Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Kusumpragya Shramani
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भूमिका लिखी गयी, जो विशेषावश्यक भाष्य पर है। यह स्वोपज्ञ टीका के नाम से प्रसिद्ध है। यह टीका अधूरी लिखी गयी है। आचार्य जिनभद्र ने गा. १८६३ तक इसकी व्याख्या की। बाद में दिवंगत होने पर यह अधूरी टीका कोट्यार्य द्वारा पूरी की गयी। इसके दो भागों का संपादन पंडित दलसुखभाई मालवणिया ने तथा तीसरे भाग का संपादन पंडित बेचरदास जोशी द्वारा किया गया है। इसमें ४३२९ भाष्यगाथाएं हैं, जिनमें ७३५ नियुक्तिगाथाएं हैं। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने २३१८ गाथा तक अर्थात् छठे गणधर की वक्तव्यता तक स्वोपज्ञ वृत्ति लिखी। उसके बाद कोट्यार्य ने इस टीका की सम्पूर्ति की। टीका का प्रारंभ करते हुए वे निम्न श्लोक लिखते हैं
निर्माप्य षष्ठगणधरवक्तव्यं किल दिवंगताः पूज्याः । अनुयोगमार्गदेशिकजिनभद्रगणिक्षमाश्रमणाः ॥१॥ तानेव प्रणिपत्यातः परमविशिष्टविवरणं क्रियते।
कोट्यार्यवादिगणिना मन्दधिया शक्तिमनपेक्ष्य ॥२॥ कोट्यार्य उल्लेख करते हैं कि छह गणधर की वक्तव्यता का वर्णन पूज्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने किया। अब उन्हीं को प्रणाम करके मैं (कोट्यार्यवादिगणी) विशिष्ट विवरण लिख रहा हूं। कोट्याचार्य कृत टीका
कोट्याचार्य ने विशेषावश्यक भाष्य पर मलधारीहेमचन्द्र से पूर्व टीका लिखी थी। मलधारी हेमचन्द्र ने अपनी टीका में कहीं-कहीं 'कोट्याचार्यटीकायां विवृतं' ऐसा उल्लेख किया है।
यह टीका प्रारंभ की गाथाओं की विस्तृत व्याख्या करती है लेकिन बाद में कुछ संक्षिप्त हो गई है। डॉ. नथमल टाटिया ने कोट्याचार्य कृत टीका युक्त विशेषावश्यक भाष्य का संपादन किया है किन्तु उन्होंने प्रथम खंड का ही संपादन किया, जो अधूरा है। इसमें २०८० गाथाएं भाष्य की हैं, जिनमें नियुक्ति की ४४४ गाथाएं हैं। पंडित सुखलालजी के अनुसार शीलांक का ही अपर नाम कोट्याचार्य था लेकिन इसका खंडन करते हुए डॉ. मोहनलाल मेहता कहते हैं कि आचार्य शीलांक का समय विक्रम की नवीं-दसवीं शताब्दी है जबकि कोट्याचार्य का समय विक्रम की आठवीं शताब्दी ही सिद्ध होता है। दूसरी बात शीलांक सूरि और कोट्याचार्य को एक ही व्यक्ति मानने का कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होता।
इसमें लगभग कथाएं प्राकृत भाषा में हैं लेकिन कहीं-कहीं कथा का प्रारंभ प्राकृत भाषा में हुआ है फिर पूरी कथा संस्कृत भाषा में दी हुई है। देखें-कुब्जा' कथा सं. १०।
कथा सं. १३ ग्रामीण की कथा चूर्णि, हाटी और मटी में प्राकृत गद्य में है लेकिन कोट्याचार्य ने इस कथा को विस्तार से प्राकृत पद्यों में दिया है। इस टीका का ग्रंथमान १३७०० श्लोक प्रमाण है। मलधारी हेमचन्द्रकृत टीका __यह विशेषावश्यक भाष्य पर विस्तृत एवं गंभीर टीका है। इसमें टीकाकार ने विस्तार से सभी
धारी हेमचन्द्र का गृहस्थावस्था का नाम प्रद्युम्न था। उन्होंने विशेषावश्यक
१. स्वोटी पृ. ४१३। २. विभामहेटी पृ. २९९। ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग ३ पृ. ३४९ ।
४. विभाकोटी पृ. ३४३ । ५. विभाकोटी पृ. ३४४-३४६ ।
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