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तीन अप्रकाशित रचनायें
२७ रचयिता का कुछ भी अता-पता नहीं मिलता है जो की भांनि ही यह स्तोत्र संस्कृत बहल छंदों में विद्यमान निश्चय ही बड़ी चिन्ता का विषय है।
है। इसके कर्ता का भी कोई नामोल्लेख नहीं मिलता है।
परन्तु यह सर्वथा अप्रकाशित है, प्रत महत्त्वपूर्ण भी है। (३) श्री वईमानस्त्रोत्र-यह रचना भाठ संस्कृत
ये तीनो रचनाएं सर्वथा अप्रकाशित है और छदों में रची गई है। रचना सरल पौर प्रभु के गुणगान साहित्यिक एवं धार्मिक दृष्टि से बहुत ही उपादेय एव से भरपूर है । भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण महो- श्रेयस्कर है। कृपालु पाठक इनका रसास्वादन करें पोर स्सव पर जहा भगवान् महावीर से सम्बन्धित सभी छोटी- इनके विषय मे तथा इनके कर्ताप्रो के विषय मे कुछ मोटी रचनामों का सकलन हुपा है उसमे इसे भी सगहीत जानकारी हो तो प्रकाश मे अवश्य ही लाए तथा मुझे भी किया जा सकता है । ५० द्यानतराय जी विरचित "नरेन्द्र सूचित कर । में अत्यधिक मनुगहीत होऊंगा। फणीन्द्र सुरेन्द्र प्रधीश " इत्यादि पार्श्वनाथ स्तुति
दशलाक्षणी कवित्त कुण्डलिया-जिनवर मुख अरविन्द वानी विविध विसाल ।
दशलक्षण को धर्म जिहि वरण्यौ विविध रसाल ।। वरण्यौ विविध रसाल हाल भवजल को हरता । बदत देव प्रदेव भूरि शिव पद करता ।। चिन्तामणि को पाई जाइ डारह जिन तिणवर ।
कह माया परदौनु करहु भाष्यी जो जिनवर ॥१॥ उत्तम क्षमा-तीरथ दान करो पय पान धरौ उर ध्यान लागत नीको।
जो तप कोटि करौ वन में वसितो सब पौर अकारथ फीको ।। धम घरी घर धरि जटा सिर भूमि परी तनु के तपसी को।
के व्रत और कहै परदौनु क्षमा बिन पावक जातु न जी को ।।२।। मार्दव-जीति के मान कषाय निरतर अतरभूत दया सुधरेंगे।
भाइ तौ के समता सब सौ पुनि चाइ सौ ते भव लोकु तरेंगे।
साधि सबै परमारथ को परदौन कहै मब काज सरेगे ।।३।। पार्जव-प्रारज सद्ध प्रनाम करौ तजिकै सब ही हिय की कटिलाई।
जो सिव को सुख चाहतु हो सुर लोक यहै सब लोक बड़ाई।। भूलि कहं भ्रमते भ्रमते भटके भव श्रावक को कलि पाई।
सो व्रत दान बिना परदौनु तिना करि सब त विसराई॥४॥ सत्य-सांचहि ते पद पाइ सुरप्पति साहि ते गुण ग्यान गहैगो।
सांचहि ते सुर बंदत प्राइ क साह ने यस पूरि रहेगो।। साचहि ते उपज कल कीरति साह ते सब माधु कहेगो।
बोलहु साच कहै परदौनु स सांहि त मरलोक लहेगो ॥५।। शौच-सोच रहै अभि अतर बाहर उज्जल नीर सरीर पखारत ।
पूजत प्रात जिणेश्वर को चदन सौ घांस केसर गारत ।। प्रक्षत फल णये पकवान लै दीपक धप महाफल भारत । ये परदौनु कहै व्रत भाव सों पापु नरै अरु पोरनि तारत ॥६॥