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४६, वर्ष २६, कि०१
भनेकान्त
३७ देवचन्द्र मष्टिज्ञान
ज्योतिष यह एक सम्पूर्ण दृष्टि है जो प्रायुर्वेद के जैनाचार्यों के एव लिये फैलाई जा सकती है। वैसे पूर्वमध्य युग अर्थात्
वैद्यक ७००-१२०० ईसवी से पूर्व का कोई जैनाचार्य प्रायुर्वेद ३८ नयन सुख वैद्यक मनोत्सव,
के क्षेत्र मे दृष्टिगोचार नही होता है । प्रायुर्वेद के जैन मन्तान विधि
मनीपी सर्व प्रथम प्राचार्य पूज्यपाद या देवनदी को माना मन्निपात कलिका,
जा सकता है। सालोन्तर रास
(१) पूज्यपाद ' - इनका दूसरा नाम देवनदी है। ३६ कृष्ण दाम गधक कल्प
ये ई. ५ श मे हुये है। इनका क्षेत्र कर्नाटक रहा है। ४० जनार्दन बाल विवेक १८ वी. ये दर्शन, योग, व्याकरण तथा आयुर्वेद के अद्वितीय विद्वान गोस्वामी वैद्यरत्न
वि. सं.
थे। पूज्यपाद अनेक विशिष्ट शक्तियो के धनी विद्वान थे। ४१ जोगीदास सुजानसिंह रासो १७६२ वि. स. वे दैवी शक्तियक्त थे । उन्होने गगनगामिनी विद्या में ४२ लक्ष्मीचन्द्र
कौशल प्राप्त किया था। यह पारद (Mercury) के ४३ समरथ मूरी समजरी १७६८ वि. स विभिन्न प्रयोगों का करते थे । विभिन्न धातुग्री में स्वर्ण
बनाने की क्रिया जानते थे। उन्होन शालाक्य तत्र पर ग्रन्थ ऊपरलिखित तालिका म मैन गेग आयुर्वेद के जैन
लिखा है। इनके वैद्यक ग्रन्थ प्रायः अनुपलब्ध है किन्तु मनीषियो का मामालीख किया है जिन्होन आयर्वेद साहित्य
इनका नाम अनेक प्रायवेद के माचार्यों ने अपने ग्रन्धो में का प्रणयन प्रधान रुप में किया है। साथ ही वे चिकित्सा
लिखा है और इनके प्रायुर्वेद साहित्य तथा चिकित्सा कार्य में निपुण थ । किन्तु प्राचीन जैन साहित्य के इतिहास
वैदुष्य की चर्चा भी की है। प्राचार्य श्री शुभचन्द्र ने अपने का परिजनन करने पर ज्ञात होता है कि बहत से विद्वान
"ज्ञानार्णव" के एक एक श्लोक द्वारा वैद्यक ज्ञान का प्राचार्य ।क में अधिक विषय के ज्ञाता होते थे । प्रायुर्वेद
परिचय दिया है : के मनीषी इस नियम से मुक्त नहीं थे । वे भी साहित्य के
अपाकुर्वन्ति यवाचः कायवाक चित्तसम्भवम् । साथ दर्शन, व्याकरण, ज्योतिष, न्याय, मत्र, रसतन्त्र आदि
कलकमंगिनां सोऽयं देवनन्दी नमस्यते ॥ के साथ प्रायुर्वेद का ज्ञान रखते थे । प्रायुर्वेद के महान
यह श्लोक ठीक उसी प्रकार का है जैसा पतञ्जलि के शल्यविद प्राचार्य सुथुत ने कहा है :
बारे में लिखा है :एक शास्त्रमधीयानो न विद्या शास्त्रनिश्चयम्
योगेन चित्तस्यपदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैद्यकेन । तस्माद् बहुश्रुतः स्यात् विजानीयात चिकित्सकः ।।
योऽपाकरोत त वरदं मनीनां पतंजलि प्रांजलिरानतोऽस्मि ॥ कोई भी व्यक्ति एक शास्त्र का अध्ययन कर शास्त्र
ऐसा लगता है कि पूज्यपाद पतजलि के समान ही का पर्ण विद्वान नही हो सकता है, अतः चिकित्सक बनने प्रतिभाशाली वैद्यक के जैनाचार्य थे। के लिये बहधत होना यावश्यक है।
कन्नड़ कवि मगराज जो वि. स. १४१६ मे हुए है __ मैं कुछ ऐसे आयुर्वेद के जैन मनीषियों की गणना जिन्होने "खगेन्द्रमणि दर्पण" अायुर्वेद का ग्रन्थ लिखा है, कराउगा जिनके साहित्य में आयुर्वेद विकीर्ण रूप से प्राप्त उन्होने लिखा कि मैने अपने इस ग्रन्थ का भाग पूज्यपाद के है :--- पूज्यपाद या देवनदी, महाकवि धनंजय, प्राचार्य वैद्यक ग्रन्थ से संगृहीत किया है। इसम स्थावर विषों की गुणभद्र, सोमदेव, हरिश्चन्द्र, वाग्भट्ट, शुभचन्द्र, हेमचन्द्रा- प्रक्रिया और चिकित्सा का वर्णन है । बौद्ध नागार्जन से चार्य, प. प्राशाधर, 4 जाजाक, नागार्जुन शोढ़ल, वीरसिंह। भिन्न एक नागार्जुन जो पूज्यपाद के बहनोई थे उन्हें इन्होने स्वतत्र साहित्य रचना की है तथा इनके साहित्य पूज्यपाद ने अपनी वैद्यक विद्या सिखाई थी । रसगुटिका मे मायुर्वेद के अश विद्यमान है।
जो खेचरी गुटिका थी, का निर्माण सिखाया था। पूज्यपाद