्रु० भाग (ख) कल्पसूत्र सूत्र १०७, (ख) दश० अ० ६, गाथा २१ ।
पृ० ३६ ।